📋 Topics:-
हिंदी भाषा (Hindi Language) भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है।
यह देवनागरी लिपि (Devanagari Script) में लिखी जाती है।
हिंदी का उद्गम संस्कृत (Sanskrit) से हुआ है, और इसमें उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्द भी शामिल हैं।
यह भारत की राजभाषा (Official Language) है और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक मानी जाती है।
🪶 Example: जैसे – “विद्यालय”, “कक्षा”, “शिक्षक”, “प्रकृति” आदि संस्कृत मूल शब्द हैं; जबकि “सड़क”, “किताब”, “दफ़्तर” फ़ारसी/उर्दू से लिए गए हैं।
हिंदी का व्याकरण और वाक्य संरचना सरल है।
एक सामान्य व्यक्ति आसानी से इसे बोल, पढ़ और लिख सकता है।
उच्चारण (Pronunciation) स्पष्ट और सीधा होता है।
🪶 Example: “मुझे पानी चाहिए” – सीधा, स्पष्ट वाक्य है; किसी जटिल संरचना की आवश्यकता नहीं।
हिंदी में जैसा बोला जाता है वैसा लिखा जाता है (Sound = Symbol)।
इसका उच्चारण और लेखन (Pronunciation & Writing) में समानता है।
🪶 Example: “राम” शब्द हम जैसे बोलते हैं, वैसे ही लिखते हैं — कोई अंतर नहीं।
(English में “Cat” और “Kite” दोनों ‘K’ जैसी ध्वनि से शुरू होते हैं, पर लिखावट अलग होती है — हिंदी में ऐसा नहीं।)
हिंदी में संस्कृत, अरबी, फारसी, उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्द शामिल हैं।
यह बहुभाषी संपर्क भाषा (Multi-lingual Link Language) है।
🪶 Example:
“विद्यालय” (संस्कृत), “किताब” (उर्दू), “ऑफिस” (अंग्रेज़ी) — तीनों शब्द हिंदी वाक्यों में प्रयोग हो सकते हैं।
हिंदी समाज के साथ बदलती रहती है।
नई तकनीक और विचारों के अनुसार इसमें नए शब्द जुड़ते हैं।
🪶 Example:
“मोबाइल”, “कंप्यूटर”, “ऑनलाइन” जैसे शब्द अब हिंदी का हिस्सा हैं।
हिंदी शब्दों में भावना (Emotion) और संवेदना (Sensitivity) की गहराई होती है।
यह हृदय की भाषा (Language of Heart) कही जाती है।
🪶 Example:
“माँ”, “प्रेम”, “करुणा”, “त्याग” जैसे शब्दों से भावनाएँ सीधे जुड़ी होती हैं।
हिंदी का व्याकरण नियमबद्ध और वैज्ञानिक है।
इसमें लिंग (Gender), वचन (Number), काल (Tense), कारक (Case) आदि स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं।
🪶 Example:
“लड़का खेलता है” → पुल्लिंग, एकवचन, वर्तमान काल।
“लड़कियाँ खेलती हैं” → स्त्रीलिंग, बहुवचन, वर्तमान काल।
हिंदी देश के विभिन्न राज्यों के बीच संपर्क भाषा (Link Language) का कार्य करती है।
यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और लोकजीवन की अभिव्यक्ति है।
🪶 Example:
देशभर में हिंदी फ़िल्में, समाचार और साहित्य लोगों को जोड़ते हैं।
कविता, कहानी, निबंध, नाटक आदि में हिंदी की अभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावशाली है।
इसमें साहित्यिक सौंदर्य (Literary Beauty) और भावनात्मक गहराई दोनों हैं।
🪶 Example:
सूरदास, तुलसीदास, प्रेमचंद, हरिवंश राय बच्चन — सभी ने हिंदी में महान रचनाएँ दीं।
शिक्षक को हिंदी को बोलने, सुनने, पढ़ने और लिखने – चारों कौशलों में बच्चों को दक्ष बनाना चाहिए।
सृजनात्मक गतिविधियों (Creative Activities) जैसे कविता पाठ, कहानी लेखन, संवाद अभ्यास से बच्चों में रुचि बढ़ाई जा सकती है।
शिक्षक को बच्चों के स्थानीय भाषा पृष्ठभूमि (Linguistic Background) को समझकर सिखाना चाहिए।
🪶 Example:
अगर बच्चा भोजपुरी या मराठी बोलता है, तो शिक्षक को हिंदी में अंतर समझाकर सिखाना चाहिए — “वो जाता है” बनाम “तो जात हवे”।
हिंदी हमारे दैनिक संवाद (Daily Communication) की प्रमुख भाषा है।
सरकारी कार्य, शिक्षा, मीडिया, साहित्य – हर क्षेत्र में इसका प्रयोग होता है।
यह राष्ट्रीय पहचान और एकता का प्रतीक है।
🪶 Example:
समाचार, सोशल मीडिया पोस्ट, फिल्में, और सरकारी पत्र — अधिकांश हिंदी में ही होते हैं।
हिंदी भारत की राजभाषा (Official Language) और जन-जन की बोली है।
यह देवनागरी लिपि (Devanagari Script) में लिखी जाती है।
हिंदी ध्वन्यात्मक (Phonetic) और सरल (Simple) भाषा है।
इसमें संस्कृत, उर्दू, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों का मेल है।
हिंदी लचीली, भावात्मक, व्याकरणिक रूप से सशक्त और रचनात्मक अभिव्यक्ति की भाषा है।
यह सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रीय भावना को मज़बूत करती है।
शिक्षक को बच्चों में हिंदी के प्रति रुचि, अभिव्यक्ति और समझ विकसित करनी चाहिए।
भाषा (Language) वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार, भावनाएँ और अनुभव दूसरों तक पहुँचाता है।
यह संवाद (Communication) और अभिव्यक्ति (Expression) का सबसे प्रमुख साधन है।
भाषा व्यक्ति, समाज और संस्कृति — तीनों के विकास की आधारशिला है।
🪶 Example:
जब बच्चा "माँ, पानी दो" कहता है — वह अपनी आवश्यकता भाषा के माध्यम से व्यक्त करता है।
भाषा केवल बोलने का साधन नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक है।
भाषा के बिना विचारों का आदान-प्रदान संभव नहीं।
यह हमें अपनी भावनाएँ, इच्छाएँ, ज्ञान और अनुभव व्यक्त करने की क्षमता देती है।
🪶 Example:
कक्षा में जब बच्चा उत्तर देता है या प्रश्न पूछता है — वह भाषा के प्रयोग से ही करता है।
सीखना और सिखाना दोनों भाषा के माध्यम से होते हैं।
भाषा ही शिक्षा (Education) का मूल आधार है।
🪶 Example:
पाठ्यपुस्तकें, नोट्स, और शिक्षण सामग्री — सब कुछ भाषा में लिखा होता है।
भाषा संस्कृति (Culture) की वाहक होती है।
यह किसी समाज की परंपराओं, लोककथाओं, गीतों और इतिहास को संजोकर रखती है।
🪶 Example:
लोकगीत, दोहे, कहावतें हमारी संस्कृति और भाषा दोनों को एक साथ जीवित रखते हैं।
एक समान भाषा देश के नागरिकों में एकता (Unity) और समझ (Mutual Understanding) बढ़ाती है।
यह राष्ट्रीय भावना (National Feeling) को मजबूत बनाती है।
🪶 Example:
स्वतंत्रता आंदोलन के समय हिंदी ने लोगों को “एक भारत” के रूप में जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भाषा के माध्यम से व्यक्ति स्पष्ट रूप से सोचने, बोलने और तर्क करने में सक्षम बनता है।
यह आत्मविश्वास (Self-Confidence) और सामाजिकता (Sociability) को बढ़ाती है।
🪶 Example:
जो बच्चा अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकता है, वह किसी भी समूह में आत्मविश्वास से भाग ले सकता है।
व्यापार, तकनीक और प्रशासन में भाषा का सीधा प्रयोग होता है।
किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए भाषा का ज्ञान आवश्यक है।
🪶 Example:
नौकरी के इंटरव्यू में सही भाषा और संवाद कौशल सफलता की संभावना बढ़ाते हैं।
राष्ट्रभाषा (National Language) वह भाषा होती है जो पूरे देश की राष्ट्रीय पहचान (National Identity) और एकता को दर्शाती है।
यह भाषा जन-जन द्वारा बोली और समझी जाती है।
🪶 Example:
भारत में हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता देने की माँग इसलिए उठी क्योंकि यह बहुसंख्यक लोगों की भाषा है।
राष्ट्रभाषा देश की संस्कृति, परंपरा और भावना को एक सूत्र में बाँधती है।
यह राष्ट्रीय एकता, अखंडता और गर्व का प्रतीक होती है।
राष्ट्रभाषा से देश के सभी नागरिकों में आपसी समझ और भाईचारा बढ़ता है।
🪶 Example:
जब देश के लोग एक ही भाषा में संवाद कर सकते हैं, तो “हम एक हैं” की भावना मजबूत होती है।
राजभाषा (Official Language) वह भाषा होती है जिसमें सरकार अपने राजकीय कार्य (Official Work) करती है।
यह प्रशासन, न्यायालय, और संसद के कार्यों में प्रयोग की जाने वाली भाषा होती है।
🪶 Example:
भारत में संविधान के अनुच्छेद 343 (Article 343) के अनुसार हिंदी (देवनागरी लिपि में) भारत की राजभाषा है।
साथ ही अंग्रेज़ी (English) को सह-राजभाषा (Associate Official Language) के रूप में रखा गया है।
राजभाषा शासन और प्रशासन में एकरूपता (Uniformity) लाती है।
नागरिकों और सरकार के बीच सुगम संवाद (Smooth Communication) स्थापित करती है।
यह सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जनसंपर्क को मजबूत करती है।
🪶 Example:
सरकारी दस्तावेज़, पत्र, आदेश आदि हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों में जारी किए जाते हैं ताकि हर व्यक्ति समझ सके।
| बिंदु | राष्ट्रभाषा | राजभाषा |
|---|---|---|
| अर्थ | राष्ट्रीय पहचान की भाषा | सरकारी कार्यों की भाषा |
| भूमिका | एकता और संस्कृति का प्रतीक | प्रशासनिक कार्य का साधन |
| उदाहरण | हिंदी (भारत की जनभाषा) | हिंदी (देवनागरी लिपि में), सहायक भाषा अंग्रेज़ी |
🪶 Simplified Understanding:
राष्ट्रभाषा देश की आत्मा है, और राजभाषा शासन की भाषा है।
शिक्षक बच्चों को भाषा के माध्यम से विचार, संस्कृति और राष्ट्रीय भावना सिखाता है।
कक्षा में बच्चों को स्वाभाविक संवाद (Natural Communication) के अवसर देना चाहिए।
शिक्षक को यह सिखाना चाहिए कि भाषा केवल विषय नहीं, बल्कि जीवन का हिस्सा है।
🪶 Example:
कक्षा में “भाषा दिवस” मनाकर बच्चों को राष्ट्रभाषा के प्रति गर्व की भावना सिखाई जा सकती है।
भाषा (Language) – विचार और भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है।
भाषा का महत्व – शिक्षा, संवाद, संस्कृति, एकता और व्यक्तित्व विकास में अनिवार्य है।
राष्ट्रभाषा (National Language) – राष्ट्रीय एकता और पहचान की भाषा।
राजभाषा (Official Language) – सरकार के राजकीय कार्यों की भाषा।
भारत में हिंदी (देवनागरी लिपि में) राजभाषा है, और अंग्रेज़ी सह-राजभाषा है।
राष्ट्रभाषा देश की आत्मा है; राजभाषा शासन की आवाज़ है।
शिक्षक का दायित्व – बच्चों में भाषा के प्रति गर्व, प्रयोग और सम्मान की भावना जगाना।
भाषा (Language) एक सामाजिक प्रक्रिया (Social Process) है।
यह समाज में जन्म लेती है, समाज में विकसित होती है, और समाज के लोगों को जोड़ती है।
इसलिए कहा जाता है — “भाषा और समाज एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।”
🪶 Example:
बच्चा बोलना अपने परिवार और आसपास के लोगों को सुनकर सीखता है — यह सामाजिक भाषा-अर्जन (Social Language Learning) है।
भाषा किसी एक व्यक्ति की नहीं होती; यह समूह की उपज (Collective Product) है।
लोग बोलचाल के माध्यम से भाषा को जन्म देते हैं और आगे बढ़ाते हैं।
🪶 Example:
जब किसी गाँव में नया शब्द जैसे “डिजीटल दवा” चलन में आता है — वह समाज की ज़रूरत से बनता है।
समाज के तकनीकी, सांस्कृतिक और राजनीतिक बदलाव के साथ भाषा भी बदलती है।
यह गति-शील (Dynamic) है, स्थिर नहीं।
🪶 Example:
पहले “पत्र” लिखा जाता था, अब “व्हाट्सऐप मैसेज” भेजते हैं — दोनों में भाषा ने रूप बदला।
हर समाज की अपनी भाषा, बोली और अभिव्यक्ति होती है जो उसकी पहचान बनती है।
भाषा से समाज की संस्कृति, सोच और जीवनशैली झलकती है।
🪶 Example:
पंजाब की “भंगड़ा” संस्कृति और उसकी भाषा “पंजाबी” समाज की जोशभरी पहचान है।
भारत जैसे देश में अनेक समाज और भाषाएँ हैं — हिंदी, उर्दू, तमिल, तेलुगु आदि।
प्रत्येक भाषा के भीतर भी अलग-अलग बोलियाँ (Dialects) पाई जाती हैं।
🪶 Example:
हिंदी की प्रमुख बोलियाँ — अवधी, ब्रज, भोजपुरी, हरियाणवी आदि।
समाज के विभिन्न वर्गों में भाषा के प्रयोग में अंतर होता है।
इसे सामाजिक बोली (Sociolect) कहते हैं।
🪶 Example:
औपचारिक स्थिति में “आप कैसे हैं?”
अनौपचारिक स्थिति में “तू कैसा है?” — दोनों का भाव समान लेकिन सामाजिक स्तर अलग।
समाज में जब नयी चीज़ें या विचार आते हैं, तो उनके लिए नए शब्द बनते हैं।
यह प्रक्रिया भाषिक विकास (Linguistic Evolution) कहलाती है।
🪶 Example:
“सेल्फी”, “ऑनलाइन”, “डिजिटल क्लासरूम” — ये आधुनिक समाज के प्रभाव से आए शब्द हैं।
भाषा समाज के सभी लोगों को जोड़ती है (Connects People)।
यह विचार, ज्ञान, संस्कृति और मूल्य साझा करने का साधन है।
🪶 Example:
विद्यालय में शिक्षक–छात्र संवाद भाषा के माध्यम से ही होता है।
भाषा समाज की संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाती है।
लोकगीत, मुहावरे, कहावतें — भाषा के माध्यम से संस्कृति जीवित रहती है।
🪶 Example:
“नदी किनारे बैठकर गीत गाना” – यह केवल परंपरा नहीं, एक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है जो भाषा से जुड़ी है।
समान भाषा बोलने वाले लोगों में आपसी समझ और सहयोग की भावना बढ़ती है।
भाषा राष्ट्र निर्माण (Nation Building) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
🪶 Example:
स्वतंत्रता आंदोलन में “हिंदी” ने देशवासियों को एक सूत्र में बाँधा।
बच्चा भाषा को अनुभव और संवाद के माध्यम से सीखता है, न कि केवल किताब से।
शिक्षक को बच्चों के सामाजिक परिवेश (Social Background) के अनुसार भाषा सिखानी चाहिए।
🪶 Example:
जो बच्चा घर में “भोजपुरी” बोलता है, शिक्षक को उसे मानक हिंदी सिखाते समय उसकी बोली को सम्मान देना चाहिए।
शिक्षक को सभी बच्चों की मातृभाषा या बोली का आदर करना चाहिए।
इससे बच्चा भाषा सीखने में आत्मविश्वास महसूस करता है।
🪶 Example:
यदि बच्चा “मैं गयो था” कहे, तो शिक्षक को सुधार कर “मैं गया था” सिखाना चाहिए, लेकिन हँसना नहीं चाहिए।
भाषा बच्चों को साझेदारी, सह-अस्तित्व और सहयोग के मूल्य सिखाती है।
शिक्षक को कहानियों, संवादों और समूह गतिविधियों से यह मूल्य विकसित करने चाहिए।
🪶 Example:
कक्षा में कहानी “साझा चूल्हा” सुनाकर शिक्षक सामाजिक मेल-जोल की भावना सिखा सकता है।
भाषा सामाजिक प्रक्रिया (Social Process) है — समाज में उत्पन्न होती है, वहीं विकसित होती है।
समाज के बिना भाषा नहीं; भाषा के बिना समाज नहीं।
भाषा समाज का दर्पण (Mirror) है — उसकी संस्कृति, सोच और जीवन शैली को दर्शाती है।
समाज में भाषिक विविधता (Linguistic Diversity) होती है — बोलियाँ, उच्चारण, वर्गीय अंतर आदि।
समाज में परिवर्तन से भाषा में भी नए शब्द और अर्थ जुड़ते हैं।
भाषा समाज में एकता, सहयोग और समझ को बढ़ाती है।
CTET Pedagogy के अनुसार —
भाषा सीखना एक सामाजिक क्रिया (Social Activity) है।
शिक्षक को बच्चों की भाषिक पृष्ठभूमि (Linguistic Background) का सम्मान करना चाहिए।
कक्षा में समान अवसर (Equal Opportunity) देना भाषा अधिगम का मूल सिद्धांत है।
📋 Topics:-
भाषा (Language) ध्वनियों से बनती है।
ध्वनि (Sound) का जब लिखित रूप दिया जाता है, तो उसे वर्ण (Letter) कहते हैं।
सभी वर्णों का क्रमबद्ध समूह वर्णमाला (Alphabet) कहलाता है।
वर्ण ज्ञान (Alphabet Knowledge) भाषा अधिगम (Language Learning) की पहली सीढ़ी है।
🪶 Example: बच्चा जब ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’ बोलना सीखता है, तो वह भाषा के ध्वनि–वर्ण संबंध (Sound–Letter Relationship) को समझना शुरू करता है।
वर्ण वह छोटी इकाई (Smallest Unit) है जिसे बोला भी जा सकता है और लिखा भी जा सकता है।
शब्द वर्णों से मिलकर बनते हैं।
हर वर्ण का एक विशिष्ट उच्चारण (Pronunciation) होता है।
🪶 Example:
“घर” शब्द में तीन वर्ण हैं — ग + अ + र = घर।
स्वर वे वर्ण हैं जिनका उच्चारण करते समय वायु (Air) का मार्ग कहीं नहीं रुकता।
स्वर का उच्चारण स्वतंत्र रूप से (Independently) किया जा सकता है।
स्वर बोलते समय जीभ, होंठ या दाँत की कोई बाधा नहीं होती।
🪶 Example:
‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’, ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’, ‘अं’, ‘अः’ — ये सभी स्वर हैं।
हिंदी में कुल 13 स्वर (Vowels) होते हैं।
ये ध्वनियों के निर्माण में मुख्य भूमिका (Primary Role) निभाते हैं।
🪶 Classroom Example:
शिक्षक बच्चों से “अ–अनार”, “आ–आम”, “ओ–ओखली” बोलवाकर स्वर पहचान का अभ्यास करवा सकते हैं।
व्यंजन वे वर्ण हैं जिनका उच्चारण स्वर की सहायता से होता है।
जब वायु के निकलने में कहीं रुकावट (Obstruction) आती है, तब व्यंजन ध्वनि बनती है।
इसलिए व्यंजन स्वर पर निर्भर (Dependent) रहते हैं।
🪶 Example:
‘क’, ‘ग’, ‘च’, ‘ट’, ‘प’, ‘म’ आदि व्यंजन हैं।
हम “क” अकेले नहीं बोल सकते, बल्कि “क + अ = कअ (का)” कहना पड़ता है।
हिंदी वर्णमाला में सभी स्वर और व्यंजन शामिल हैं।
हिंदी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण (Letters) माने जाते हैं।
स्वर – 13
व्यंजन – 33
अन्य – अं, अः, ऋ, क्ष, त्र, ज्ञ आदि
🪶 Example:
हिंदी वर्णमाला की प्रारंभिक पंक्ति —
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, क, ख, ग, घ, ङ…
व्यंजन उनके उच्चारण स्थान (Place of Articulation) के आधार पर पाँच वर्गों में बाँटे गए हैं —
कंठ्य (Guttural) – गले से उच्चारण।
🪶 Example: क, ख, ग, घ, ङ
तालव्य (Palatal) – तालु से उच्चारण।
🪶 Example: च, छ, ज, झ, ञ
मूर्धन्य (Cerebral) – जिह्वा की नोक तालु से लगाकर बोले जाएँ।
🪶 Example: ट, ठ, ड, ढ, ण
दंत्य (Dental) – दाँतों से बोले जाने वाले।
🪶 Example: त, थ, द, ध, न
ओष्ठ्य (Labial) – होंठों से बोले जाने वाले।
🪶 Example: प, फ, ब, भ, म
🪶 Classroom Tip:
बच्चों से “क” बोलवाकर कहें “हाथ गले पर रखो” — उन्हें महसूस होगा कि यह ध्वनि गले से (कंठ्य) निकल रही है।
जो स्वर और व्यंजन के बीच की ध्वनि रखते हैं।
ये चार हैं — य, र, ल, व
इन्हें “यारलव” समूह कहा जाता है।
🪶 Example:
शब्द “राम”, “लव”, “वाणी” — इनमें अर्धस्वर प्रयुक्त हैं।
जब दो या दो से अधिक व्यंजन मिलकर एक नया अक्षर बनाते हैं।
इन्हें संयुक्ताक्षर कहा जाता है।
🪶 Example:
“त्र” (त् + र), “क्ष” (क् + ष), “ज्ञ” (ज् + ञ)
जैसे — “ज्ञान”, “क्षेत्र”, “त्रिशूल”।
स्वर का उच्चारण बिना किसी रुकावट के होता है, जबकि व्यंजन में वायु रुकती है।
स्वर स्वतंत्र रूप से बोले जा सकते हैं, लेकिन व्यंजन नहीं।
स्वर की संख्या 13 और व्यंजनों की संख्या 33 होती है।
स्वर शब्दों को मधुर बनाते हैं, जबकि व्यंजन उन्हें आकार देते हैं।
🪶 Example:
शब्द “आम” में ‘आ’ स्वर है और ‘म’ व्यंजन है। दोनों मिलकर शब्द बनाते हैं।
उच्चारण अभ्यास (Pronunciation Practice) –
सही ध्वनि सीखने से बच्चा शब्दों को ठीक से बोल पाता है।
🪶 Example: “श” और “स” का अंतर समझाना।
पढ़ने–लिखने की नींव (Foundation of Literacy) –
स्वर–व्यंजन पहचान भाषा सीखने का पहला चरण है।
श्रवण और बोलने की क्षमता (Listening & Speaking Skills) –
बच्चा ध्वनियों को सुनकर पहचानना और दोहराना सीखता है।
रचनात्मक गतिविधियाँ (Activity-Based Learning) –
वर्ण कार्ड, स्वर–व्यंजन गीत, चित्रों के साथ बोलचाल जैसे खेलों से बच्चे आनंदपूर्वक सीखते हैं।
भाषाई सुधार (Language Correction) –
शिक्षक गलत उच्चारण सुधार सकते हैं जब बच्चे को वर्ण का सही ज्ञान हो।
बच्चे की मातृभाषा (Mother Tongue) को सम्मान दें, क्योंकि वह वर्ण पहचान में मदद करती है।
“सुनो–बोलो–लिखो” क्रम अपनाएँ।
हर वर्ण के साथ दृश्य संकेत (Visual Clue) दें — जैसे “आ – आम”, “उ – उल्लू”।
गीत, कहानी और चित्रों का प्रयोग करें ताकि वर्ण सीखना रोचक बने।
वर्ण – भाषा की सबसे छोटी लिखित इकाई।
ध्वनि – भाषा की मौखिक इकाई।
वर्णमाला – सभी वर्णों का क्रमबद्ध समूह।
स्वर – जिनके उच्चारण में वायु नहीं रुकती (13 स्वर)।
व्यंजन – जिनके उच्चारण में स्वर की सहायता चाहिए (33 व्यंजन)।
व्यंजनों के पाँच वर्ग – कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, दंत्य, ओष्ठ्य।
अर्धस्वर – य, र, ल, व।
संयुक्ताक्षर – क्ष, त्र, ज्ञ आदि।
भाषा शिक्षण में वर्ण ज्ञान आवश्यक है क्योंकि यही पढ़ने–लिखने की नींव (Foundation of Reading & Writing) है।
परिभाषा:
जब हम किसी ध्वनि (Sound) को मुख से स्पष्ट रूप में बाहर निकालते हैं, तो उसे उच्चारण (Pronunciation) कहते हैं।
➤ यह भाषा की सबसे पहली अभिव्यक्ति होती है।
मुख्य अंग जो उच्चारण में काम करते हैं:
जीभ (Tongue)
होंठ (Lips)
तालू (Palate)
दाँत (Teeth)
कंठ (Throat / Larynx)
ये सभी मिलकर ध्वनि को आकार देते हैं।
सही उच्चारण का महत्व:
सही उच्चारण से शब्द का अर्थ स्पष्ट (clear meaning) होता है।
गलत उच्चारण से अर्थ बदल सकता है।
👉 उदाहरण: फल (fruit) और फलक (sky)
शिक्षक के लिए यह विशेष रूप से आवश्यक है, क्योंकि बच्चे सुनकर सीखते हैं।
Classroom Example:
शिक्षक जब “कमल” शब्द बोलते हैं तो स्पष्ट ‘क’ और ‘म’ की ध्वनि निकालें, ताकि बच्चे ध्वनि की शुद्धता समझ सकें।
परिभाषा:
जब दो शब्द या वर्ण मिलकर नया रूप बनाते हैं, तो उसे संधि (Combination / Union) कहा जाता है।
➤ "संधि" का अर्थ है — मिलन या जोड़ना।
उदाहरण:
राम + ईश्वर = रामेश्वर
गुरु + इन्द्र = गुरेन्द्र
संधि का उद्देश्य:
भाषा को सुचारु (fluent) और मधुर (melodious) बनाना।
बोलने में सुविधा (ease of pronunciation) होना।
मुख्य प्रकार:
हिंदी में तीन प्रमुख प्रकार की संधियाँ मानी गई हैं —
(क) स्वर संधि (Vowel Combination):
जब दो स्वर (Vowels) मिलते हैं।
👉 राम + ईश्वर = रामेश्वर
(ख) व्यंजन संधि (Consonant Combination):
जब व्यंजन (Consonants) मिलते हैं।
👉 तत् + त्व = तत्त्व
(ग) विसर्ग संधि (Visarga Combination):
जब किसी शब्द के अंत में विसर्ग (ः) आता है और अगले शब्द से जुड़कर रूप बदल देता है।
👉 दुः + ख = दुख
Classroom Example:
“गुरु + इन्द्र” → बच्चे इसे लिखते समय बीच में ‘इ’ पर ध्यान दें ताकि वे स्वर संधि पहचान सकें।
परिभाषा:
विसर्ग (ः) एक विशेष ध्वनि चिह्न (special sound mark) है जो शब्द के अंत में आता है और ‘ह’ जैसी हल्की ध्वनि देता है।
👉 उदाहरण: दुःख, दःशरथ, विषःणु
उच्चारण:
विसर्ग का उच्चारण करते समय हल्की श्वास (breath) बाहर निकलती है — जैसे “अः”।
विसर्ग का प्रयोग:
यह अक्सर संस्कृत शब्दों या संधि में दिखाई देता है।
आधुनिक हिंदी में विसर्ग का प्रयोग कम हो गया है, पर ध्वन्यात्मक रूप में यह अभी भी पाया जाता है।
विसर्ग संधि का उदाहरण:
दुः + ख = दुख
सः + इन्द्र = सेंद्र
Classroom Example:
बच्चों को विसर्ग सिखाते समय “अः” बोलने का अभ्यास कराएँ, ताकि वे समझें कि यह “ह” जैसी हवा से निकलने वाली ध्वनि है।
सही उच्चारण और संधि का ज्ञान बच्चे को शुद्ध भाषा बोलने और लिखने में मदद करता है।
विसर्ग जैसी ध्वनियाँ बच्चों की ध्वनि-संवेदनशीलता (Sound Awareness) बढ़ाती हैं।
Teacher Activity Example:
शिक्षक बच्चों से ‘फल’, ‘फलक’, ‘दुख’ जैसे शब्द बुलवाकर उनके उच्चारण की तुलना करा सकते हैं।
उच्चारण (Pronunciation) – ध्वनियों को मुख से स्पष्ट रूप से निकालना।
मुख्य अंग: जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ।
संधि (Combination): दो शब्दों या वर्णों का मिलन।
➤ प्रकार – स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि।
विसर्ग (ः) – ‘ह’ जैसी हल्की ध्वनि, जो संस्कृत आधारित शब्दों में आती है।
सही उच्चारण और संधि ज्ञान से भाषा सुबोध, मधुर और स्पष्ट बनती है।
शिक्षक को बच्चों में उच्चारण अभ्यास और ध्वनि पहचान गतिविधियाँ करवानी चाहिए।
📋 Topics:-
संज्ञा (Noun) वह शब्द है जो किसी व्यक्ति (Person), वस्तु (Thing), स्थान (Place), भावना (Feeling) या गुण (Quality) का नाम बताता है।
➤ यानी नाम बताने वाले शब्द को संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण:
व्यक्ति: राम, रीना, शिक्षक
स्थान: दिल्ली, विद्यालय, गाँव
वस्तु: किताब, कुर्सी, पेन
भावना: प्यार, दुख, आनंद
गुण: सुंदरता, ईमानदारी
Classroom Example:
जब शिक्षक बच्चों से पूछते हैं — “तुम्हारा नाम क्या है?” तो बच्चा कहता है रवि, जो संज्ञा है।
व्यक्तिवाचक संज्ञा (Proper Noun) – किसी विशिष्ट व्यक्ति या वस्तु का नाम।
👉 राम, गीता, दिल्ली, भारत
जातिवाचक संज्ञा (Common Noun) – किसी समूह या वर्ग के हर व्यक्ति या वस्तु का सामान्य नाम।
👉 लड़का, लड़की, शहर, कुत्ता
भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun) – भावना, गुण या अवस्था को दर्शाने वाले शब्द।
👉 खुशी, डर, दया, सुंदरता
समूहवाचक संज्ञा (Collective Noun) – समूह या झुंड को दर्शाने वाले शब्द।
👉 सेना, झुंड, वर्ग, टोली
परिभाषा:
संज्ञा शब्दों के जिस रूप से यह पता चलता है कि वह पुरुष (Male) है या स्त्री (Female), उसे लिंग (Gender) कहते हैं।
मुख्य दो प्रकार:
पुल्लिंग (Masculine Gender): पुरुष जाति को दर्शाने वाले शब्द।
👉 लड़का, राजा, शिक्षक
स्त्रीलिंग (Feminine Gender): स्त्री जाति को दर्शाने वाले शब्द।
👉 लड़की, रानी, शिक्षिका
लिंग बदलने के तरीके (Ways to change Gender):
शब्द के रूप बदलने से: लड़का → लड़की
नए शब्द से: नर → मादा, भाई → बहन
प्रत्यय जोड़कर: राजा → रानी, शिक्षक → शिक्षिका
Classroom Example:
बच्चों से कहा जाए – “लड़का का स्त्रीलिंग बताओ” → लड़की
इससे वे लिंग परिवर्तन को समझ पाते हैं।
परिभाषा:
संज्ञा या सर्वनाम (Noun/Pronoun) के जिस रूप से एक या अनेक का बोध हो, उसे वचन (Number) कहते हैं।
दो प्रकार:
एकवचन (Singular): जब किसी एक व्यक्ति या वस्तु की बात हो।
👉 लड़का, फूल, बच्चा
बहुवचन (Plural): जब एक से अधिक व्यक्ति या वस्तुओं की बात हो।
👉 लड़के, फूलों, बच्चों
वचन बदलने के कुछ नियम:
लड़का → लड़के
किताब → किताबें
घर → घर (कुछ शब्दों में बदलाव नहीं होता)
Daily Example:
शिक्षक पूछते हैं – “कक्षा में कितने बच्चे हैं?”
‘बच्चे’ शब्द बहुवचन है, क्योंकि वह एक से अधिक को बताता है।
परिभाषा:
जब संज्ञा या सर्वनाम का वाक्य के अन्य शब्दों से संबंध बताया जाता है, तो उसे कारक (Case) कहा जाता है।
➤ यह बताता है कि शब्द वाक्य में किस कार्य से जुड़ा है।
मुख्य 6 कारक:
कर्ता कारक (Subjective Case) – जो काम करता है।
👉 राम ने फल खाया। → ‘राम’ कर्ता है।
कर्म कारक (Objective Case) – जिस पर काम होता है।
👉 राम ने फल खाया। → ‘फल’ कर्म है।
करण कारक (Instrumental Case) – जिससे काम किया जाए।
👉 राम ने कलम से लिखा।
संप्रदान कारक (Dative Case) – जिसके लिए कुछ किया जाए।
👉 राम ने भाई को किताब दी।
अपादान कारक (Ablative Case) – जिससे अलग होना या दूरी बताना।
👉 राम गाँव से आया।
अधिकरण कारक (Locative Case) – जहाँ पर काम हो रहा है।
👉 राम घर में है।
Classroom Tip:
शिक्षक वाक्य बनवाकर बच्चों से पूछें — “इसमें काम कौन कर रहा है?”
इस तरह बच्चे कर्ता और कर्म का अंतर सीखते हैं।
संज्ञा, लिंग, वचन और कारक का ज्ञान बच्चे की वाक्य रचना (Sentence Formation) को मजबूत करता है।
इससे सही बोलने, लिखने और समझने की क्षमता बढ़ती है।
शिक्षक चित्र, वाक्य-खेल, बोलचाल अभ्यास से बच्चों को इन concepts से परिचित करा सकते हैं।
संज्ञा (Noun) – किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान या भावना का नाम।
लिंग (Gender) – पुल्लिंग व स्त्रीलिंग का भेद।
वचन (Number) – एकवचन व बहुवचन रूप।
कारक (Case) – वाक्य में संज्ञा का अन्य शब्दों से संबंध।
मुख्य कारक – कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, अधिकरण।
इनका ज्ञान भाषा के सही प्रयोग, लेखन व बोलचाल के लिए अत्यंत आवश्यक है।
सर्वनाम (Pronoun) वह शब्द है जो संज्ञा (Noun) के स्थान पर प्रयोग होता है, ताकि बार-बार नाम दोहराना न पड़े।
➤ शब्दार्थ: “सर्व + नाम” = सबके स्थान पर प्रयोग होने वाला नाम।
उदाहरण:
रवि स्कूल गया। रवि ने वहाँ पढ़ाई की।
→ यहाँ ‘रवि’ शब्द बार-बार दोहराया गया है।
इसे सर्वनाम से बदलने पर वाक्य होगा —
रवि स्कूल गया। वह वहाँ पढ़ाई कर रहा था।
यहाँ “वह” सर्वनाम है।
सरल भाषा में:
संज्ञा के नाम की जगह जो शब्द लेते हैं, वे सर्वनाम कहलाते हैं।
वाक्य को सरल, सुंदर और संक्षिप्त (Short & Clear) बनाता है।
भाषा में दोहराव (Repetition) को रोकता है।
संवाद (Conversation) को सहज बनाता है।
👉 उदाहरण: “रीना ने कहा कि वह आज नहीं आएगी।”
(‘रीना’ दोबारा कहने की जरूरत नहीं पड़ी)
भाषा शिक्षण में इसका ज्ञान बच्चों को वाक्य निर्माण (Sentence Formation) सिखाने में सहायक होता है।
हिंदी में मुख्यतः 8 प्रकार के सर्वनाम माने गए हैं —
(सभी को CTET pattern के अनुसार सरल रूप में समझाया गया है 👇)
👉 वे सर्वनाम जो व्यक्ति या वक्ता के आधार पर बदलते हैं।
तीन पुरुष (Persons) होते हैं:
प्रथम पुरुष (First Person): जो बोल रहा हो → मैं, हम
मध्यम पुरुष (Second Person): जिससे बात की जा रही हो → तू, तुम, आप
तृतीय पुरुष (Third Person): जिसके बारे में बात हो रही हो → वह, वे, यह, ये
उदाहरण:
मैं स्कूल जाता हूँ।
तुम कहाँ जा रहे हो?
वह किताब पढ़ रहा है।
Classroom Tip:
शिक्षक बच्चों से पूछें — “मैं कौन हूँ?” ताकि वे समझें कि वक्ता के अनुसार सर्वनाम बदलता है।
जब सर्वनाम अपने स्वयं (Self) के लिए प्रयोग होता है।
👉 स्वयं, खुद, अपना, अपनी, अपने
उदाहरण:
मैंने अपना काम पूरा किया।
सीमा ने खुद चित्र बनाया।
जो किसी वस्तु या व्यक्ति की पहचान (Pointing) बताते हैं।
👉 यह, वह, वही, यही, वही लोग
उदाहरण:
यह किताब मेरी है।
वही लड़का मेरा दोस्त है।
Daily Example:
शिक्षक जब बोर्ड की ओर इशारा कर कहते हैं — “यह अक्षर लिखो।” तो “यह” निश्चयवाचक सर्वनाम है।
जो किसी अनिश्चित व्यक्ति या वस्तु की ओर संकेत करें।
👉 कोई, कुछ, किसी, सब, सभी, हर कोई
उदाहरण:
कोई दरवाज़े पर है।
सब खुश हैं।
जो प्रश्न पूछने के लिए प्रयुक्त हों।
👉 कौन, क्या, किसने, किसे, कौन-सा, किसका
उदाहरण:
कौन आया है?
किसने किताब ली?
Classroom Example:
शिक्षक जब पूछते हैं — “कौन उत्तर बताएगा?” → यहाँ “कौन” प्रश्नवाचक सर्वनाम है।
जो किसी दूसरे शब्द से संबंध जोड़ते हैं।
👉 जो, जैसा, जितना, जहाँ, जिससे
उदाहरण:
जो मेहनत करता है, वही सफल होता है।
जहाँ इच्छा, वहाँ राह।
जो किसी समूह के हर व्यक्ति या वस्तु को अलग-अलग दिखाते हैं।
👉 प्रत्येक, हर, कोई न कोई
उदाहरण:
हर बच्चा ध्यान से पढ़े।
प्रत्येक छात्र अपनी कॉपी लाए।
जो दो या अधिक व्यक्तियों के पारस्परिक संबंध को दिखाते हैं।
👉 एक-दूसरे, परस्पर
उदाहरण:
दोनों भाई एक-दूसरे से प्यार करते हैं।
विद्यार्थी परस्पर सहायता करें।
सर्वनाम हमेशा संज्ञा के स्थान पर आता है।
👉 रीता स्कूल गई। वह वहाँ पढ़ती है।
सर्वनाम का लिंग और वचन, संज्ञा के अनुसार बदलता है।
👉 रीता → वह गई (स्त्रीलिंग)
👉 राम → वह गया (पुल्लिंग)
वाक्य की स्पष्टता (Clarity) बनाए रखने के लिए सही सर्वनाम का चयन जरूरी है।
गलत सर्वनाम वाक्य का अर्थ बदल सकता है।
👉 वह और वह गए। (यहाँ अस्पष्टता है)
शिक्षक को यह अंतर बच्चों को उदाहरणों से सिखाना चाहिए।
सर्वनाम ज्ञान से बच्चों में सही वाक्य रचना और संचार कौशल विकसित होता है।
यह बच्चों को भाषा की संरचना (Language Structure) समझने में मदद करता है।
शिक्षक संवाद अभ्यास (Conversation Practice) के माध्यम से सर्वनाम के सही प्रयोग सिखा सकते हैं।
➤ उदाहरण: “मैं खेलता हूँ”, “तू खेलता है”, “वह खेलता है”।
सर्वनाम (Pronoun) — संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त शब्द।
मुख्य 8 प्रकार —
पुरुषवाचक
निजवाचक
निश्चयवाचक
अनिश्चयवाचक
प्रश्नवाचक
सम्बन्धवाचक
अन्यवाचक
परस्परवाचक
सर्वनाम से भाषा संक्षिप्त, सुंदर और अर्थपूर्ण बनती है।
शिक्षक को बोलचाल, भूमिका-अभिनय (Role Play) और प्रश्नोत्तर अभ्यास द्वारा यह विषय बच्चों को सिखाना चाहिए।
विशेषण (Adjective) वह शब्द होता है जो संज्ञा (Noun) या सर्वनाम (Pronoun) की विशेषता (Quality / Quantity / State) बताता है।
यह बताता है कि व्यक्ति, वस्तु या स्थान कैसा है, कितना है, या किसका है।
विशेषण हमेशा संज्ञा या सर्वनाम से जुड़ा रहता है और उसका वर्णन करता है।
🧩 उदाहरण:
सुंदर बच्चा खेल रहा है। (यहाँ ‘सुंदर’ बच्चे की विशेषता बता रहा है।)
तीन लड़कियाँ आईं। (यहाँ ‘तीन’ संख्या की मात्रा बता रहा है।)
जो किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण (quality) को बताता है।
यह बताता है कि कोई व्यक्ति या वस्तु कैसी है।
🧩 उदाहरण:
सुंदर फूल, मीठा फल, अच्छा बच्चा
(“सुंदर”, “मीठा”, “अच्छा” — सभी गुण बताते हैं।)
🧾 Classroom Example:
शिक्षक कहे — “बच्चो! तुमने जो अच्छा काम किया, वह सराहनीय है।”
(यहाँ “अच्छा” विशेषण है क्योंकि यह ‘काम’ की विशेषता बता रहा है।)
जो किसी वस्तु या व्यक्ति की संख्या या मात्रा (number or quantity) बताता है।
🧩 उदाहरण:
तीन लड़के, पाँच किताबें, कुछ विद्यार्थी
(“तीन”, “पाँच”, “कुछ” — संख्या या मात्रा दर्शा रहे हैं।)
🧾 Daily Life Example:
“मेरे पास दो पेंसिल हैं।” — यहाँ ‘दो’ संख्यावाचक विशेषण है।
जो किसी व्यक्ति या वस्तु की ओर संकेत (point out) करता है।
🧩 उदाहरण:
यह किताब, वह लड़का, ऐसे लोग
(“यह”, “वह”, “ऐसे” — सभी संकेतवाचक हैं।)
🧾 Classroom Example:
“यह ब्लैकबोर्ड साफ करो।” — यहाँ ‘यह’ संकेतवाचक विशेषण है।
जो स्वामित्व या संबंध (possession/relationship) बताता है।
🧩 उदाहरण:
मेरा घर, तुम्हारा बैग, उनका स्कूल
(“मेरा”, “तुम्हारा”, “उनका” — संबंध दर्शा रहे हैं।)
जो किसी संज्ञा के बारे में प्रश्न (question) करता है।
🧩 उदाहरण:
कौन आदमी, कैसा फल, किस किताब
(“कौन”, “कैसा”, “किस” — प्रश्नवाचक विशेषण हैं।)
🧾 Classroom Example:
“कौन विद्यार्थी अनुपस्थित है?” — यहाँ ‘कौन’ विशेषण है क्योंकि यह ‘विद्यार्थी’ से जुड़ा है।
लिंग (Gender):
विशेषण संज्ञा के लिंग के अनुसार बदलता है।
उदाहरण: सुंदर लड़का → सुंदर लड़की (यहाँ ‘सुंदर’ अपरिवर्तनीय है)
अच्छा लड़का → अच्छी लड़की (यहाँ ‘अच्छा’ → ‘अच्छी’ में परिवर्तन हुआ।)
वचन (Number):
विशेषण एकवचन या बहुवचन के अनुसार बदल सकता है।
उदाहरण: अच्छा बच्चा → अच्छे बच्चे
कारक (Case):
वाक्य में संज्ञा के कारक (Nominative, Objective, etc.) के अनुसार विशेषण का रूप बदल सकता है।
उदाहरण: अच्छा लड़का आया (कर्तृ कारक)
अच्छे लड़के को बुलाओ (सम्बन्ध/कर्म कारक)
विशेषण संज्ञा से पहले या बाद में आ सकता है —
उदाहरण: सुंदर लड़की या लड़की सुंदर है।
विशेषण वाक्य को अर्थपूर्ण और भावपूर्ण बनाता है।
यह वाक्य की अभिव्यक्ति (expression) को सजीव करता है।
🧾 Classroom Example:
“बच्चे मेहनती हैं।”
→ यदि “मेहनती” हटा दें तो वाक्य अधूरा लगेगा। इसलिए विशेषण का प्रयोग भाषा की सुंदरता बढ़ाता है।
संज्ञा (Noun) वस्तु या व्यक्ति का नाम बताती है।
विशेषण (Adjective) उस वस्तु या व्यक्ति की विशेषता बताता है।
🧩 उदाहरण:
राम (संज्ञा)
अच्छा राम (विशेषण + संज्ञा)
विशेषण (Adjective) — वह शब्द जो संज्ञा/सर्वनाम की विशेषता बताता है।
इसके मुख्य भेद — गुणवाचक, संख्यावाचक, संकेतवाचक, सम्बन्धवाचक, प्रश्नवाचक।
विशेषण लिंग, वचन, कारक के अनुसार बदल सकते हैं।
यह वाक्य को भावपूर्ण और अर्थपूर्ण बनाता है।
विशेषण भाषा की सुंदरता और स्पष्टता (clarity) बढ़ाता है।
क्रिया (Verb) वह शब्द है जो किसी कार्य (Action), घटना (Event) या अवस्था (State) को दर्शाता है।
क्रिया वाक्य का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होती है क्योंकि यह बताती है कि क्या काम हो रहा है, कौन कर रहा है, और कब हो रहा है।
बिना क्रिया के वाक्य अधूरा होता है।
🧩 उदाहरण:
राम खेलता है।
बच्चे पढ़ रहे हैं।
(यहाँ “खेलता” और “पढ़ रहे” क्रिया हैं क्योंकि ये कार्य दिखा रहे हैं।)
जिस क्रिया के साथ कर्म (Object) आता है, वह सकर्मक कहलाती है।
🧩 उदाहरण:
राम फल खाता है।
(यहाँ ‘फल’ कर्म है, इसलिए ‘खाता’ सकर्मक क्रिया है।)
जिस क्रिया को कर्म की आवश्यकता नहीं होती, वह अकर्मक होती है।
🧩 उदाहरण:
बच्चे सो रहे हैं।
(‘सोना’ को किसी कर्म की ज़रूरत नहीं — इसलिए अकर्मक क्रिया है।)
काल (Tense) का अर्थ है — समय का बोध कराने वाला रूप।
यह बताता है कि कार्य कब हुआ, हो रहा है, या होगा।
जब कार्य अभी हो रहा हो, तो वर्तमान काल कहलाता है।
🧩 उदाहरण:
मैं स्कूल जाता हूँ।
बच्चे खेल रहे हैं।
(कार्य इस समय हो रहा है।)
जब कार्य पहले हो चुका हो, तो भूतकाल कहलाता है।
🧩 उदाहरण:
मैं कल स्कूल गया था।
बच्चे कल खेल रहे थे।
जब कार्य आने वाले समय में होगा, तो भविष्यत काल कहलाता है।
🧩 उदाहरण:
मैं कल स्कूल जाऊँगा।
बच्चे कल खेलेंगे।
वाच्य (Voice) का अर्थ है — वाक्य में कर्ता (Subject), क्रिया (Verb) और कर्म (Object) के संबंध का रूप।
यह बताता है कि कार्य कर्ता कर रहा है या उस पर किया जा रहा है।
जब कर्ता स्वयं कार्य करता है, तब वाक्य कर्तृवाच्य कहलाता है।
🧩 उदाहरण:
राम पत्र लिखता है।
(यहाँ राम कार्य कर रहा है।)
🧾 Classroom Example:
“सीमा कविता सुनाती है।” — यहाँ सीमा कर्ता है और कार्य कर रही है।
जब कार्य कर्ता द्वारा किया जाता है, और कर्म पर प्रभाव पड़ता है, तब कर्मवाच्य होता है।
🧩 उदाहरण:
पत्र राम द्वारा लिखा गया।
(यहाँ ‘पत्र’ पर कार्य हुआ है।)
🧾 Daily Life Example:
“खाना माँ द्वारा बनाया गया।” — यहाँ ‘खाना’ कर्म है और कार्य माँ ने किया है।
जब वाक्य में कर्ता स्पष्ट नहीं होता, और केवल कार्य का भाव प्रकट होता है।
🧩 उदाहरण:
यहाँ नाचा जा रहा है।
गाना गाया जा चुका है।
(यहाँ यह नहीं बताया गया कि कौन नाच रहा है या कौन गा रहा है।)
क्रिया कर्ता के पुरुष (Person) और वचन (Number) के अनुसार बदलती है।
मैं जाता हूँ। / हम जाते हैं।
वह आता है। / वे आते हैं।
यह काल (Tense) के अनुसार भी रूप बदलती है।
आता है → आया → आएगा
क्रिया का सही प्रयोग वाक्य की शुद्धता (Correctness) और अर्थ की स्पष्टता (Clarity) बनाए रखता है।
🧾 Daily Life Example:
“माँ खाना बनाती है।” (कर्तृवाच्य)
“खाना माँ द्वारा बनाया गया।” (कर्मवाच्य)
“यहाँ खाना बनाया जा रहा है।” (भाववाच्य)
🧾 Classroom Example:
शिक्षक: “बच्चों! ‘लिखना’ क्रिया को अलग-अलग कालों में बदलो।”
छात्र:
वर्तमान – मैं लिखता हूँ।
भूतकाल – मैं लिखा था।
भविष्यत – मैं लिखूँगा।
क्रिया (Verb) कार्य, अवस्था या घटना को बताती है।
मुख्य भेद — सकर्मक और अकर्मक क्रिया।
काल (Tense) तीन हैं — वर्तमान, भूत, भविष्यत।
वाच्य (Voice) तीन हैं — कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य, भाववाच्य।
क्रिया कर्ता, वचन, और काल के अनुसार बदलती है।
भाषा की अर्थपूर्णता और व्याकरणिक शुद्धता क्रिया पर निर्भर करती है।
क्रियाविशेषण (Adverb) वह शब्द है जो क्रिया (Verb), विशेषण (Adjective) या दूसरे क्रियाविशेषण की विशेषता (Quality / Manner) बताता है।
यह बताता है कि कार्य कैसे (How), कब (When), कहाँ (Where), कितना (How much) या किस उद्देश्य से (Why) हुआ।
यह वाक्य में क्रिया को अधिक स्पष्ट और अर्थपूर्ण बनाता है।
🧩 उदाहरण:
राम तेज़ी से दौड़ता है। (यहाँ ‘तेज़ी से’ क्रियाविशेषण है क्योंकि यह ‘दौड़ता है’ क्रिया की विशेषता बता रहा है।)
सीता बहुत सुंदर गाती है। (‘बहुत’ क्रियाविशेषण है, जो ‘सुंदर’ विशेषण की मात्रा बता रहा है।)
अगर किसी वाक्य में पूछा जाए — कार्य कैसे हुआ?, कब हुआ?, कहाँ हुआ?, कितना हुआ? —
और जो शब्द उत्तर दे, वह क्रियाविशेषण कहलाता है।
यह संज्ञा (Noun) या सर्वनाम (Pronoun) को नहीं, बल्कि क्रिया या विशेषण को प्रभावित करता है।
🧾 Example for classroom:
शिक्षक ने पूछा – “राम कैसे बोलता है?”
छात्र ने उत्तर दिया – “राम धीरे-धीरे बोलता है।”
यहाँ “धीरे-धीरे” क्रियाविशेषण है क्योंकि यह “बोलता है” क्रिया की विशेषता बता रहा है।
यह बताता है कि कार्य कैसे किया गया।
🧩 उदाहरण:
बच्चा धीरे-धीरे चलता है।
वह साफ-साफ बोलता है।
(यहाँ “धीरे-धीरे”, “साफ-साफ” रीति या तरीके को दर्शा रहे हैं।)
यह बताता है कि कार्य कब हुआ।
🧩 उदाहरण:
मैं आज स्कूल गया।
वह जल्द आएगा।
कल, अब, तुरंत आदि शब्द समय वाचक हैं।
यह बताता है कि कार्य कहाँ हुआ।
🧩 उदाहरण:
बच्चा बाहर खेल रहा है।
वह यहाँ बैठा है।
यहाँ, वहाँ, ऊपर, नीचे आदि स्थान वाचक शब्द हैं।
यह बताता है कि कार्य या विशेषण कितनी मात्रा में हुआ।
🧩 उदाहरण:
राम बहुत अच्छा गाता है।
वह थोड़ा दुखी है।
बहुत, अत्यंत, थोड़ा, कुछ, काफी — मात्रा वाचक हैं।
जो क्रिया को नकारता या अस्वीकार करता है, वह नकारात्मक क्रियाविशेषण कहलाता है।
🧩 उदाहरण:
वह कभी नहीं हँसता।
मैं नहीं जाऊँगा।
(“नहीं”, “कभी नहीं” — नकारात्मक क्रियाविशेषण हैं।)
जब प्रश्न पूछने के लिए क्रियाविशेषण प्रयोग हो।
🧩 उदाहरण:
तुम कब आए?
वह कहाँ गया?
तुमने यह काम क्यों किया?
(“कब”, “कहाँ”, “क्यों” — प्रश्नवाचक क्रियाविशेषण हैं।)
जो संदेह या अनिश्चितता (Uncertainty) प्रकट करे।
🧩 उदाहरण:
वह शायद आज आए।
वह संभवतः सफल होगा।
वाक्य में अर्थ की स्पष्टता (Clarity):
क्रियाविशेषण क्रिया के अर्थ को अधिक स्पष्ट और सजीव बनाता है।
🧩 उदाहरण: “सीमा गाती है।” → “सीमा मीठा गाती है।”
क्रिया की स्थिति या तीव्रता (Intensity):
यह बताता है कि कार्य कितनी तीव्रता से हुआ।
🧩 “राम तेज़ी से भागा।”
क्रिया की दिशा या स्थान (Direction / Place):
“बच्चा अंदर गया।”
भाव व्यक्त करने के लिए (Emotion Expression):
“वह निश्चित रूप से पास होगा।” (विश्वास का भाव)
शिक्षण में प्रयोग:
शिक्षक उदाहरणों द्वारा छात्रों से पूछ सकते हैं:
“राम कैसे बोलता है?”, “तुम कब आए?”, “वह कहाँ बैठा है?”
— जिससे छात्र स्वतः क्रियाविशेषण पहचानना सीखते हैं।
विशेषण (Adjective) संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है।
🧩 “सुंदर लड़की” — यहाँ “सुंदर” विशेषण है।
क्रियाविशेषण (Adverb) क्रिया या विशेषण की विशेषता बताता है।
🧩 “वह सुंदर गाती है।” — यहाँ “सुंदर” क्रियाविशेषण है।
क्रियाविशेषण (Adverb) – वह शब्द जो क्रिया, विशेषण या दूसरे क्रियाविशेषण की विशेषता बताए।
यह बताता है कि कार्य कैसे, कब, कहाँ, कितना, क्यों हुआ।
मुख्य भेद —
रीति वाचक
समय वाचक
स्थान वाचक
मात्रा वाचक
नकारात्मक
प्रश्नवाचक
संदेहवाचक
क्रियाविशेषण क्रिया को स्पष्ट, प्रभावी और सजीव बनाता है।
शिक्षण में इसका प्रयोग वाक्य निर्माण और शब्द पहचान के अभ्यासों से कराया जा सकता है।
📋 Topics:-
शब्द रचना (Word Formation) का अर्थ है – शब्दों में अर्थ जोड़ना या बदलना।
भाषा में नए शब्द बनाने के दो प्रमुख साधन हैं —
उपसर्ग (Prefix)
प्रत्यय (Suffix)
दोनों मिलकर किसी शब्द के अर्थ या रूप को बदल देते हैं।
🧩 उदाहरण:
“लिख” से — अलिखित, लेखक, लेखन, लिखाई आदि शब्द बने।
(यहाँ ‘अ’ उपसर्ग है और ‘क’ प्रत्यय है।)
उपसर्ग (Prefix) वह शब्दांश या अक्षर समूह है जो मूल शब्द (Root Word) के आगे लगकर उसके अर्थ में परिवर्तन करता है।
उपसर्ग स्वतंत्र शब्द नहीं होता; वह किसी अन्य शब्द से जुड़कर ही अर्थ देता है।
🧩 उदाहरण:
अन + न्याय = अन्याय
प्रति + दिन = प्रतिदिन
सु + नाम = सुनाम
अति + सुंदर = अतिसुंदर
संस्कृत उपसर्ग: — अ, अन्, प्रति, सु, सम्, नि, उप, परा, प्र, अव, आदि।
उर्दू/फारसी उपसर्ग: — बे, ला, ना, बद, नफ़र, आदि।
🧾 Daily Life Example:
बेईमान, नालायक, बदनाम
(यहाँ उपसर्ग बे-, ना-, बद- शब्द के आगे लगकर अर्थ बदल रहे हैं।)
विपरीत अर्थ देना (Opposite meaning):
अ + सुख = असुख (दुःख)
अधिकता या तीव्रता दिखाना (Intensity):
अति + सुंदर = अतिसुंदर
सम्मान या गुण दर्शाना (Honor / Good quality):
सु + कार्य = सुकर्म (अच्छा कार्य)
नकारात्मकता या कमी दर्शाना (Negation):
नि + नीति = नीति का अभाव → नीति-हीन
प्रत्यय (Suffix) वह शब्दांश या अक्षर समूह है जो मूल शब्द के पीछे लगकर उसके रूप या अर्थ में परिवर्तन करता है।
प्रत्यय से नए शब्द बनते हैं, जिन्हें तद्भव शब्द या व्युत्पन्न शब्द (Derived words) कहा जाता है।
🧩 उदाहरण:
खेल + क = खिलाड़ी
चल + ना = चलना
पढ़ + ई = पढ़ाई
मित्र + ता = मित्रता
संज्ञा बनाने वाले प्रत्यय (Noun-forming suffix):
पढ़ + ई → पढ़ाई
मित्र + ता → मित्रता
विशेषण बनाने वाले प्रत्यय (Adjective-forming suffix):
खेल + क → खिलाड़ी
बोल + क → बोलक (बोलने वाला)
क्रिया बनाने वाले प्रत्यय (Verb-forming suffix):
सुंदर + बन → सुंदर बनना
छोटा + करना → छोटा करना
नया शब्द बनाना (Word formation):
बाल + पन = बालपन
गुण या भाव प्रकट करना (Quality / State):
सज्जन + ता = सज्जनता
कर्म या क्रिया को रूप देना (Action form):
सीख + ना = सीखना
स्त्रीलिंग बनाना (Feminine formation):
राजा → रानी, लड़का → लड़की
स्थान (Position):
उपसर्ग — शब्द के आगे लगता है।
प्रत्यय — शब्द के पीछे लगता है।
कार्य (Function):
उपसर्ग — अर्थ में परिवर्तन करता है।
प्रत्यय — शब्द के रूप या वर्ग (part of speech) में परिवर्तन करता है।
स्वतंत्रता (Independence):
दोनों स्वतंत्र शब्द नहीं होते; मूल शब्द से जुड़कर ही अर्थपूर्ण बनते हैं।
🧩 उदाहरण तुलना:
उपसर्ग: अन + ज्ञ = अज्ञ (जो नहीं जानता)
प्रत्यय: ज्ञ + ता = ज्ञाता (जो जानता है)
Classroom Activity Example:
शिक्षक शब्द “लिख” देते हैं और छात्रों से कहते हैं —
“इस शब्द से नए शब्द बनाओ उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर।”
➤ बच्चे जवाब देते हैं: अलिखित, लेखक, लेखन, लिखाई।
इससे बच्चे शब्द निर्माण की प्रक्रिया (Word Formation Process) को practically समझते हैं।
भाषा शिक्षण में यह activity रचनात्मकता (Creativity) और भाषिक चेतना (Linguistic Awareness) दोनों बढ़ाती है।
उपसर्ग (Prefix): शब्द के आगे लगने वाला भाग जो अर्थ बदलता है।
जैसे – अन + नीत = अनीत, प्रति + दिन = प्रतिदिन।
प्रत्यय (Suffix): शब्द के पीछे लगने वाला भाग जो नया शब्द बनाता है।
जैसे – मित्र + ता = मित्रता, खेल + क = खिलाड़ी।
उपसर्ग और प्रत्यय दोनों व्युत्पन्न शब्द निर्माण (Derivation) के साधन हैं।
उपसर्ग → अर्थ में परिवर्तन, प्रत्यय → रूप में परिवर्तन करता है।
शिक्षण में उपसर्ग-प्रत्यय के प्रयोग से बच्चे शब्द-भंडार (Vocabulary) और व्याकरणिक समझ दोनों में निपुण बनते हैं।
‘समास’ (Compound word) शब्द दो शब्दों को जोड़कर संक्षेप में अर्थपूर्ण नया शब्द बनाने की प्रक्रिया है।
‘समास’ का अर्थ है – संक्षेप या जोड़ना (Combination / Compression)।
इसमें दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक शब्द बनाते हैं और वाक्यांश का अर्थ एक शब्द में व्यक्त होता है।
जो शब्द जुड़ते हैं उन्हें पूर्वपद (First part) और उत्तरपद (Second part) कहा जाता है।
🧩 उदाहरण:
राम का घर → रामघर
राजा का पुत्र → राजपुत्र
दिन और रात → दिनरात
यदि किसी वाक्यांश में दो शब्दों के बीच विभक्ति या सहायक शब्द (जैसे - का, की, से, और) हट जाएँ और एक अर्थपूर्ण शब्द बने — वहाँ समास होता है।
समास शब्द छोटा होता है लेकिन अर्थ बड़ा होता है।
🧾 उदाहरण:
गाय का दूध → गायदूध
सूरज की रोशनी → सूर्यप्रकाश
हिंदी में सामान्यतः चार प्रमुख प्रकार के समास माने जाते हैं —
(1) तत्पुरुष समास
(2) द्वंद्व समास
(3) कर्मधारय समास
(4) बहुव्रीहि समास
इसमें पहला पद (पूर्वपद) और दूसरा पद (उत्तरपद) मिलकर नया शब्द बनाते हैं,
परंतु प्रधानता उत्तरपद की होती है (यानि अर्थ मुख्य दूसरे शब्द का होता है)।
दोनों शब्दों के बीच सामान्यतः विभक्ति छिपी होती है (ka, ke, se, mein आदि)।
🧩 उदाहरण:
राजा का पुत्र → राजपुत्र
गुरु की सेवा → गुरुसेवा
जल में रहने वाला → जलचर
📘 Daily Life Example:
“विद्यालय” = विद्या + आलय → विद्या का घर (school)
षष्ठी तत्पुरुष (Genitive): — राम का घर → रामघर
द्वितीया तत्पुरुष (Accusative): — फल खाता → फलाहारी
सप्तमी तत्पुरुष (Locative): — जल में रहने वाला → जलचर
तृतीया तत्पुरुष (Instrumental): — मन से किया गया → मानसिक
(CTET में केवल पहचान और उदाहरण पूछे जाते हैं)
इसमें दोनों शब्द समान (equal) होते हैं और दोनों का समान महत्व (importance) रहता है।
अर्थ में “और” का भाव रहता है।
दो या अधिक समान वस्तुओं/व्यक्तियों के नाम जोड़ने से यह बनता है।
🧩 उदाहरण:
राम और लक्ष्मण → रामलक्ष्मण
दिन और रात → दिनरात
खेल और पढ़ाई → खेलपढ़ाई
📘 Class Example:
शिक्षक कहता है – “बच्चो, जब दो शब्दों में ‘और’ का भाव हो, जैसे माँ और पिता, तो वो समास कौन-सा?”
बच्चे उत्तर देते हैं – द्वंद्व समास।
इसमें दोनों शब्द एक ही वस्तु या व्यक्ति की विशेषता बताते हैं।
पहला शब्द विशेषण (Adjective) और दूसरा शब्द संज्ञा (Noun) होता है।
दोनों मिलकर एक ही अर्थ देते हैं।
🧩 उदाहरण:
सुंदर लड़की → सुंदरी
नीला आसमान → नीलाकाश
बड़ा घर → महागृह
📘 Classroom Connection:
जब बच्चा कहता है “लाल फूल”, शिक्षक समझा सकता है कि यह “लालफूल” → कर्मधारय समास है, क्योंकि “लाल” फूल की विशेषता है।
इसमें बने हुए शब्द का अर्थ किसी तीसरे व्यक्ति या वस्तु से संबंधित होता है, न कि जुड़े हुए दोनों शब्दों से।
इसमें दोनों पदों का अर्थ छोड़कर एक नया अर्थ निकलता है।
यह समास विशेषण के रूप में प्रयोग होता है।
🧩 उदाहरण:
जिसके सिर पर चाँद हो → चंद्रमुख (यानि सुंदर व्यक्ति)
जिसके हाथ में धन हो → धनवान
जिसका हृदय पत्थर जैसा हो → पत्थरदिल
📘 Daily Life Example:
शब्द “लालची” = लालच वाला व्यक्ति → बहुव्रीहि समास।
Activity-based learning:
बोर्ड पर “गुरु की सेवा” लिखकर पूछें — “इसे एक शब्द में कैसे कहेंगे?”
➤ विद्यार्थी उत्तर देते हैं: “गुरुसेवा।”
शिक्षक समझाते हैं कि यह तत्पुरुष समास है।
बच्चों को “word-building cards” देकर खेल करवाएँ –
जैसे “दिन”, “रात” → बच्चे जोड़ें “दिनरात” (द्वंद्व समास)।
इस तरह बच्चे रचनात्मक रूप से शब्द-रचना प्रक्रिया (Word Formation Process) सीखते हैं।
समास (Compound) = दो शब्दों का संक्षेप रूप में संयोजन।
तत्पुरुष समास: पहला शब्द सहायक, दूसरा प्रधान। जैसे – राजपुत्र।
द्वंद्व समास: दोनों समान। जैसे – रामलक्ष्मण, दिनरात।
कर्मधारय समास: विशेषण + संज्ञा। जैसे – नीलाकाश, महागृह।
बहुव्रीहि समास: अर्थ किसी तीसरे व्यक्ति/वस्तु से संबंधित। जैसे – धनवान, पत्थरदिल।
समास का उद्देश्य — भाषा को संक्षिप्त, प्रभावी और सुंदर बनाना।
CTET में अक्सर पूछा जाता है:
“निम्न में से कौन-सा शब्द तत्पुरुष/द्वंद्व/बहुव्रीहि समास है?”
‘संधि’ शब्द संस्कृत से आया है जिसका अर्थ है ‘मेल’ या ‘जोड़’ (Combination / Junction)।
जब दो शब्द या दो वर्ण आपस में मिलते हैं और उनके ध्वनियों में परिवर्तन (sound change) होता है, तब उसे संधि कहा जाता है।
यह शब्दों को जोड़ने की प्राकृतिक प्रक्रिया (Natural Process of Word Combination) है।
संधि से भाषा मधुर, प्रवाहपूर्ण (fluent) और संक्षिप्त (short) बनती है।
🧩 उदाहरण:
राम + इश्वर = रामेश्वर
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश → गुरूपदेश → गुरुपदेश → गुरुपदेश
📘 Daily Life Example:
बच्चे बोलते हैं “रामेश्वरम् मंदिर” — यह “राम + ईश्वर” की स्वर संधि का उदाहरण है।
हिंदी में मुख्यतः तीन प्रकार की संधियाँ होती हैं —
स्वर संधि (Vowel Combination)
व्यंजन संधि (Consonant Combination)
विसर्ग संधि (Visarga Combination)
(CTET syllabus में स्वर संधि और व्यंजन संधि का विशेष अध्ययन आवश्यक है।)
जब दो शब्दों के अंत और आरंभ में स्वर (Vowels) हों और उनके मिलने पर स्वरों में परिवर्तन हो जाए, तो इसे स्वर संधि कहा जाता है।
इसमें अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ जैसे स्वर (vowels) भाग लेते हैं।
🧩 Example:
राम + ईश्वर = रामेश्वर
गुरु + आश्रम = गुरूआश्रम → गुरुआश्रम
स्वर संधि में तीन प्रमुख प्रकार माने गए हैं —
जब ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ आते हैं तो इन स्वरों का मेल होकर नया स्वर बनता है।
इसे Guna (Modification) कहा जाता है।
🧩 Examples:
गुरु + ईश्वर = गुरेश्वर
राम + इंद्र = रामेन्द्र
लोक + उपकार = लोकोपकार
📘 Classroom Example:
शिक्षक पूछते हैं – “राम + इंद्र मिलाकर क्या बनेगा?”
विद्यार्थी कहते हैं – “रामेन्द्र।” शिक्षक बताते हैं – “यह गुण संधि है।”
जब ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ आते हैं, तो नए दीर्घ स्वर (long vowels) बनते हैं।
यह स्वर का विस्तार (Expansion of sound) कहलाता है।
🧩 Examples:
देव + एन्द्र = देवेंद्र
राज + औदार्य = राजौदार्य
मह + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
📘 Simple Example:
“राज + औदार्य” = राजौदार्य → क्योंकि अ + औ = औ बनता है (वृद्धि संधि)।
जब किसी शब्द के अंत में ‘इ’ या ‘ई’ और दूसरे शब्द के आरंभ में कोई स्वर आता है, तो उनके बीच ‘य’ आ जाता है।
यह स्वर के बीच संधि स्वरूप य-ध्वनि (y-sound) है।
🧩 Examples:
गति + अर्ध = गत्यर्ध
नदी + ईश्वर = नदीश्वर → नद्यश्वर
मति + उन्नति = मत्युन्नति
📘 Classroom Tip:
शिक्षक समझाते हैं – “जब इ/ई के बाद स्वर आता है, तो ‘य’ जोड़ दो — यही यण संधि है।”
जब किसी शब्द के अंत में व्यंजन (Consonant) हो और दूसरे शब्द की शुरुआत भी व्यंजन से हो,
तथा उनके मेल से ध्वनि परिवर्तन या नई ध्वनि बन जाए, तो उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
यह उच्चारण में सरलता लाने के लिए होती है।
🧩 Examples:
सत् + गुण = सद्गुण
तत् + चित्त = तच्चित्त
शुभ + कर्म = शुभ्कर्म → शुक्कर्म → सुकर्म
जब पहले शब्द का अंत किसी अनुस्वार (ं) या व्यंजन से होता है और दूसरे शब्द की शुरुआत भी व्यंजन से होती है,
तो पहला व्यंजन दूसरे के समान (similar sound) हो जाता है।
🧩 Examples:
सत् + जन = सज्जन
तत् + तप = तत्तप
सत् + गुण = सद्गुण
📘 Meaning: परसवर्ण = समान ध्वनि (Same sound consonant)।
इसमें पहले शब्द का अंत हलन्त व्यंजन (जैसे त्, द्, ब्) होता है,
और दूसरे शब्द की शुरुआत ध्वनि से होती है, तो पहला व्यंजन अपने जश्त्व (voiced form) में बदल जाता है।
🧩 Examples:
तत् + कार = तद्कार
सत् + गुण = सद्गुण
📘 Class Example:
शिक्षक कहते हैं — “सत् + गुण में त द में बदल गया — यह जश्त्व संधि है।”
जब किसी शब्द के अंत में ‘ष’, ‘श’ या ‘स’ और दूसरे में ‘च’ या ‘छ’ हो,
तो मिलकर ‘श्च’ या ‘श्छ’ जैसी ध्वनि बनती है।
🧩 Examples:
दिश् + चक्र = दिश्चक्र
विश् + चित्त = विश्चित्त
शब्द रचना (Word Formation) की प्रक्रिया सिखाने में मदद करती है।
बच्चों को ध्वनियों के मेल से नया शब्द बनाने की समझ देती है।
Activity Example:
शिक्षक दो कार्ड देते हैं — “राम” और “ईश्वर” → बच्चा जोड़कर बोले “रामेश्वर” → शिक्षक बताएँ “स्वर संधि”।
इससे बच्चे भाषा की संरचना (Language Structure) समझते हैं और शुद्ध लेखन सीखते हैं।
संधि (Sandhi) = दो वर्णों या शब्दों का मेल, जिससे ध्वनि में परिवर्तन होता है।
मुख्य प्रकार –
स्वर संधि
व्यंजन संधि
विसर्ग संधि
स्वर संधि के तीन रूप – गुण, वृद्धि, यण
व्यंजन संधि के रूप – परसवर्ण, जश्त्व, श्चुत्व
संधि से भाषा संक्षिप्त, मधुर और प्रभावशाली बनती है।
CTET में प्रायः पूछा जाता है —
“रामेश्वर शब्द में कौन-सी संधि है?” → स्वर संधि (गुण संधि)
वाक्य (Sentence) शब्दों का वह समूह है जो पूर्ण अर्थ (Complete Meaning) प्रकट करता है।
जैसे – राम स्कूल जाता है।
👉 यहाँ “राम”, “स्कूल”, “जाता”, “है” — ये चार शब्द मिलकर एक पूरा अर्थ देते हैं।
अगर शब्दों का समूह अपूर्ण अर्थ देता है, तो वह वाक्य नहीं कहलाता।
जैसे – राम स्कूल (यहाँ कुछ अधूरा है – क्या करता है?)
मुख्य उद्देश्य: किसी विचार (Thought), भावना (Emotion) या आदेश (Command) को व्यक्त करना।
कर्ता (Subject) – जो कार्य करता है या जिसके बारे में कुछ कहा जाता है।
Example: सीमा पढ़ती है।
👉 यहाँ “सीमा” कर्ता है।
क्रिया (Verb) – जो कार्य या स्थिति बताती है।
Example: सीमा पढ़ती है।
👉 “पढ़ती है” क्रिया है।
कर्म (Object) – जिस पर कार्य होता है।
Example: राम फल खाता है।
👉 “फल” कर्म है।
वाक्य को कई आधारों पर बाँटा जा सकता है।
CTET दृष्टि से मुख्य 4 प्रकार महत्वपूर्ण हैं 👇
वर्णनात्मक वाक्य (Declarative Sentence)
जो किसी तथ्य, घटना या विचार को बताता है।
दो प्रकार के होते हैं –
(i) सकारात्मक (Affirmative) – राम पढ़ता है।
(ii) नकारात्मक (Negative) – राम नहीं पढ़ता है।
प्रश्नवाचक वाक्य (Interrogative Sentence)
जिसमें प्रश्न पूछा जाए (Question asked)।
Examples:
क्या तुम स्कूल गए थे?
कौन दरवाज़े पर है?
आज्ञार्थक वाक्य (Imperative Sentence)
जिसमें आदेश, निवेदन, सलाह या प्रार्थना व्यक्त की जाए।
Examples:
दरवाज़ा बंद करो। (आदेश)
कृपया बैठ जाइए। (निवेदन)
विस्मयादिबोधक वाक्य (Exclamatory Sentence)
जिसमें आश्चर्य, प्रसन्नता, दुःख या भावनाएँ व्यक्त हों।
Examples:
वाह! कितना सुंदर चित्र है!
अरे! तुम यहाँ कैसे!
सरल वाक्य (Simple Sentence)
जिसमें केवल एक कर्ता और एक क्रिया हो।
Example: रीना गाना गाती है।
संयुक्त वाक्य (Compound Sentence)
दो या अधिक सरल वाक्य संयोजक शब्दों (Conjunctions) से मिलकर बने हों।
Example: मैं स्कूल गया और वह बाज़ार गया।
संयोजक शब्द जैसे — और, परंतु, किंतु, क्योंकि आदि।
मिश्र वाक्य (Complex Sentence)
जिसमें एक मुख्य वाक्य (Main Clause) और एक या अधिक उपवाक्य (Subordinate Clause) हों।
Example: मैंने देखा कि वह रो रहा था।
👉 “मैंने देखा” – मुख्य वाक्य,
“कि वह रो रहा था” – उपवाक्य।
संबोधन वाक्य (Vocative Sentence) – किसी को पुकारने के लिए।
Example: अरे रीना! सुनो तो ज़रा।
शर्तवाचक वाक्य (Conditional Sentence) – जिसमें कोई शर्त व्यक्त हो।
Example: अगर तुम मेहनत करोगे, तो पास हो जाओगे।
वाक्य में शब्दों का क्रम (Word order) सही होना चाहिए।
गलत: खेल रहा राम है।
सही: राम खेल रहा है।
क्रिया का मेल (Agreement) – कर्ता के साथ क्रिया का मेल होना चाहिए।
गलत: लड़की खेल रहे हैं।
सही: लड़की खेल रही है।
अर्थ की पूर्णता (Completeness of Meaning) – वाक्य से पूरा अर्थ निकलना चाहिए।
मैं CTET की तैयारी कर रहा हूँ। → वर्णनात्मक
क्या तुमने होमवर्क किया? → प्रश्नवाचक
पढ़ाई ध्यान से करो। → आज्ञार्थक
वाह! तुमने बहुत अच्छा लिखा। → विस्मयादिबोधक
वाक्य = शब्दों का समूह जो पूर्ण अर्थ देता है।
मुख्य अंग – कर्ता, क्रिया, कर्म।
भाव के आधार पर 4 प्रकार:
वर्णनात्मक, प्रश्नवाचक, आज्ञार्थक, विस्मयादिबोधक।
रचना के आधार पर 3 प्रकार:
सरल, संयुक्त, मिश्र।
वाक्य शुद्ध होना चाहिए – क्रम, क्रिया और अर्थ सही हों।
CTET में प्रश्न आते हैं —
वाक्य पहचानना,
वाक्य के प्रकार बताना,
गलत वाक्य को सुधारना।
📋 Topics:-
भाषा के अध्ययन में शब्द ज्ञान (Vocabulary Knowledge) बहुत आवश्यक है।
शब्दों के सही अर्थ, प्रयोग और उनके आपसी संबंधों को जानने से भाषा अभिव्यक्ति (Expression) बेहतर होती है।
CTET में इससे संबंधित प्रश्न आते हैं जैसे –
दिए गए शब्द का पर्यायवाची (Synonym) बताइए।
दिए गए शब्द का विलोम (Antonym) क्या है?
परिभाषा (Definition):
जिन शब्दों के अर्थ समान या लगभग समान (Same or Nearly Same Meaning) हों, उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं।
📖 "पर्याय" का अर्थ है — समान अर्थ वाला।
उदाहरण (Examples):
सूर्य → रवि, दिनकर, भानु, आदित्य
जल → पानी, नीरा, तोय, वारि
पृथ्वी → धरती, धरणी, वसुंधरा
राजा → नरेश, भूपति, महीपाल
शत्रु → दुश्मन, वैरी, विरोधी
उपयोग (Usage):
पर्यायवाची शब्द भाषा को सुंदर (Beautiful) और समृद्ध (Rich) बनाते हैं।
जैसे: सूर्य उगा → दिनकर उदित हुआ
👉 वाक्य का भाव वही है, पर अभिव्यक्ति सुंदर हो गई।
ध्यान देने योग्य बातें:
सभी पर्यायवाची शब्द पूरी तरह समानार्थी नहीं होते।
कई बार उनमें भाव, प्रयोग या स्थिति का अंतर होता है।
जैसे – मरना के पर्याय: मरना, देहांत होना, निधन होना, स्वर्गवास होना
👉 सभी शब्द “death” के लिए हैं, पर मरना सामान्य है और स्वर्गवास होना सम्मानजनक प्रयोग है।
परिभाषा (Definition):
जिन शब्दों के अर्थ एक-दूसरे के विपरीत (Opposite Meaning) हों, उन्हें विलोम शब्द कहते हैं।
📖 "विलोम" का अर्थ है — उल्टा या विपरीत।
उदाहरण (Examples):
अंधकार – प्रकाश
सुख – दुःख
ऊँचा – नीचा
जीत – हार
नया – पुराना
दिन – रात
सत्य – असत्य
उपयोग (Usage):
विलोम शब्द से हमें अर्थ की स्पष्टता (Clarity) मिलती है।
उदाहरण:
“सुख” का अर्थ तभी अच्छी तरह समझ आता है जब हम उसका विलोम “दुःख” जानते हैं।
ध्यान देने योग्य बातें:
कुछ शब्दों के एक से अधिक विलोम होते हैं।
जैसे – जीवन का विलोम “मृत्यु” या “मरण” दोनों हो सकते हैं।
विलोम हमेशा भाव के विपरीत अर्थ को दर्शाते हैं, न कि केवल रूप में भिन्नता को।
| बिंदु | पर्यायवाची | विलोम |
|---|---|---|
| अर्थ | समान या मिलते-जुलते अर्थ वाले शब्द | विपरीत अर्थ वाले शब्द |
| उदाहरण | जल – पानी | दिन – रात |
| उद्देश्य | भाषा की सुंदरता बढ़ाना | अर्थ की स्पष्टता देना |
| प्रभाव | समान अर्थ के अलग-अलग रूप देना | विरोध या भिन्नता दिखाना |
(टेबल नहीं है, केवल तुलना स्पष्ट करने हेतु बिंदुवार बताया गया है)
शिक्षक बोलते हैं:
“बच्चो! ‘सुंदर’ के पर्यायवाची बताओ।”
👉 रूपवान, मनोहर, आकर्षक
विद्यार्थी पूछता है:
“सर, ‘भला’ का विलोम क्या होगा?”
👉 “बुरा”
भाषा प्रयोग में:
“यह किताब बहुत अच्छी है।”
→ “यह पुस्तक बहुत सुंदर है।” (पर्यायवाची प्रयोग)
“दिन समाप्त हुआ, रात आरंभ हुई।” (विलोम प्रयोग)
पर्यायवाची और विलोम शब्दों से शब्द भंडार (Vocabulary Power) बढ़ता है।
बच्चे भाषा में भावपूर्ण अभिव्यक्ति (Expressive Language) करना सीखते हैं।
यह भाषा बोध, पठन-बोध और लेखन कौशल को सशक्त बनाता है।
CTET परीक्षा में अक्सर यह पूछा जाता है –
दिए गए शब्द का उचित पर्यायवाची/विलोम चुनिए।
पर्यायवाची शब्द = समान या मिलते-जुलते अर्थ वाले शब्द।
👉 जैसे – सूर्य = रवि, आदित्य, दिनकर
विलोम शब्द = विपरीत अर्थ वाले शब्द।
👉 जैसे – सुख = दुःख, अच्छा = बुरा
पर्यायवाची से भाषा सुंदर बनती है,
विलोम से अर्थ स्पष्ट होता है।
दोनों का अध्ययन भाषा-ज्ञान और शब्दावली को समृद्ध करता है।
CTET में इस टॉपिक से 2–3 प्रश्न नियमित पूछे जाते हैं।
भाषा की समझ (Language Understanding) के लिए शब्द ज्ञान (Word Knowledge) बहुत ज़रूरी है।
शब्दों का सही अर्थ और उनके प्रयोग को समझने से भाषा अभिव्यक्ति (Expression) सुंदर और सटीक बनती है।
“समानार्थक” और “अनेकार्थक” शब्दों का ज्ञान बच्चों की शब्दावली (Vocabulary) को बढ़ाता है और अर्थ बोध (Meaning Understanding) को गहरा करता है।
परिभाषा (Definition):
जिन शब्दों के अर्थ समान या मिलते-जुलते (Same or Similar Meaning) हों, उन्हें समानार्थक शब्द कहा जाता है।
👉 "समानार्थक" = समान + अर्थ वाला शब्द।
मुख्य बिंदु (Main Points):
ये शब्द एक ही वस्तु, व्यक्ति या भाव को अलग-अलग रूप में प्रकट करते हैं।
समानार्थक शब्द भाषा को समृद्ध (Rich) और सुंदर (Beautiful) बनाते हैं।
इनका प्रयोग शब्दों की पुनरावृत्ति (Repetition) से बचने के लिए किया जाता है।
उदाहरण (Examples):
जल → पानी, नीरा, तोय, वारि
सूर्य → रवि, दिनकर, आदित्य, भानु
राजा → नरेश, भूपति, महीपाल
पृथ्वी → धरती, वसुंधरा, धरा
कक्षा का उदाहरण (Classroom Example):
शिक्षक पूछते हैं –
“बच्चो, ‘पानी’ के समानार्थक शब्द बताओ।”
बच्चे कहते हैं – “जल, तोय, वारि।”
👉 इस तरह बच्चे शब्दों की विविधता सीखते हैं।
ध्यान रखने योग्य बात:
हर समानार्थक शब्द का प्रयोग और भाव थोड़ा भिन्न हो सकता है।
जैसे – “मरना” और “स्वर्गवास होना” दोनों समानार्थक हैं, पर भाव अलग है।
परिभाषा (Definition):
जिन शब्दों के एक से अधिक अर्थ (More than One Meaning) होते हैं, उन्हें अनेकार्थक शब्द कहा जाता है।
👉 "अनेक" = कई + "अर्थ" = अर्थ वाले शब्द।
मुख्य बिंदु (Main Points):
ये शब्द एक ही रूप में लिखे जाते हैं, लेकिन विभिन्न सन्दर्भों (Contexts) में अलग-अलग अर्थ प्रकट करते हैं।
इनका सही अर्थ समझने के लिए वाक्य का भाव (Sentence Context) देखना ज़रूरी होता है।
CTET में ऐसे प्रश्न अक्सर आते हैं – “‘कल’ शब्द का सही अर्थ क्या है?”
उदाहरण (Examples):
कल – (i) बीता हुआ या आने वाला दिन (Yesterday/Tomorrow)
➤ मैं कल स्कूल गया था।
➤ मैं कल बाज़ार जाऊँगा।
(ii) यंत्र (Machine) → यह कारखाना कल से चलता है।
नल – (i) जल निकालने का यंत्र → नल से पानी आ रहा है।
(ii) व्यक्ति का नाम → नल-दमनक कहानी में पात्र हैं।
हार – (i) गले का गहना → माँ ने मोतियों का हार पहना।
(ii) पराजय → भारत की टीम हार गई।
मुख – (i) चेहरा → उसका मुख सुंदर है।
(ii) द्वार → गुफा का मुख अंधेरा है।
कक्षा उदाहरण (Classroom Example):
शिक्षक कहते हैं — “बच्चो, ‘कल’ शब्द के कितने अर्थ हो सकते हैं?”
बच्चे उत्तर देते हैं — “दो अर्थ, सर! एक समय का, एक मशीन का।”
👉 इस तरह बच्चे Context से अर्थ पहचानना सीखते हैं।
समानार्थक शब्द → अलग-अलग शब्द, अर्थ एक।
उदाहरण: जल – पानी – तोय
अनेकार्थक शब्द → एक ही शब्द, अर्थ कई।
उदाहरण: कल = समय या यंत्र
👉 यानी समानार्थक में “शब्द” बदलते हैं,
और अनेकार्थक में “अर्थ” बदलते हैं।
समानार्थक शब्दों से विद्यार्थी अभिव्यक्ति की विविधता (Expression Variety) सीखते हैं।
अनेकार्थक शब्दों से वाक्य-भाव की गहराई (Contextual Meaning) समझ में आती है।
इनसे पठन-बोध (Reading Comprehension) और शब्द बोध (Word Understanding) दोनों मजबूत होते हैं।
CTET परीक्षा में इस टॉपिक से अक्सर प्रश्न आते हैं जैसे –
“‘कल’ शब्द का सही अर्थ कौन-सा है?”
“‘जल’ का समानार्थक शब्द बताइए।”
समानार्थक शब्द = अलग-अलग शब्द, अर्थ समान।
👉 जैसे – सूर्य = रवि, भानु, आदित्य
अनेकार्थक शब्द = एक शब्द, अर्थ कई।
👉 जैसे – कल = बीता हुआ दिन / यंत्र
समानार्थक शब्द भाषा को सुंदर और विविधतापूर्ण बनाते हैं।
अनेकार्थक शब्द भाषा को गहराई और अर्थ-समृद्धि देते हैं।
दोनों ही CTET में शब्द ज्ञान के महत्वपूर्ण भाग हैं।
शब्द ज्ञान (Word Knowledge) का अर्थ है — भाषा में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ, प्रयोग और भाव समझना।
मुहावरे और लोकोक्तियाँ भाषा को जीवंत (Lively), प्रभावशाली (Impressive) और रोचक (Interesting) बनाते हैं।
CTET में यह टॉपिक इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे भाषाई संवेदना (Language Sensitivity) और सांस्कृतिक समझ (Cultural Understanding) दोनों का मूल्यांकन किया जाता है।
परिभाषा (Definition):
जो वाक्यांश (Phrase) किसी विशेष अर्थ (Special Meaning) में प्रयुक्त होते हैं और जिनका अर्थ शब्दों के सामान्य अर्थ से अलग (Figurative Meaning) होता है, उन्हें मुहावरा (Idiom) कहा जाता है।
👉 मुहावरे का अर्थ शब्दों से नहीं, पूरे वाक्यांश के भाव से निकलता है।
मुख्य बिंदु (Main Points):
मुहावरे भाषा को संक्षिप्त (Concise) और भावपूर्ण (Expressive) बनाते हैं।
ये प्रायः बोलचाल की भाषा (Spoken Form) में अधिक प्रयुक्त होते हैं।
इनका अर्थ स्थायी (Fixed) होता है — शब्द बदलने से अर्थ बदल जाता है।
उदाहरण (Examples):
आसमान से बातें करना → बहुत ऊँचा होना।
उदाहरण: वह इमारत आसमान से बातें कर रही है।
नाक में दम करना → बहुत परेशान करना।
उदाहरण: बच्चों ने पूरे दिन नाक में दम कर दिया।
आँखों का तारा होना → बहुत प्यारा होना।
उदाहरण: रीना अपनी माँ की आँखों का तारा है।
नाक कटना → अपमान होना।
उदाहरण: झूठ पकड़े जाने पर उसकी नाक कट गई।
कक्षा उदाहरण (Classroom Example):
शिक्षक कहते हैं — “मुहावरा ‘नाक में दम करना’ का अर्थ बताओ।”
बच्चे जवाब देते हैं — “बहुत परेशान करना, सर!”
👉 इससे बच्चे भाषा के भावपूर्ण प्रयोग को समझते हैं।
परिभाषा (Definition):
जो वाक्य जन-जीवन के अनुभव (Life Experience) या लोकज्ञान (Folk Wisdom) पर आधारित हों और किसी सत्य या नीति (Moral or Truth) को व्यक्त करें, उन्हें लोकोक्ति (Proverb) कहा जाता है।
मुख्य बिंदु (Main Points):
लोकोक्तियाँ समाज के अनुभव और बुद्धि (Wisdom) से निकली होती हैं।
ये सलाह, शिक्षा या संदेश (Advice, Lesson, Message) देती हैं।
इन्हें “लोक में प्रचलित उक्तियाँ” भी कहा जाता है।
ये अक्सर पूर्ण वाक्य (Complete Sentence) के रूप में होती हैं।
उदाहरण (Examples):
नाच न जाने आँगन टेढ़ा। → अपनी कमी दूसरों पर डालना।
जैसा करोगे, वैसा भरोगे। → कर्म का फल मिलता है।
जहाँ चाह वहाँ राह। → इच्छा हो तो मार्ग मिल ही जाता है।
बूँद-बूँद से सागर भरता है। → छोटे प्रयासों से बड़ा परिणाम मिलता है।
लोहे को लोहा काटता है। → ताकत का जवाब ताकत से ही देना चाहिए।
कक्षा उदाहरण (Classroom Example):
शिक्षक कहते हैं — “लोकोक्ति ‘जहाँ चाह वहाँ राह’ का क्या अर्थ है?”
विद्यार्थी कहते हैं — “अगर मन में इच्छा हो तो रास्ता मिल जाता है।”
👉 इस तरह विद्यार्थी नीतिक मूल्य (Moral Values) भी सीखते हैं।
मुहावरे छोटे वाक्यांश होते हैं जिनका अर्थ भावार्थ (Figurative) होता है, जैसे – नाक में दम करना।
लोकोक्तियाँ पूरे वाक्य के रूप में होती हैं जो जीवन की सच्चाई या नीति (Moral Truth) बताती हैं, जैसे – जहाँ चाह वहाँ राह।
मुहावरे अभिव्यक्ति को सुंदर बनाते हैं, जबकि लोकोक्तियाँ संदेश देती हैं।
मुहावरों और लोकोक्तियों से भाषा की सौंदर्यात्मकता (Aesthetic Value) बढ़ती है।
ये विद्यार्थियों में संवेदनशीलता, रचनात्मकता और अभिव्यक्ति क्षमता (Creativity & Expression) को विकसित करते हैं।
शिक्षक इनका प्रयोग कहानी, निबंध या संवाद लेखन में करवा सकते हैं ताकि विद्यार्थी इनका प्राकृतिक प्रयोग (Practical Usage) सीखें।
CTET परीक्षा में प्रश्न अक्सर ऐसे आते हैं –
“‘नाक में दम करना’ मुहावरे का सही अर्थ क्या है?”
“‘जहाँ चाह वहाँ राह’ लोकोक्ति का अर्थ क्या है?”
मुहावरा (Idiom) → शब्दों का ऐसा समूह जिसका अर्थ उनके सामान्य अर्थ से अलग होता है।
👉 उदाहरण: नाक में दम करना = परेशान करना
लोकोक्ति (Proverb) → लोक अनुभव पर आधारित वाक्य जो जीवन की शिक्षा देता है।
👉 उदाहरण: जहाँ चाह वहाँ राह।
मुहावरे → भाषा को भावपूर्ण और जीवंत बनाते हैं।
लोकोक्तियाँ → नीतिक शिक्षा और जीवन ज्ञान का माध्यम हैं।
दोनों मिलकर भाषा की अभिव्यक्तिपूर्णता (Expressiveness) और संस्कृति की झलक (Cultural Reflection) दिखाते हैं।
📋 Topics:-
वाक्य (Sentence) शब्दों का वह समूह है जो पूर्ण अर्थ (Complete Meaning) प्रकट करता है।
👉 उदाहरण: रवि स्कूल गया।
जब वाक्य में व्याकरण की गलती (Grammatical Error), शब्द-प्रयोग की गलती (Word Usage Error), या अर्थ में अस्पष्टता (Lack of Clarity) होती है, तो वह अशुद्ध वाक्य (Incorrect Sentence) कहलाता है।
इन गलतियों को ठीक करना वाक्य शुद्धि (Sentence Correction) कहलाता है।
👉 सरल शब्दों में:
“अशुद्ध वाक्य को व्याकरण और अर्थ की दृष्टि से सही बनाना ही वाक्य शुद्धि है।”
वाक्य में अलग-अलग प्रकार की गलतियाँ होती हैं। CTET में अधिकतर प्रश्न इन्हीं प्रकारों से पूछे जाते हैं।
जब स्त्रीलिंग (Feminine) और पुल्लिंग (Masculine) शब्दों का गलत प्रयोग होता है।
👉 नियम: संज्ञा, विशेषण और क्रिया में लिंग-सामंजस्य (Gender Agreement) आवश्यक है।
उदाहरण:
❌ वह सुन्दर लड़का है। (लड़की के लिए गलत)
✅ वह सुन्दर लड़की है।
❌ माँ बहुत अच्छा खाना बनाती है।
✅ माँ बहुत अच्छी खाना बनाती है।
जब एकवचन (Singular) और बहुवचन (Plural) का मेल नहीं बैठता।
👉 नियम: कर्ता और क्रिया में वचन-सामंजस्य (Number Agreement) जरूरी है।
उदाहरण:
❌ लड़के खेल रहा है।
✅ लड़के खेल रहे हैं।
❌ वे सब पढ़ता है।
✅ वे सब पढ़ते हैं।
जब संज्ञा या सर्वनाम का सही विभक्ति (Proper Case) नहीं लगाई जाती।
👉 नियम: क्रिया और संज्ञा के बीच का संबंध (Relation) कारक से प्रकट होता है।
उदाहरण:
❌ मैंने तुमको बुलाया नहीं।
✅ मैंने तुम्हें बुलाया नहीं।
❌ रवि किताब को पढ़ता है।
✅ रवि किताब पढ़ता है।
जब वाक्य में समय (Past, Present, Future) के अनुसार क्रिया रूप सही न हो।
👉 नियम: पूरा वाक्य एक ही काल (Tense) में होना चाहिए।
उदाहरण:
❌ वह कल आया और आज जा रहा है।
✅ वह कल आया और आज गया।
❌ मैंने खाना खाता हूँ।
✅ मैं खाना खाता हूँ। या मैंने खाना खाया है।
जब कर्ता (Subject) और क्रिया में पुरुष (Person) का मेल न हो।
👉 नियम:
प्रथम पुरुष → मैं, हम
द्वितीय पुरुष → तुम, आप
तृतीय पुरुष → वह, वे
उदाहरण:
❌ आप गया था।
✅ आप गए थे।
❌ तुम आई हूँ।
✅ तुम आए हो।
जब वाक्य में शब्दों का क्रम गलत होने से अर्थ बदल जाए।
👉 नियम: कर्ता → क्रिया → कर्म का सही क्रम रखना चाहिए।
उदाहरण:
❌ खाना बच्चा खाता है।
✅ बच्चा खाना खाता है।
❌ कल वह जाएगा बाजार।
✅ वह कल बाजार जाएगा।
जब शब्द का अर्थ या प्रयोग गलत तरीके से हो।
👉 नियम: शब्द का अर्थ और भाव दोनों स्थिति के अनुसार होना चाहिए।
उदाहरण:
❌ वह कलम से लिख रहा था स्याही।
✅ वह स्याही से लिख रहा था कलम।
❌ उसने जल खाया।
✅ उसने जल पिया।
जब वाक्य का अर्थ अस्पष्ट या विरोधाभासी हो।
👉 नियम: वाक्य में स्पष्टता (Clarity) और संबंध (Cohesion) होनी चाहिए।
उदाहरण:
❌ वह इतना बड़ा है कि छोटा नहीं दिखता। (अर्थ अस्पष्ट)
✅ वह इतना बड़ा है कि दूर से भी दिखता है।
कर्ता और क्रिया का मेल जाँचें — (लिंग, वचन, पुरुष सही है या नहीं)।
शब्दों का क्रम सही करें ताकि अर्थ स्पष्ट हो।
काल (Tense) का प्रयोग एकरूप रखें।
सही शब्द चयन (Word Choice) करें।
अनावश्यक शब्द हटा दें जो अर्थ को भ्रमित करें।
वाक्य को बोलकर देखें — अगर सुनने में अटपटा लगे तो सुधार की ज़रूरत है।
शिक्षक त्रुटिपूर्ण वाक्य (Incorrect Sentences) देकर विद्यार्थियों से सुधार करवाएँ।
👉 जैसे: “रवि स्कूल गई।” → “रवि स्कूल गया।”
बच्चों को अपने दैनिक बोलचाल के वाक्य सुधारने की आदत डालनी चाहिए।
खेल या क्विज़ गतिविधियों से वाक्य शुद्धि सिखाना अधिक प्रभावी होता है।
वाक्य शुद्धि (Sentence Correction) = वाक्य को व्याकरण और अर्थ की दृष्टि से सही बनाना।
त्रुटियों के प्रकार →
लिंग
वचन
काल
पुरुष
कारक
शब्द-क्रम
शब्द प्रयोग
अर्थ
कर्ता, क्रिया, कर्म का सही सामंजस्य सबसे ज़रूरी है।
वाक्य सुधार के लिए → बोलकर देखना + अर्थ स्पष्ट करना सबसे अच्छा तरीका है।
CTET में अक्सर ऐसे प्रश्न आते हैं –
❓ “निम्न वाक्य में त्रुटि कहाँ है?”
👉 इसलिए हर नियम और उसका सही उदाहरण याद रखना आवश्यक है।
व्याकरणिक शुद्धता (Grammatical Correctness) का अर्थ है —
वाक्य में प्रयुक्त शब्द, लिंग, वचन, काल, पुरुष आदि का प्रयोग व्याकरण के नियमों के अनुसार होना।
जब कोई वाक्य भाषाई नियमों (Grammar Rules) का सही पालन करता है, तो वह व्याकरणिक रूप से शुद्ध (Grammatically Correct) कहलाता है।
यदि किसी वाक्य में शब्दों का रूप या प्रयोग व्याकरण के विपरीत हो, तो वह व्याकरणिक अशुद्ध (Grammatically Incorrect) कहलाता है।
👉 उदाहरण:
✅ राधा फूल तोड़ रही है। (सही)
❌ राधा फूल तोड़ रहा है। (गलत — “राधा” स्त्रीलिंग है, इसलिए “रही” होगा।)
वाक्य में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया का लिंग समान होना चाहिए।
अगर कर्ता पुल्लिंग है तो क्रिया भी पुल्लिंग रूप में, और अगर स्त्रीलिंग है तो क्रिया भी स्त्रीलिंग रूप में होनी चाहिए।
👉 उदाहरण:
✅ वह अच्छा लड़का है।
✅ वह अच्छी लड़की है।
❌ वह अच्छा लड़की है। (लिंग असमानता)
वाक्य में कर्ता और क्रिया दोनों का वचन एक होना चाहिए —
यानी अगर कर्ता एकवचन (Singular) है, तो क्रिया भी एकवचन हो;
अगर बहुवचन (Plural) है, तो क्रिया भी बहुवचन हो।
👉 उदाहरण:
✅ लड़का खेल रहा है।
✅ लड़के खेल रहे हैं।
❌ लड़के खेल रहा है। (वचन त्रुटि)
हिंदी में तीन पुरुष (Persons) होते हैं –
प्रथम पुरुष (First Person) → मैं, हम
द्वितीय पुरुष (Second Person) → तुम, आप
तृतीय पुरुष (Third Person) → वह, वे
क्रिया का रूप हमेशा पुरुष के अनुसार बदलता है।
👉 उदाहरण:
✅ मैं जाता हूँ।
✅ आप जाते हैं।
✅ वह जाता है।
❌ आप जाता है। (पुरुष असमानता)
क्रिया का प्रयोग समय (Past, Present, Future) के अनुसार सही होना चाहिए।
एक वाक्य में दो अलग-अलग कालों का अनुचित मिश्रण नहीं होना चाहिए।
👉 उदाहरण:
✅ वह कल आया और आज फिर गया।
❌ वह कल आया और आज जा रहा है। (काल असमानता)
✅ मैंने खाना खाया है।
❌ मैंने खाना खाता हूँ।
संज्ञा या सर्वनाम का प्रयोग सही विभक्ति (Post-position) के साथ होना चाहिए।
कारक वाक्य में संबंध (Relation) को प्रकट करता है — जैसे “से”, “को”, “का”, “में” आदि।
👉 उदाहरण:
✅ मैंने उसे बुलाया।
❌ मैंने वह बुलाया। (यहाँ “वह” की जगह “उसे” चाहिए)
✅ राम के घर गया।
❌ राम घर गया। (अर्थ बदल गया)
वाक्य में शब्दों का क्रम ऐसा होना चाहिए कि अर्थ स्पष्ट हो और व्याकरणिक रूप से सही लगे।
गलत शब्द क्रम से वाक्य का अर्थ बिगड़ सकता है।
👉 उदाहरण:
✅ बच्चा स्कूल गया।
❌ गया स्कूल बच्चा।
✅ सीता ने फूल तोड़ा।
❌ फूल ने सीता तोड़ा। (अर्थ बदल गया)
क्रिया हमेशा कर्ता के अनुसार लिंग, वचन, पुरुष और काल से मेल खानी चाहिए।
गलत रूप या अनुपयुक्त क्रिया वाक्य को अशुद्ध बना देती है।
👉 उदाहरण:
✅ वह पढ़ता है।
✅ वह पढ़ रही है।
❌ वह पढ़ रहे है।
वाक्य का अर्थ स्पष्ट, पूर्ण और तर्कसंगत होना चाहिए।
कोई शब्द या प्रयोग वाक्य के भाव को गलत दिशा न दे।
👉 उदाहरण:
✅ वह जल्दी घर पहुँच गया।
❌ वह जल्दी घर पहुँचने गया। (अर्थ अस्पष्ट है)
कर्ता और क्रिया में मेल है या नहीं, जाँचें।
शब्द क्रम सही है या नहीं, देखें।
लिंग, वचन, पुरुष और काल का उचित प्रयोग देखें।
वाक्य बोलकर पढ़ें — अगर सुनने में अजीब लगे, तो व्याकरणिक त्रुटि हो सकती है।
अर्थ का संबंध और स्पष्टता दोनों देखें।
शिक्षक विद्यार्थियों को गलत वाक्य देकर सुधार करवाएँ, जैसे —
❌ आप गया था। → ✅ आप गए थे।
समूह गतिविधियाँ (Group Activities) करवाएँ —
बच्चे मिलकर “अशुद्ध वाक्य पहचानो” खेल खेल सकते हैं।
दैनिक जीवन से उदाहरण लें —
जैसे “अख़बार की पंक्तियाँ” या “बातचीत के वाक्य” सुधारना।
व्याकरणिक शुद्धता = वाक्य का हर तत्व (शब्द, क्रिया, काल, लिंग आदि) व्याकरण के नियमों के अनुसार होना।
शुद्ध वाक्य में —
लिंग का मेल होता है
वचन और पुरुष सही होते हैं
काल और शब्द क्रम उचित होता है
अर्थ स्पष्ट और पूर्ण होता है
मुख्य त्रुटियाँ:
लिंग, वचन, काल, पुरुष, कारक, शब्द क्रम
सुधार के नियम:
वाक्य बोलकर देखें → अटपटा लगे तो सुधारें।
अर्थ स्पष्ट रहे → शब्दों का क्रम सही रखें।
कर्ता और क्रिया में समानता बनाएँ।
CTET में अक्सर प्रश्न होते हैं —
“निम्न वाक्य में व्याकरणिक त्रुटि कहाँ है?”
इसलिए नियमों के साथ उदाहरण याद रखना बहुत आवश्यक है।
📋 Topics:-
“अलंकार” (Alankar) का अर्थ होता है श्रृंगार या सजावट (Adornment or Ornament)।
जैसे गहनों से शरीर सुंदर लगता है, वैसे ही अलंकारों से भाषा और कविता सुंदर बनती है।
जब शब्दों और भावों को सुंदर, आकर्षक या प्रभावशाली बनाने के लिए विशेष प्रयोग किया जाता है, तो उसे अलंकार कहते हैं।
अलंकार दो प्रकार के होते हैं –
शब्दालंकार (Shabd Alankar) → शब्दों की सुंदरता से उत्पन्न।
अर्थालंकार (Arth Alankar) → अर्थ या भाव की सुंदरता से उत्पन्न।
👉 उदाहरण:
“मोर नाचा बन में, झूमें पात-पात।”
यहाँ ‘नाचा’ और ‘झूमें’ शब्दों से लयात्मकता आई — यह शब्दालंकार का प्रभाव है।
अब हम CTET स्तर पर आने वाले मुख्य अलंकारों को आसान भाषा में समझते हैं 👇
जब किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना ‘जैसे’, ‘के समान’, ‘तुल्य’ आदि शब्दों से की जाए।
इसमें दो वस्तुएँ स्पष्ट रूप से बताई जाती हैं।
👉 उदाहरण:
वह चाँद के समान सुंदर है।
बालक शेर की तरह बहादुर है।
🔹 कीवर्ड: Comparison with clear indicator words (जैसे, समान, तुल्य)।
जब तुलना प्रत्यक्ष (Direct) रूप में की जाए — यानी “जैसे” या “समान” शब्दों का प्रयोग न हो।
इसमें एक वस्तु को दूसरी ही मान लिया जाता है।
👉 उदाहरण:
राम रणभूमि के शेर हैं।
बालक सूर्य है हमारे घर का।
🔹 कीवर्ड: Direct comparison without “जैसे”।
जब किसी की किसी से तुलना संभावना (Possibility) के रूप में की जाती है।
इसमें कल्पना या अनुमान का भाव होता है — “मानो”, “जैसे”, “लगता है” आदि शब्द आते हैं।
👉 उदाहरण:
चाँदनी ऐसी चमकी मानो स्वर्ग उतर आया हो।
वह दौड़ा मानो बिजली गिरी हो।
🔹 कीवर्ड: Imaginative comparison (मानो, जैसे)।
जब वाक्य में एक ही वर्ण (sound) का बार-बार प्रयोग हो और संगीतात्मकता उत्पन्न हो।
यह शब्दालंकार का प्रमुख प्रकार है।
👉 उदाहरण:
छोटे छोटे बालक चहकते चिड़ियों के समान।
राम रसोई में रोटी रचते हैं।
🔹 कीवर्ड: Repetition of same sound/consonant.
जब एक ही शब्द बार-बार आए लेकिन हर बार उसका अर्थ अलग हो।
👉 उदाहरण:
राम राम सब कहत हैं, राम न जानैं कोय।
(पहला “राम” = नाम, दूसरा “राम” = भगवान)
🔹 कीवर्ड: Same word, different meanings.
जब एक ही शब्द से दो या अधिक अर्थ निकलें, और दोनों अर्थ उचित लगें।
👉 उदाहरण:
राजा ने हाथी को मारा।
(अर्थ 1: मारा = पिटाई की, अर्थ 2: मारा = हत्या की)
🔹 कीवर्ड: Single word → multiple meanings (Double sense).
जब किसी बात को अधिक बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाए।
इसका प्रयोग भाव या प्रभाव को गहरा करने के लिए होता है।
👉 उदाहरण:
वह इतना तेज दौड़ा कि हवा भी पीछे रह गई।
आसमान जमीन से बातें कर रहा था।
🔹 कीवर्ड: Over-exaggeration for effect.
जब निर्जीव वस्तुओं या प्रकृति को मानव गुणों से युक्त दिखाया जाए।
यानी Non-living objects are treated as living beings.
👉 उदाहरण:
सूरज मुस्कुरा रहा है।
नदी गा रही है।
🔹 कीवर्ड: Giving human qualities to non-human things.
जब एक ही शब्द बार-बार प्रयोग हो, पर अर्थ में जोर डालने के लिए।
यह संगीतात्मकता और भावपूर्णता बढ़ाता है।
👉 उदाहरण:
चलो चलो मंदिर चलो।
धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।
🔹 कीवर्ड: Repetition for emphasis or rhythm.
जब वाक्य में विरोधी शब्द एक साथ आकर भी अर्थपूर्ण भाव व्यक्त करें।
👉 उदाहरण:
मीठी चोट लगी।
ठंडी आग जल रही थी।
🔹 कीवर्ड: Meaningful contradiction.
भाषा को सुंदर और भावपूर्ण बनाते हैं।
कविता में संगीतात्मकता (Musicality) लाते हैं।
पाठक की कल्पना शक्ति (Imagination) को जाग्रत करते हैं।
भावों की गहराई और प्रभाव को बढ़ाते हैं।
रचना को यादगार और आकर्षक बना देते हैं।
👉 Classroom Example:
शिक्षक बच्चों से पूछें —
“अगर मैं कहूँ — ‘सूरज हँस रहा है’, तो क्या सूरज सच में हँसता है?”
→ बच्चे सोचेंगे और उत्तर देंगे “नहीं”,
→ तब समझाएँ — “यह मानवीकरण अलंकार है।”
अलंकार = भाषा की सजावट।
मुख्य दो प्रकार:
शब्दालंकार → शब्दों की सुंदरता
अर्थालंकार → अर्थ की सुंदरता
CTET में अक्सर पूछे जाने वाले प्रमुख अलंकार:
उपमा → जैसे, समान से तुलना
रूपक → प्रत्यक्ष तुलना
उत्प्रेक्षा → मानो, लगता है आदि से तुलना
अनुप्रास → एक ही वर्ण की पुनरावृत्ति
अतिशयोक्ति → बढ़ा-चढ़ाकर कहना
मानवीकरण → निर्जीव को जीवित दिखाना
यमक → एक शब्द, अलग अर्थ
श्लेष → एक शब्द, दो अर्थ
विरोधाभास → विरोधी शब्दों से अर्थपूर्ण वाक्य
CTET में प्रश्न इस प्रकार आते हैं:
“निम्न पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?”
“वाक्य ‘चाँद हँस रहा है’ में प्रयुक्त अलंकार बताएँ।”
‘रस’ शब्द का अर्थ है — स्वाद या आनंद (Essence / Aesthetic Pleasure)।
साहित्य में जब किसी कविता या रचना को पढ़ने या सुनने से मन में आनंद, भावना या भावनात्मक अनुभव उत्पन्न होता है, उसे रस कहते हैं।
रस = भावों की अनुभूति से मिलने वाला आनंद।
जैसे भोजन में स्वाद होता है, वैसे ही कविता में रस होता है।
रस को कविता की आत्मा (Soul of Poetry) कहा जाता है।
👉 उदाहरण:
यदि कोई कविता हमें वीरता महसूस कराए — तो वह वीर रस कहलाएगी।
यदि कोई कविता प्रेम की भावना जगाए — तो वह श्रृंगार रस कहलाएगी।
रसों की संख्या पर मतभेद हैं, परंतु CTET स्तर पर मुख्य 9 रस (नवरस) को जानना आवश्यक है 👇
यह प्रेम, सौंदर्य, आकर्षण से संबंधित रस है।
इस रस का स्थायी भाव है – रति (प्रेम भाव)।
👉 उदाहरण:
“चाँदनी रात में नायक-नायिका का मिलन।”
जब किसी कविता या वाक्य से हँसी, आनंद या मनोरंजन की भावना उत्पन्न हो।
स्थायी भाव – हास (हँसी)।
👉 उदाहरण:
“मोटे मियाँ ऐसे चले जैसे हाँथी पे बैठा कोई राजा।”
जब किसी कविता को पढ़कर दया, दुःख या सहानुभूति की भावना जागे।
स्थायी भाव – शोक (दुःख)।
👉 उदाहरण:
“विदा होती बेटी को देखकर माँ की आँखों में आँसू।”
जब किसी में क्रोध या प्रतिशोध की भावना उत्पन्न हो।
स्थायी भाव – क्रोध (Anger)।
👉 उदाहरण:
“हनुमान का लंका जलाना।”
जब कविता से साहस, पराक्रम और उत्साह की भावना उत्पन्न हो।
स्थायी भाव – उत्साह (Energy / Courage)।
👉 उदाहरण:
“चलो देश के काम आएँ, अब वक़्त लड़ने का है।”
जब रचना से डर या भय की अनुभूति हो।
स्थायी भाव – भय (Fear)।
👉 उदाहरण:
“अंधेरी रात में श्मशान की चीखें।”
जब किसी घिनौनी या अप्रिय वस्तु से घृणा उत्पन्न हो।
स्थायी भाव – जुगुप्सा (Disgust)।
👉 उदाहरण:
“कचरे के ढेर में सड़ी हुई वस्तुएँ।”
जब किसी घटना या दृश्य से आश्चर्य और विस्मय की भावना हो।
स्थायी भाव – विस्मय (Astonishment)।
👉 उदाहरण:
“आसमान में उड़ता इंसान देखकर बच्चे का मुँह खुला रह गया।”
जब मन में शांति, संतोष और वैराग्य की भावना उत्पन्न हो।
स्थायी भाव – शम (शांति)।
👉 उदाहरण:
“योगी ध्यान में लीन है, संसार से विरक्त।”
रस भावना और अनुभव पर आधारित होता है।
प्रत्येक रस में एक स्थायी भाव (Permanent Emotion) होता है।
रस का अनुभव पाठक के मन में होता है, कवि केवल माध्यम होता है।
रस का उद्देश्य — पाठक को आनंद और भावनात्मक जुड़ाव देना।
छंद का अर्थ है — लय या तालबद्ध रचना (Rhythm / Meter in Poetry)।
जिस प्रकार संगीत में ताल होती है, वैसे ही कविता में छंद होता है।
छंद कविता को गति, संगीतात्मकता और सौंदर्य देता है।
छंद = कविता की ध्वनि-संरचना (Sound Pattern)।
👉 उदाहरण:
“चंदा मामा दूर के, पुए पकाए गुड़ के।”
– यहाँ लय और गिनती से बना है छंद।
छंद को समझने के लिए कुछ मुख्य अंग होते हैं 👇
मात्रा (Matra) – शब्दों में स्वर और व्यंजन के उच्चारण की लंबाई।
ह्रस्व स्वर (a, i, u) = 1 मात्रा
दीर्घ स्वर (aa, ee, oo) = 2 मात्राएँ
👉 उदाहरण:
“राम” = रा (2) + म (1) → कुल = 3 मात्राएँ
गण (Gana) – मात्राओं के समूह को गण कहते हैं।
(छंद में गणों से लय बनती है।)
पद (Pada) – कविता की एक पंक्ति या चरण।
तुक (Rhyme) – अंत में समान ध्वनि वाले शब्द जैसे “मन – तन – धन”।
CTET स्तर पर छंदों की गहराई नहीं पूछी जाती — केवल प्राथमिक जानकारी चाहिए 👇
जिसमें निश्चित मात्राओं या तुक का बंधन नहीं होता।
👉 उदाहरण:
“मैं चल पड़ा हूँ अपने रास्ते पर,
मंज़िल की मुझे परवाह नहीं।”
जिसमें मात्राओं की संख्या निश्चित होती है, पर तुकबंदी हो भी सकती है या नहीं भी।
👉 उदाहरण:
“नंदलाल तेरे नाम बिना,
जग सूना सूना लगता है।”
जिसमें शब्दों के वर्ण (syllables) की संख्या निश्चित होती है।
👉 उदाहरण:
“चल रे मन गा रे मन,
जीवन अमृत धारा।”
जो लोकगीतों में प्रयुक्त होते हैं, जैसे — दोहा, चौपाई, रोला आदि।
👉 लोकछंदों के उदाहरण:
दोहा: 13-11 मात्रा का छंद
“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।”
चौपाई: 16-16 मात्रा का छंद
“राम सिया राम सिया राम जय जय राम।”
कविता में संगीत और लय लाता है।
पाठक या श्रोता को आकर्षित करता है।
स्मरण शक्ति (Memory) को बढ़ाता है — जैसे बच्चे कविताएँ लय से याद करते हैं।
भाषा को भावपूर्ण और प्रभावशाली बनाता है।
👉 Classroom Example:
शिक्षक बच्चों से “झूला झूले रानी” जैसे गीत गवाएँ और पूछें —
“क्या तुमने देखा कि हर पंक्ति में एक जैसी लय है?”
→ समझाएँ: “यह लय ही छंद कहलाती है।”
रस = कविता का भावनात्मक आनंद।
कुल 9 रस — श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत, शांत।
रस का स्रोत – भाव, स्थायी भाव, और अनुभव।
कविता की आत्मा रस ही है।
छंद = कविता की लय या ताल।
प्रमुख अंग – मात्रा, गण, पद, तुक।
मुख्य प्रकार – मुक्त छंद, मात्रिक छंद, वर्णिक छंद, लोकछंद।
छंद कविता को संगीतमय, यादगार और प्रभावशाली बनाता है।
अपठित (Unseen) का अर्थ है — जो पहले न पढ़ा गया हो।
गद्यांश (Prose Passage) – वह अनुच्छेद जो गद्य रूप में लिखा गया हो, जैसे कहानी, लेख, संवाद आदि।
पद्यांश (Poem Passage) – जो कविता के रूप में लिखा गया हो, यानी छंद, लय और भावनाओं वाला भाग।
परीक्षा में दिया गया अपठित गद्यांश या पद्यांश पढ़कर उसके आधार पर प्रश्नों के उत्तर देना होता है।
इसका उद्देश्य है — छात्र की पठन, समझ, व्याख्या और अभिव्यक्ति (Reading, Comprehension & Expression) की क्षमता का परीक्षण।
👉 उदाहरण:
“नीम का पेड़ गाँव में खड़ा है, उसकी छाया में बच्चे खेलते हैं…”
(फिर इस पर आधारित प्रश्न दिए जाते हैं।)
छात्र की भाषाई समझ (Language Understanding) को परखना।
उसकी पठन कौशल (Reading Skill) और अर्थ ग्रहण शक्ति (Interpretation Ability) जानना।
देखना कि वह मुख्य विचार (Main Idea) और सहायक विचार (Supporting Ideas) में भेद कर पाता है या नहीं।
बच्चों को अर्थ, भाव और संदेश को समझने की आदत डालना।
तथ्यात्मक गद्यांश (Factual Passage)
जिसमें जानकारी (Information) या तथ्य (Facts) दिए जाते हैं।
उद्देश्य: विद्यार्थी तथ्यों को पहचानें और मुख्य बिंदु निकालें।
👉 उदाहरण:
“पृथ्वी सूर्य से तीसरा ग्रह है…”
विचारात्मक गद्यांश (Interpretative / Reflective Passage)
जिसमें विचार, मत (Opinions) या भावनाएँ (Feelings) दी जाती हैं।
उद्देश्य: छात्र विचारों का अर्थ और दृष्टिकोण समझे।
👉 उदाहरण:
“सच्ची शिक्षा वही है जो जीवन में उपयोगी हो।”
साहित्यिक गद्यांश (Literary Passage)
कहानी, संस्मरण, या वर्णनात्मक लेख जिनमें भावना और कल्पना अधिक होती है।
👉 उदाहरण:
“बरसात की पहली बूँद जब धरती पर गिरी, तो मिट्टी से सोंधी खुशबू आई।”
पद्यांश का अर्थ है – किसी कविता का अंश।
इसमें भाव, लय, अलंकार, रस आदि के माध्यम से अर्थ छिपा होता है।
विद्यार्थी को शब्दार्थ के साथ-साथ भावार्थ (Sense / Theme) समझना होता है।
अक्सर प्रश्न आते हैं –
कविता का मुख्य भाव (Central Idea) क्या है?
कवि क्या कहना चाहता है?
कौन से शब्द या अलंकार का प्रयोग है?
👉 उदाहरण:
“जल ही जीवन है, यही सत्य है संसार का।”
→ प्रश्न: कवि ने ‘जल’ को क्यों महत्वपूर्ण कहा है?
Step 1 – ध्यानपूर्वक पढ़ना (Careful Reading):
पहले पूरे गद्यांश को एक बार धीरे-धीरे और ध्यान से पढ़ें।
जल्दी में पढ़ने से अर्थ छूट सकता है।
Step 2 – मुख्य विचार (Main Idea) पहचानें:
अनुच्छेद का मुख्य विषय या संदेश क्या है, यह समझें।
यह सामान्यतः पहले या आखिरी वाक्य में होता है।
Step 3 – प्रश्नों को समझें:
प्रत्येक प्रश्न को ध्यान से पढ़ें।
यदि प्रश्न “लेखक का उद्देश्य क्या है?” या “कविता का भाव क्या है?” हो, तो पूरे संदर्भ को देखें।
Step 4 – उत्तर अपने शब्दों में लिखें:
उत्तर शब्दशः (as it is) न लिखें, बल्कि अपने शब्दों में संक्षेप में दें।
उत्तर सार्थक और सटीक (Meaningful and Concise) होना चाहिए।
Step 5 – शब्दार्थ समझें:
कठिन शब्दों का अर्थ समझें — यह CTET में सीधे पूछा जाता है।
जैसे — ‘कंटक’ = काँटा, ‘सहज’ = सरल।
Step 6 – भावार्थ लिखें:
यदि प्रश्न “पंक्ति का भावार्थ लिखिए” आए तो उसका मुख्य भाव या संदेश स्पष्ट करें।
उदाहरण:
पंक्ति: “जहाँ चाह वहाँ राह।”
भावार्थ: “अगर मन में दृढ़ निश्चय हो, तो रास्ता अवश्य मिलता है।”
CTET परीक्षा में अपठित गद्यांश से निम्न कौशलों को परखा जाता है 👇
Literal Comprehension (शाब्दिक समझ):
गद्यांश में कही गई सटीक जानकारी पहचानना।
👉 उदाहरण: “लेखक का नाम क्या है?”
Inferential Comprehension (निष्कर्षात्मक समझ):
जो बात सीधे नहीं कही गई, पर संदर्भ से समझनी होती है।
👉 उदाहरण: “लेखक ने यह क्यों कहा होगा?”
Critical Comprehension (आलोचनात्मक समझ):
विद्यार्थी अपने विचारों के आधार पर मूल्यांकन करे।
👉 उदाहरण: “क्या आप लेखक की राय से सहमत हैं? क्यों?”
बच्चों को जोर से और स्पष्ट पढ़ने की आदत डालनी चाहिए।
उन्हें पैराग्राफ का अर्थ अपने शब्दों में बताने के लिए प्रोत्साहित करें।
नई शब्दावली (Vocabulary) सिखाएँ।
बच्चों से कहें कि वे प्रश्न बनाकर एक-दूसरे से पूछें – इससे सोचने की क्षमता बढ़ती है।
कविता में भाव, लय और उच्चारण पर अभ्यास कराएँ।
👉 Classroom Example:
शिक्षक बच्चों से “पर्यावरण” पर एक छोटा अनुच्छेद पढ़वाएँ, फिर प्रश्न पूछें –
“इस गद्यांश का मुख्य संदेश क्या है?”
→ इस तरह बच्चे Reading + Understanding दोनों सीखते हैं।
शब्दार्थ / विलोम / पर्यायवाची पूछे जा सकते हैं।
मुख्य भाव या उद्देश्य पूछा जाता है।
लेखक का मत / विचार पूछा जा सकता है।
पंक्तियों का भावार्थ लिखा जाता है।
शीर्षक सुझाना (Suggest a Title) भी पूछा जा सकता है।
अपठित गद्यांश/पद्यांश = ऐसा अनुच्छेद या कविता जो परीक्षा में पहली बार पढ़ी जाती है।
इसका उद्देश्य — पठन और समझ की क्षमता का मूल्यांकन।
मुख्य प्रकार — तथ्यात्मक, विचारात्मक, साहित्यिक।
पद्यांश में भाव, लय और कवि का उद्देश्य समझना होता है।
समाधान की विधि —
ध्यानपूर्वक पढ़ना
मुख्य विचार समझना
प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर देना
भावार्थ स्पष्ट करना
CTET में इस भाग से भाषा-समझ (Language Comprehension) के प्रश्न पूछे जाते हैं।
📋 Topics:-
🔹 Meaning: किसी अनुभव या संपर्क से ज्ञान या कौशल (Knowledge or Skill) प्राप्त करने की स्वाभाविक प्रक्रिया।
🔹 बच्चा भाषा “सीखता” नहीं बल्कि “अधिग्रहण” करता है — यानी वह अपने वातावरण से भाषा अपने आप ग्रहण कर लेता है।
🔹 Example:
बच्चा घर में “पानी दो” सुनते-सुनते वही बोलने लगता है। यह language acquisition है, न कि सिखाने का परिणाम।
🔹 Meaning: वह भाषा जो बच्चा सबसे पहले अपने घर और परिवेश में सीखता है। यह उसकी माँ-बोली (Mother Tongue) होती है।
🔹 Example:
अगर बच्चा घर में हिंदी बोलता है, तो हिंदी उसकी प्रथम भाषा है।
यह भाषा उसके भाव, सोच और विचारों का आधार बनती है।
🔹 Meaning: वह भाषा जो बच्चा अपनी प्रथम भाषा के बाद सीखता है — प्रायः स्कूल या समाज के संपर्क में आकर।
🔹 Example:
हिंदी भाषी बच्चा जब अंग्रेज़ी सीखता है, तो वह उसकी द्वितीय भाषा (Second Language) होती है।
स्कूल में English पढ़ाना इसी का उदाहरण है।
🔹 Meaning: किसी क्रिया, शब्द या आवाज़ की नकल करना। भाषा अधिगम में बच्चा दूसरों की बात दोहराता है।
🔹 Example:
बच्चा माँ से “चलो” सुनता है और खुद भी “चलो” बोलता है। यह अनुकरण है।
🔹 Meaning: किसी सही कार्य या उत्तर पर प्रशंसा या इनाम देकर उसे दोहराने के लिए प्रेरित करना।
🔹 Example:
शिक्षक कहते हैं, “बहुत अच्छा! तुमने सही वाक्य बोला।” यह Positive Reinforcement है।
इससे बच्चा उस वाक्य को बार-बार बोलने लगता है।
🔹 Meaning: यह सिद्धांत कहता है कि भाषा सीखना व्यवहार का परिणाम (Result of Behavior) है, यानी बच्चे को सुनाकर, दोहराकर सिखाया जा सकता है।
🔹 Example:
रोज़ “Good Morning” बोलना सिखाना और हर बार सही बोलने पर सराहना करना — यह व्यवहारवाद पर आधारित अभ्यास है।
🔹 Meaning: यह विचार कि बच्चा ज्ञान या भाषा को खुद अनुभवों और सामाजिक संवाद (Experiences and Social Interaction) के ज़रिए बनाता (construct) है।
🔹 Example:
जब बच्चे खुद कहानी बनाते हैं या दोस्तों से चर्चा करते हैं, तो वे अपनी भाषा का निर्माण करते हैं — यही रचनावाद है।
🔹 Meaning: वह प्राकृतिक योग्यता जो जन्म से ही मनुष्य में होती है — जैसे भाषा समझने की क्षमता।
🔹 Example:
बच्चे को कोई Grammar नहीं सिखाता, फिर भी वह सही वाक्य बनाता है। यह उसकी Innate Ability है।
🔹 Meaning: चॉम्स्की के अनुसार, मस्तिष्क में एक विशेष तंत्र (Device) होता है जो भाषा सीखने में मदद करता है।
🔹 यह व्याकरणिक पैटर्न (Grammatical Patterns) को पहचानता है।
🔹 Example:
बच्चा “मैं गया” और “मैं जाऊँगा” में अंतर समझ लेता है, जबकि किसी ने उसे यह नियम नहीं बताया।
🔹 Meaning: व्यक्ति और समाज के बीच की बातचीत और संपर्क की प्रक्रिया जिससे भाषा विकसित होती है।
🔹 Example:
बच्चे जब साथ खेलते हैं और बात करते हैं — “तू दे, मैं फेंकूँ” — यह Social Interaction भाषा अधिगम का सबसे प्राकृतिक तरीका है।
🔹 Meaning: मस्तिष्क के द्वारा सोचने, समझने, याद रखने और निर्णय लेने की प्रक्रिया।
🔹 Example:
बच्चा “सेब” और “फल” के संबंध को समझता है — यह उसकी Cognitive Process का हिस्सा है।
🔹 Meaning: ऐसा वातावरण जहाँ शब्द या वाक्य का वास्तविक अर्थ समझ में आए।
🔹 Example:
केवल “सेब” शब्द रटवाने के बजाय, जब शिक्षक बच्चे को सेब दिखाकर कहते हैं — “यह सेब है” — तो बच्चा उसे अर्थपूर्ण संदर्भ में सीखता है।
🔹 Meaning: वाक्य या भाषा के नियम, क्रम और व्याकरणिक रूप।
🔹 Example:
“राम स्कूल गया।” में कर्ता + क्रिया + कर्म (Subject + Verb + Object) का क्रम है — यही भाषिक संरचना है।
🔹 Meaning: जब बच्चा अपने अनुभवों से भाषा या ज्ञान प्राप्त करता है।
🔹 Example:
कहानी सुनने या अभिनय करने से बच्चे को शब्दों का अर्थ और उपयोग दोनों समझ में आते हैं।
🔹 Meaning: जब भाषा किसी औपचारिक सिखाने की प्रक्रिया के बिना, स्वाभाविक रूप से सीखी जाती है।
🔹 Example:
बच्चा घर में बिना सिखाए बोलना सीखता है — यह स्वाभाविक अधिगम है।
🔸 Language Acquisition (अधिग्रहण): प्राकृतिक और अनुभव आधारित प्रक्रिया।
🔸 First Language: घर में सीखी गई भाषा; भावों की भाषा।
🔸 Second Language: स्कूल या समाज में सीखी गई अतिरिक्त भाषा।
🔸 Behaviorist Theory: अनुकरण + पुनरावृत्ति + प्रोत्साहन।
🔸 Constructivist Theory: अनुभव और सामाजिक संवाद से भाषा का निर्माण।
🔸 Chomsky’s Theory: LAD – भाषा सीखने की जन्मजात क्षमता।
🔸 Social Interaction: भाषा विकास का मूल आधार।
🔸 Meaningful Context: भाषा को वास्तविक परिस्थिति में सिखाना ज़रूरी।
🔸 Teacher’s Role: वातावरण बनाना, अनुभव देना, और बच्चों को बोलने के अवसर देना।
अधिगम (Acquisition) का अर्थ है — स्वाभाविक रूप से सीखना (Natural Learning)।
बच्चा बिना किसी औपचारिक शिक्षा के, अपने पर्यावरण (Environment) और संपर्क (Exposure) से भाषा सीखता है।
यह प्रक्रिया जन्म से शुरू होकर बचपन तक चलती है।
भाषा अधिगम में सुनना (Listening), बोलना (Speaking), समझना (Understanding) शामिल होता है, न कि सिर्फ व्याकरण।
👉 उदाहरण:
एक बच्चा “माँ पानी दो” कहना सीखता है — यह उसने पुस्तक से नहीं, बल्कि पर्यावरण से सीखा है।
प्रथम भाषा (L1) वह भाषा होती है,
जो बच्चा जन्म के बाद सबसे पहले घर और परिवेश में सुनता और बोलता है।
इसे मातृभाषा (Mother Tongue) या मूल भाषा (Native Language) भी कहते हैं।
बच्चा इसे स्वाभाविक रूप से (Naturally) सीखता है, बिना किसी औपचारिक शिक्षा के।
इसमें बच्चे को गलतियों के लिए दंड नहीं दिया जाता, बल्कि वह अनुभव के माध्यम से सही प्रयोग सीखता है।
यह भाषा बच्चे की सोच, भावनाओं और पहचान (Identity) का आधार होती है।
👉 उदाहरण:
यदि बच्चा घर में हिंदी बोलने वाले परिवार में जन्मा है, तो हिंदी उसकी प्रथम भाषा होगी।
द्वितीय भाषा (L2) वह भाषा है जो बच्चा अपनी मातृभाषा के बाद संज्ञानपूर्वक (Consciously) सीखता है।
इसे विद्यालय, किताबों या शिक्षकों की मदद से सीखा जाता है।
इसमें अक्सर व्याकरण (Grammar), नियम (Rules) और अनुवाद (Translation) की मदद ली जाती है।
द्वितीय भाषा का प्रयोग आमतौर पर शिक्षा, कार्य या संचार के लिए किया जाता है।
यह सीखने की प्रक्रिया धीमी और सचेत प्रयासों पर आधारित होती है।
👉 उदाहरण:
यदि किसी बच्चे की मातृभाषा हिंदी है और वह स्कूल में अंग्रेज़ी सीखता है, तो अंग्रेज़ी उसकी द्वितीय भाषा होगी।
सीखने की प्रकृति (Nature of Learning)
प्रथम भाषा → स्वाभाविक (Natural)
द्वितीय भाषा → संज्ञानात्मक / औपचारिक (Conscious / Formal)
सीखने का वातावरण (Learning Environment)
L1 → घर, परिवार, समाज
L2 → विद्यालय, शिक्षक, कक्षा
शुरुआत का समय (Age of Learning)
L1 → जन्म से 5 वर्ष तक
L2 → विद्यालय-आयु (लगभग 5 वर्ष के बाद)
त्रुटियों का प्रभाव (Role of Errors)
L1 → गलतियाँ सीखने का हिस्सा मानी जाती हैं।
L2 → त्रुटियों को सुधारना आवश्यक माना जाता है।
उद्देश्य (Purpose)
L1 → संवाद, अभिव्यक्ति और सोच।
L2 → शिक्षा, करियर और औपचारिक संचार।
👉 उदाहरण:
एक बच्चा “मैं गया था” कहता है (L1: सही प्रयोग),
लेकिन “I gone there” कहता है (L2: त्रुटि) —
यह L2 सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा है।
प्राकृतिक प्रक्रिया (Natural Process) – बच्चा बिना सिखाए सीखता है।
सुनने और बोलने से शुरुआत होती है।
भावनात्मक जुड़ाव (Emotional Bond) अधिक होता है।
संवादात्मक संदर्भ (Contextual Learning) के माध्यम से सीखता है।
अनुकरण (Imitation) और दोहराव (Repetition) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
👉 Classroom Example:
शिक्षक बच्चों को कहानी सुनाते हैं, बच्चे बार-बार शब्द दोहराते हैं —
इससे वे भाषा को “अनुभव” के ज़रिए सीखते हैं।
सचेत प्रयास (Conscious Effort) से सीखी जाती है।
इसमें शिक्षण की भूमिका (Role of Teaching) बहुत महत्वपूर्ण होती है।
व्याकरणिक नियमों को समझना आवश्यक होता है।
विद्यार्थी को L1 का प्रभाव (Interference) झेलना पड़ता है।
उदाहरण: हिंदी बोलने वाला छात्र कहता है “I am going to home” (L1 structure influence)।
त्रुटि विश्लेषण (Error Analysis) और अभ्यास (Practice) से सुधार होता है।
👉 Classroom Example:
शिक्षक बच्चों को अंग्रेज़ी में “This is a pen” सिखाते हैं,
फिर बच्चे खुद वाक्य बनाते हैं — “This is a book.”
यदि दोनों भाषाओं की संरचना (Structure) समान है, तो सीखना आसान होता है।
👉 Example: हिंदी और उर्दू।
यदि संरचना भिन्न है, तो भ्रम या त्रुटियाँ हो सकती हैं।
👉 Example: हिंदी और अंग्रेज़ी।
L1 की ध्वनियाँ (Sounds), वाक्य रचना (Sentence Formation) और सोचने की शैली (Thought Pattern) L2 पर असर डालती है।
इसलिए शिक्षक को L1 की जानकारी होनी चाहिए ताकि वह तुलनात्मक रूप से (Contrastively) L2 सिखा सके।
बच्चों की मातृभाषा का सम्मान (Respect for Mother Tongue) करें।
L1 का उपयोग L2 सिखाने में सहायक उपकरण (Teaching Tool) के रूप में करें।
अनुवाद (Translation) और तुलना (Comparison) से अवधारणाएँ स्पष्ट कराएँ।
त्रुटियों को सीखने का अवसर (Learning Opportunity) मानें, न कि गलती।
सार्थक स्थितियाँ (Meaningful Contexts) तैयार करें, जहाँ बच्चे नई भाषा का प्रयोग कर सकें।
👉 Classroom Example:
शिक्षक कहते हैं —
“पानी = Water” → दोनों शब्दों के अर्थ जोड़कर सिखाना।
फिर बच्चों से वाक्य बनवाना — “Water is useful.”
प्रथम भाषा (L1) = स्वाभाविक रूप से सीखी जाने वाली भाषा (Mother Tongue)।
द्वितीय भाषा (L2) = सचेत प्रयास और औपचारिक वातावरण में सीखी जाने वाली भाषा।
L1 में अधिगम अनुभव आधारित (Experience-Based) होता है,
L2 में नियम आधारित (Rule-Based)।
L1 बच्चे की सोच और पहचान का आधार बनती है।
शिक्षक को L1 और L2 दोनों के अंतर को समझकर
समन्वित शिक्षण (Integrated Teaching) करना चाहिए।
CTET में इस टॉपिक से प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं —
“प्रथम भाषा और द्वितीय भाषा अधिगम में अंतर बताइए”
या
“शिक्षक L1 का उपयोग L2 अधिगम में कैसे कर सकता है?”
भाषा विकास (Language Development) से तात्पर्य है —
बच्चे के अंदर भाषा को समझने, बोलने, सुनने और प्रयोग करने की क्षमता का क्रमिक विकास।
यह एक प्राकृतिक (Natural) और क्रमिक (Gradual) प्रक्रिया है।
इसमें बच्चे का संज्ञानात्मक (Cognitive), भावनात्मक (Emotional) और सामाजिक (Social) विकास भी जुड़ा होता है।
भाषा विकास जन्म से शुरू होकर किशोरावस्था (Adolescence) तक चलता रहता है।
👉 उदाहरण:
बच्चा पहले “माँ” बोलना सीखता है, फिर “माँ पानी दो” —
यह भाषा विकास की प्रगति को दर्शाता है।
परिवारिक वातावरण (Home Environment) –
जिस माहौल में बच्चा रहता है, वही उसकी भाषा को आकार देता है।
सामाजिक संपर्क (Social Interaction) –
दूसरों से बातचीत करने से शब्द भंडार (Vocabulary) बढ़ता है।
श्रवण अनुभव (Listening Experience) –
जो बच्चा ज्यादा सुनता है, वह बेहतर बोलना सीखता है।
अनुकरण (Imitation) –
बच्चा बड़े लोगों की भाषा की नकल करता है।
प्रोत्साहन (Encouragement) –
जब बच्चे की सही भाषा पर तारीफ़ होती है, तो आत्मविश्वास बढ़ता है।
भाषा विकास को समझने के लिए इसे छह प्रमुख अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है 👇
इस अवस्था में बच्चा भाषा नहीं बोलता, लेकिन ध्वनियाँ (Sounds) पहचानता है।
बच्चा रोने, हँसने, बबलिंग (Babbling) के माध्यम से अपनी भावनाएँ व्यक्त करता है।
वह अपनी माँ या परिचित आवाज़ों पर प्रतिक्रिया (Response) देता है।
यह भाषा सीखने की नींव (Foundation) है।
👉 उदाहरण:
बच्चा “अँ-अँ”, “बा-बा”, “मा-मा” जैसी ध्वनियाँ निकालता है।
बच्चा एक शब्द के माध्यम से पूरा वाक्य व्यक्त करता है।
यह शब्द स्थिति, भावना या माँग को दर्शाता है।
बच्चा जो सबसे ज़्यादा सुनता है, वही शब्द पहले सीखता है।
👉 उदाहरण:
“पानी” = “मुझे पानी चाहिए।”
“माँ” = “माँ इधर आओ।”
बच्चा अब दो शब्दों को जोड़कर अपने विचार व्यक्त करने लगता है।
शब्दों में व्याकरण नहीं होता, लेकिन अर्थ स्पष्ट होता है।
यह भाषा संरचना की शुरुआत (Beginning of Syntax) होती है।
👉 उदाहरण:
“माँ खाना” = “माँ खाना दो।”
“बॉल दे” = “गेंद दो।”
बच्चा अब छोटे वाक्य (Short Sentences) बोलने लगता है।
शब्द क्रम (Word Order) का प्रयोग सीखने लगता है।
व्याकरणिक त्रुटियाँ होती हैं, परन्तु अर्थ स्पष्ट रहता है।
बच्चे का शब्द भंडार तेजी से बढ़ता है।
👉 उदाहरण:
“मैं स्कूल गया।”
“मुझे आम खाना है।”
बच्चा अब जटिल वाक्य (Complex Sentences) बनाना सीखता है।
काल (Tense), लिंग (Gender), वचन (Number) का प्रयोग सही करने लगता है।
बच्चा कहानी सुनाने, सवाल पूछने, और उत्तर देने में सक्षम होता है।
👉 उदाहरण:
“आज मैं पार्क में खेला और झूला झूला।”
“आपने मेरा खिलौना क्यों लिया?”
बच्चा अब भाषा का सही व्याकरणिक प्रयोग (Grammatical Accuracy) करता है।
वह औपचारिक (Formal) और अनौपचारिक (Informal) दोनों प्रकार की भाषा का भेद समझता है।
पठन (Reading) और लेखन (Writing) की क्षमता विकसित होती है।
इस अवस्था में बच्चा भाषा का प्रयोग सीखने, सोचने और भाव व्यक्त करने के लिए करता है।
👉 उदाहरण:
“आज मैंने कहानी पढ़ी जो बहुत मज़ेदार थी।”
“अगर बारिश होगी तो मैं घर पर रहूँगा।”
बच्चे को सुनने और बोलने के अवसर (Opportunities) देने चाहिए।
सार्थक स्थितियाँ (Meaningful Contexts) बनाकर बच्चों से बातचीत करें।
बच्चे की मातृभाषा का प्रयोग (Use of Mother Tongue) सहायक भाषा के रूप में करें।
कहानी, कविता, गीत, खेल के माध्यम से भाषा विकास को बढ़ावा दें।
बच्चे की गलतियों को सुधारने की बजाय समझने का अवसर मानें।
👉 Classroom Example:
शिक्षक कहानी सुनाते हैं और फिर बच्चों से पूछते हैं —
“कहानी में कौन था?”, “क्या हुआ?”
→ इससे सुनने + बोलने दोनों कौशल विकसित होते हैं।
भाषा विकास एक प्राकृतिक और क्रमिक प्रक्रिया है।
यह जन्म से शुरू होकर किशोरावस्था तक चलता है।
मुख्य अवस्थाएँ —
1️⃣ पूर्व-भाषिक अवस्था
2️⃣ एक शब्द अवस्था
3️⃣ दो शब्द अवस्था
4️⃣ प्रारंभिक वाक्य अवस्था
5️⃣ जटिल वाक्य अवस्था
6️⃣ व्याकरणिक परिपक्वता अवस्था
अनुकरण, अनुभव, प्रोत्साहन और सामाजिक संपर्क भाषा विकास के प्रमुख आधार हैं।
शिक्षक को बच्चों की भाषा यात्रा में सहयोगी, प्रोत्साहक और संवेदनशील भूमिका निभानी चाहिए।
भाषा अधिगम (Language Learning) का अर्थ है —
बच्चे के भीतर भाषा को समझने, बोलने, पढ़ने और लिखने की क्षमता का विकास।
भाषा सीखना एक संज्ञानात्मक (Cognitive) और सामाजिक (Social) प्रक्रिया है।
भाषा अधिगम को समझाने के लिए विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने कई सिद्धांत दिए हैं, जिनमें प्रमुख हैं —
Behaviorist Theory (व्यवहारवादी सिद्धांत)
Constructivist Theory (रचनावादी सिद्धांत)
Chomsky’s Nativist Theory (जन्मजात सिद्धांत)
📍 प्रमुख मनोवैज्ञानिक – बी. एफ. स्किनर (B.F. Skinner)
📍 मुख्य विचार – भाषा सीखना अनुकरण (Imitation), पुनरावृत्ति (Repetition) और प्रोत्साहन (Reinforcement) से होता है।
बच्चा अपने आस-पास की आवाज़ें और शब्द सुनकर उनकी नकल (Imitate) करता है।
जब वह सही बोलता है, तो माता-पिता या शिक्षक की प्रशंसा (Positive Reinforcement) उसे प्रोत्साहित करती है।
यही प्रोत्साहन (Reinforcement) भाषा अधिगम को मजबूत बनाता है।
गलतियों पर सुधार और सही प्रयोग पर प्रोत्साहन से सीख पक्की (Learning Strengthened) होती है।
👉 उदाहरण:
बच्चा “मा” बोलता है → माँ मुस्कुराती हैं → बच्चा दोहराता है → यह व्यवहारवादी प्रक्रिया है।
शिक्षक कहते हैं, “बहुत अच्छा, तुमने सही वाक्य बोला।” → यह Positive Reinforcement है।
शिक्षक को बच्चों के सही उत्तर पर प्रशंसा (Praise) करनी चाहिए।
Activity-based repetition, जैसे – rhyme, repetition games, speaking drills करवाने चाहिए।
📍 प्रमुख मनोवैज्ञानिक – जीन पियाजे (Jean Piaget) और लेव वायगोत्स्की (Lev Vygotsky)
📍 मुख्य विचार – भाषा बच्चे के अपने अनुभव (Experience) और सामाजिक संपर्क (Social Interaction) से विकसित होती है।
बच्चा भाषा को सुनकर याद नहीं करता, बल्कि अपने अनुभव से निर्माण (Construct) करता है।
वायगोत्स्की के अनुसार भाषा विकास में सामाजिक संवाद (Social Interaction) की भूमिका सबसे अधिक होती है।
बच्चा अपने आस-पास के लोगों से बात करके, प्रश्न पूछकर, उत्तर देकर भाषा सीखता है।
शिक्षक को बच्चे को सार्थक स्थितियाँ (Meaningful Contexts) प्रदान करनी चाहिए, जिससे भाषा स्वाभाविक रूप से सीखी जा सके।
👉 उदाहरण:
जब बच्चा “ये क्या है?” पूछता है और कोई जवाब देता है “यह गेंद है।” →
इस प्रक्रिया में बच्चा नए शब्द का अर्थ और प्रयोग दोनों सीखता है।
भाषा सिखाने में सार्थक स्थितियाँ (Meaningful Situations) बनाएँ।
Group discussion, storytelling, role play जैसी गतिविधियों से बच्चे स्वयं भाषा बनाएँ।
बच्चे को गलतियों से सीखने (Learning by Doing) का अवसर दें।
📍 प्रमुख मनोवैज्ञानिक – नोआम चॉम्स्की (Noam Chomsky)
📍 मुख्य विचार – भाषा सीखने की क्षमता मनुष्य में जन्म से मौजूद (Innate Ability) होती है।
चॉम्स्की ने कहा कि हर बच्चे के मस्तिष्क में एक LAD – Language Acquisition Device (भाषा अधिग्रहण यंत्र) होता है।
यह LAD बच्चे को किसी भी भाषा के व्याकरणिक नियम (Grammatical Rules) समझने में मदद करता है।
बच्चा भाषा सुनकर उसकी संरचना (Structure) स्वयं समझ लेता है, उसे हर चीज़ रटनी नहीं पड़ती।
भाषा अधिगम केवल अनुकरण (Imitation) नहीं है, बल्कि मस्तिष्क की जन्मजात क्षमता (Innate Ability) है।
👉 उदाहरण:
बच्चा “मैं गया” और “मैं जाऊँगा” के बीच का काल (Tense) भेद बिना किसी सिखाने के समझने लगता है।
उसने कभी सीधा Grammar नहीं पढ़ा, फिर भी वह व्याकरणिक पैटर्न पहचानता है — यह LAD का कार्य है।
शिक्षक को भाषा सिखाने में स्वतंत्रता (Freedom to Use Language) देनी चाहिए।
बच्चे की प्राकृतिक भाषा क्षमता (Natural Ability) पर विश्वास रखें।
Grammar को usage से सिखाएँ, रटने से नहीं।
| दृष्टिकोण | मुख्य विचार | उदाहरण | शिक्षक की भूमिका |
|---|---|---|---|
| Behaviorist | अनुकरण और प्रोत्साहन से सीखना | “मा” बोलने पर माँ की मुस्कान | Reinforcement देना |
| Constructivist | अनुभव और सामाजिक संवाद से सीखना | “ये क्या है?” – “गेंद” | अनुभव आधारित सीखने का माहौल बनाना |
| Chomsky (Nativist) | भाषा जन्मजात क्षमता है | बच्चा अपने आप वाक्य संरचना बनाता है | प्राकृतिक भाषा अवसर देना |
(Note: यह तुलना समझ के लिए है, परीक्षा में याद रखने हेतु।)
भाषा अधिगम को अनुकरण + अनुभव + प्राकृतिक क्षमता — तीनों दृष्टिकोणों से समझना चाहिए।
शिक्षक का कार्य केवल सिखाना नहीं, बल्कि सीखने का माहौल (Learning Environment) बनाना है।
रचनावादी दृष्टिकोण (Constructivism) को CTET सबसे ज़्यादा महत्व देता है क्योंकि यह Activity-Based Learning को बढ़ावा देता है।
Behaviorist Theory – B.F. Skinner:
भाषा अनुकरण, पुनरावृत्ति और प्रोत्साहन से सीखी जाती है।
Constructivist Theory – Piaget & Vygotsky:
बच्चा अपने अनुभव और सामाजिक संवाद से भाषा “निर्माण” करता है।
Chomsky’s Nativist Theory:
भाषा सीखने की क्षमता जन्मजात होती है (LAD मौजूद होता है)।
CTET Tip:
परीक्षा में Constructivist Approach (बच्चा स्वयं भाषा बनाए) को अधिक महत्व दिया जाता है।
📋 Topics:-
Meaning: किसी चीज़ को देखकर या सुनकर उसी की तरह करने की प्रक्रिया। बच्चे भाषा सीखते समय दूसरों की बोलचाल, उच्चारण (pronunciation), और लेखन शैली की नकल करते हैं।
Example:
कक्षा में जब शिक्षक “सूरज” शब्द बोलते हैं और बच्चे दोहराते हैं – तो यह अनुकरण (Imitation) है।
Meaning: शिक्षक द्वारा बोले गए शब्दों या वाक्यों को विद्यार्थी द्वारा सुनकर लिखने की क्रिया। यह Listening + Writing skill दोनों को विकसित करता है।
Example:
शिक्षक ने कहा — “भारत मेरा देश है।” और बच्चों ने इसे लिख लिया। यह श्रुतलेख अभ्यास कहलाता है।
Meaning: अपनी कल्पना (imagination) और अनुभव (experience) से स्वयं कुछ नया लिखना।
Example:
“मेरी गर्मियों की छुट्टियाँ” पर निबंध लिखना, या कोई छोटी कहानी बनाना — यह रचनात्मक लेखन है।
Meaning: ज़ोर से पढ़ना ताकि अपने उच्चारण, स्वर (intonation) और लय (rhythm) का अभ्यास हो सके।
Example:
बच्चा कविता को ज़ोर से पढ़ता है — यह मौखिक वाचन है।
Meaning: बिना आवाज़ किए मन ही मन पढ़ना। यह पढ़ने की गति और समझ (comprehension) को बढ़ाता है।
Example:
जब छात्र पुस्तकालय में बैठकर किताब पढ़ते हैं — यह मौन वाचन है।
Meaning: पढ़ी गई सामग्री को समझने की क्षमता। यह सोचने (thinking) और अर्थ निकालने (interpretation) की प्रक्रिया है।
Example:
अगर बच्चे ने कहानी “चतुर लोमड़ी” पढ़ी और बाद में उसके प्रश्नों के उत्तर दे सका — तो उसकी वाचन समझ अच्छी है।
Meaning: कविता को भाव, लय, और सही उच्चारण के साथ बोलना या सुनाना।
Example:
“ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार” को भाव से कहना — यह कविता पाठ है।
Meaning: दो या अधिक व्यक्तियों के बीच विचारों का आदान-प्रदान (exchange of ideas)। यह बोलने का अभ्यास कराने का एक उत्कृष्ट तरीका है।
Example:
शिक्षक और छात्र के बीच –
शिक्षक: तुम्हारा नाम क्या है?
छात्र: मेरा नाम राहुल है।
यह संवाद का उदाहरण है।
Meaning: किसी विषय पर अपने विचारों को तर्क (logic) और तथ्य (facts) के साथ प्रस्तुत करना। यह बोलने की शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ाता है।
Example:
विषय – “मोबाइल बच्चों के लिए लाभदायक या हानिकारक?”
दो समूह अपने-अपने विचार रखते हैं – यह वाद-विवाद कहलाता है।
Meaning: किसी विषय पर सहज और स्वाभाविक (natural) बातचीत करना। यह भाषा का वास्तविक प्रयोग (real use) सिखाता है।
Example:
कक्षा में “आज का मौसम कैसा है?” पर छात्रों के बीच बातचीत – यह वार्ता का उदाहरण है।
Meaning: सीखने के लिए किए गए प्रायोगिक कार्य (practical task)।
Example:
शब्द-पहेली खेलना, कहानी को चित्रों से जोड़ना, या श्रुतलेख करवाना – ये सभी भाषाई गतिविधियाँ हैं।
Meaning: शब्दों को सही ध्वनि (sound) और स्वर (intonation) में बोलना।
Example:
“School” को ‘स्कूल’ न बोलकर सही ढंग से “स्कूल” कहना — यह सही उच्चारण का अभ्यास है।
Meaning: कविता या भाषा बोलते समय जो ताल, गति और भावना आती है, उसे लय और भाव कहते हैं।
Example:
कविता “छोटा भीम” को भाव के साथ बोलना — “मैं हूँ छोटा भीम, ढोलकपुर का वीर महान!”
Meaning: सुनी या पढ़ी हुई बात का अर्थ समझने की मानसिक प्रक्रिया।
Example:
अगर बच्चा कहानी सुनकर उसका सारांश बता दे, तो उसकी समझ अच्छी है।
Meaning: किसी कार्य को करने की अंदरूनी इच्छा (inner drive) या उत्साह।
Example:
शिक्षक यदि बोले “वाह! तुमने बहुत अच्छा पढ़ा”, तो बच्चे को बोलने की प्रेरणा मिलती है।
✅ LSRW का अर्थ – Listening, Speaking, Reading, Writing (सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना)।
✅ सुनना (Listening) – कहानी, वार्ता, गतिविधि से ध्यानपूर्वक सुनने की क्षमता विकसित होती है।
✅ बोलना (Speaking) – कविता पाठ, संवाद, वाद-विवाद से उच्चारण, लय और आत्मविश्वास बढ़ता है।
✅ पढ़ना (Reading) – मौखिक वाचन से उच्चारण सुधरता है; मौन वाचन से समझ और गति बढ़ती है।
✅ लिखना (Writing) – अनुकरण, श्रुतलेख, रचनात्मक लेखन से सही लेखन शैली विकसित होती है।
✅ श्रुतलेख सुनने और लिखने दोनों कौशल को जोड़ता है।
✅ रचनात्मक लेखन बच्चों की कल्पना और अभिव्यक्ति को बढ़ाता है।
✅ कविता पाठ और संवाद अभ्यास बच्चों को भाव से बोलना सिखाते हैं।
✅ समझ (Comprehension) सभी कौशलों का अंतिम उद्देश्य है।
✅ गतिविधियाँ (Activities) बच्चों को अनुभवात्मक सीखने (Experiential Learning) का अवसर देती हैं।
सुनना (Listening) केवल “आवाज़ सुनना” नहीं है, बल्कि समझना (Understanding) भी है।
यह सक्रिय प्रक्रिया (Active Process) है — जिसमें बच्चा ध्यान से सुनता है, अर्थ समझता है, और प्रतिक्रिया देता है (responds).
सुनने से भाषा का उच्चारण, शब्दावली (vocabulary), लय (rhythm), स्वर (intonation) आदि का ज्ञान बढ़ता है।
🪶 Example:
जब शिक्षक कहानी सुनाते हैं — “एक बार की बात है...” — बच्चा शब्दों के अर्थ, आवाज़ के भाव और घटनाओं को समझने की कोशिश करता है। यही सुनने की प्रक्रिया है।
भाषा सीखने का पहला कौशल सुनना है।
बच्चा सुनकर बोलना, पढ़ना और लिखना सीखता है।
यह भाषा अधिग्रहण (Language Acquisition) की नींव है।
सुनने से ध्यान केंद्रित करने (Concentration) और समझने की क्षमता (Comprehension Skill) का विकास होता है।
🪶 Classroom Example:
जब शिक्षक कविता सुनाते हैं — बच्चे उसकी लय, स्वर और अर्थ पर ध्यान देते हैं।
धीरे-धीरे वे उस कविता को स्वयं दोहराने लगते हैं।
(a) सक्रिय सुनना (Active Listening): ध्यानपूर्वक, समझकर सुनना।
(b) निष्क्रिय सुनना (Passive Listening): केवल ध्वनि सुनना, अर्थ पर ध्यान न देना।
🪶 Example:
बच्चा कहानी ध्यान से सुनकर प्रश्नों के उत्तर देता है → सक्रिय सुनना।
बच्चा केवल संगीत की आवाज़ सुनता है, पर अर्थ नहीं समझता → निष्क्रिय सुनना।
कहानी (Story) सुनना बच्चों की सबसे स्वाभाविक और प्रभावी गतिविधि है।
कहानी में भाव, चित्रण, और घटना होती है, जिससे बच्चा शब्दों का अर्थ संदर्भ सहित समझता है।
इससे बच्चे का कल्पनाशीलता (Imagination) और भाषिक अभिव्यक्ति (Verbal Expression) दोनों बढ़ते हैं।
🪶 Classroom Examples:
शिक्षक कहानी “चालाक लोमड़ी” सुनाते हैं और पूछते हैं — “लोमड़ी ने क्या चाल चली?”
→ इससे बच्चा कहानी ध्यान से सुनता है, सोचता है और उत्तर देता है।
शिक्षक कहानी में कुछ शब्द बदलकर बोलते हैं, ताकि बच्चा ध्यान दे —
“कौवा दूध पी गया” (गलत), बच्चा सुधारता है — “नहीं सर, कौवा तो पानी पीता है।”
👉 इससे बच्चा meaning, sequence, correction सब सीखता है।
वार्ता (Conversation) का अर्थ है दो या अधिक व्यक्तियों के बीच संवाद (Dialogue).
वार्ता के माध्यम से बच्चे वास्तविक जीवन के शब्दों, भावों और बोलचाल की भाषा को सीखते हैं।
वार्ता सुनने से बच्चे को यह पता चलता है कि कब क्या बोलना, कैसे बोलना, और किस स्वर में बोलना है।
🪶 Examples:
शिक्षक और बच्चा –
“आज मौसम कैसा है?”
“सर, आज बहुत ठंड है।”
→ इससे बच्चा प्रश्न–उत्तर संरचना (Question–Answer Structure) सीखता है।
बच्चे आपस में बात करते हैं —
“चलो खेलते हैं।” / “पहले काम पूरा करो।”
→ यह real-life listening practice है।
गतिविधियाँ सुनने को रुचिकर और प्रभावी (interesting and effective) बनाती हैं।
इनसे बच्चे का ध्यान केंद्रित रहता है और सीखना अनुभव आधारित (experiential) हो जाता है।
🪶 Classroom Activities for Listening:
(a) Listening Game:
शिक्षक कुछ निर्देश देते हैं —
“खड़े हो जाओ, दाएँ मुड़ो, तालियाँ बजाओ।”
→ बच्चा ध्यान से सुनकर क्रिया करता है — सुनने का अभ्यास होता है।
(b) Sound Identification:
शिक्षक कोई ध्वनि निकालते हैं (घंटी, तालियाँ, सीटी)।
→ बच्चे पहचानते हैं — “ये आवाज़ किस चीज़ की है?”
(c) Story Completion Activity:
शिक्षक कहानी अधूरी छोड़ते हैं —
“एक दिन मोनू जंगल गया और वहाँ उसने देखा…”
→ बच्चा ध्यान से सुनकर आगे की कल्पना करता है।
(d) “Simon Says” गेम:
Teacher says, “Simon says clap!” – बच्चे ताली बजाते हैं।
यह activity सुनने की तत्परता और समझ दोनों को बढ़ाती है।
बच्चे को ध्यान से सुनने की आदत डालना।
स्पष्ट उच्चारण (clear pronunciation) में बोलना ताकि बच्चा सही ध्वनि सीखे।
सकारात्मक वातावरण (positive environment) बनाना — कोई गलती करे तो हँसना नहीं।
बच्चों से प्रश्न पूछना ताकि सुनने के बाद उत्तर देने की आदत बने।
कहानी या वार्ता के बाद छोटे-छोटे प्रश्न या गतिविधियाँ कराना ताकि comprehension जाँची जा सके।
🪶 Example:
कहानी के बाद शिक्षक पूछ सकते हैं —
“कहानी में कौन-सा पात्र सबसे चालाक था?”
→ इससे बच्चा याद करता है कि उसने क्या सुना था।
शोर (Noise) या अनुशासनहीन वातावरण।
अस्पष्ट बोलना (Unclear Speech).
बच्चे की अरुचि (Lack of Interest).
बहुत तेज़ बोलना या बहुत लंबी कहानी सुनाना।
👉 शिक्षक को चाहिए कि वह आवाज़, भाव और गति का ध्यान रखे ताकि बच्चा जुड़ा रहे।
🔹 Listening Skill भाषा सीखने की पहली और सबसे महत्वपूर्ण कौशल है।
🔹 सुनना केवल “ध्वनि सुनना” नहीं बल्कि “अर्थ समझना” है।
🔹 कहानी, वार्ता और गतिविधियाँ सुनने के सबसे प्रभावी माध्यम हैं।
🔹 Behaviorist Approach: अनुकरण व दोहराव से सुनना सीखा जा सकता है।
🔹 Constructivist View: अर्थपूर्ण अनुभवों से सुनने की क्षमता विकसित होती है।
🔹 शिक्षक को चाहिए कि —
बच्चों को ध्यान से सुनने के अवसर दे,
स्पष्ट और भावपूर्ण भाषा में बोले,
सुनने के बाद प्रश्न या गतिविधियाँ कराए।
🔹 सुनना → बोलना → पढ़ना → लिखना — यही LSRW क्रम है।
🔹 Listening का सीधा संबंध समझने की क्षमता (Comprehension) से है।
बोलना (Speaking) का अर्थ केवल शब्द कहना नहीं, बल्कि भावों और विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करना (to express thoughts and feelings clearly) है।
यह सक्रिय भाषा कौशल (Active Language Skill) है, जो सुनने (Listening) से विकसित होती है।
बोलना भाषा के उच्चारण (Pronunciation), स्वर (Tone), लय (Rhythm) और शब्दावली (Vocabulary) पर आधारित होता है।
🪶 Example:
जब बच्चा कहता है — “आज मेरा मन खुश है।”
→ वह अपने विचार बोलकर व्यक्त कर रहा है — यह बोलने का कौशल है।
भाषा अधिगम (Language Learning) का सबसे व्यावहारिक और सामाजिक हिस्सा है।
इससे बच्चा आत्मविश्वास (Confidence) और संचार कौशल (Communication Skill) विकसित करता है।
बोलना बच्चों में सहभागिता (Participation) और सृजनशीलता (Creativity) बढ़ाता है।
यह Listening, Reading, Writing की नींव को भी मजबूत करता है।
🪶 Classroom Example:
शिक्षक कहते हैं — “आज सभी बच्चे अपने मनपसंद फल के बारे में बोलें।”
→ हर बच्चा अलग-अलग शब्दों में बोलता है और खुद को अभिव्यक्त करना सीखता है।
कविता पाठ (Poem Recitation) बच्चों में लय, ताल और स्वर की समझ विकसित करता है।
इससे बच्चे का उच्चारण (Pronunciation) और स्पष्टता (Clarity) बेहतर होती है।
कविता सुनाना बच्चे को भावनात्मक अभिव्यक्ति (Emotional Expression) का अवसर देता है।
इससे भाषा सीखना रोचक (Interesting) और संगीतमय (Musical) बनता है।
🪶 Examples:
शिक्षक कहते हैं – “अब सब बच्चे मिलकर कविता सुनाएँ — चंदा मामा दूर के...”
→ बच्चे लय के साथ बोलते हैं, जिससे उनकी voice modulation (स्वर परिवर्तन) और memory (स्मरण शक्ति) बढ़ती है।
बच्चे अपनी बनाई कविता कक्षा में प्रस्तुत करते हैं → Creativity और Confidence बढ़ता है।
सही उच्चारण सिखाना।
बच्चों को भावपूर्वक बोलने के लिए प्रेरित करना।
कविता के अर्थ पर चर्चा करना ताकि बच्चा केवल “याद” न करे, बल्कि “समझे” भी।
संवाद (Conversation) सबसे स्वाभाविक बोलने का तरीका है।
इसमें बच्चे प्रश्न–उत्तर (Question–Answer) के माध्यम से भाषा का प्रयोग करते हैं।
इससे सामाजिक भाषा (Social Language) का ज्ञान बढ़ता है — कब क्या और कैसे बोलना है।
संवाद बच्चे को विनम्रता (Politeness), शब्द चयन (Word Choice) और सही वाक्य संरचना (Sentence Formation) सिखाता है।
🪶 Daily Life Examples:
“गुड मॉर्निंग टीचर!” → बच्चा अभिवादन करना सीखता है।
“आप कैसे हैं?” “मैं ठीक हूँ।” → संवाद से विनम्रता व प्रतिक्रिया देने की क्षमता बढ़ती है।
“क्या मैं पानी पी सकता हूँ?” → बच्चा permission asking sentences सीखता है।
बच्चों से नियमित संवाद करना (Morning talk, story talk आदि)।
बच्चों को बातचीत के अवसर देना (Pair work, Role-play)।
गलतियों पर सुधार करते समय प्रोत्साहन देना, डाँटना नहीं।
वाद-विवाद (Debate) एक औपचारिक बोलने की गतिविधि है जिसमें दो पक्ष (For & Against) किसी विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हैं।
यह बच्चों में तर्क शक्ति (Reasoning Power) और विचार प्रस्तुति (Idea Presentation) का विकास करता है।
वाद-विवाद से बच्चा आत्मविश्वासी (Confident) और तर्कसंगत (Logical) बनता है।
इससे बच्चों में सुनने और दूसरों की राय का सम्मान करने की आदत बनती है।
🪶 Classroom Example:
विषय — “मोबाइल बच्चों के लिए अच्छा है या नहीं।”
एक समूह “पक्ष में” तर्क देता है — शिक्षा में उपयोगी है।
दूसरा समूह “विपक्ष में” तर्क देता है — समय की बर्बादी करता है।
→ दोनों पक्ष अपनी बात स्पष्ट रूप से बोलते हैं — critical thinking और language fluency विकसित होती है।
विषय चुनना जो बच्चों की समझ के अनुरूप हो।
बच्चों को तर्क प्रस्तुत करने का तरीका सिखाना।
सभी को समान अवसर देना और शिष्ट व्यवहार (Decent Manner) सिखाना।
🪶 Classroom-based Practical Activities:
Role Play (भूमिका अभिनय): “डॉक्टर और मरीज”, “शिक्षक और छात्र” जैसे नाट्य संवाद।
Show & Tell Activity: बच्चा कोई वस्तु दिखाकर उसके बारे में बोलता है — “ये मेरी पेंसिल है।”
Picture Description: एक चित्र देखकर बच्चा बोलता है — “यहाँ एक बच्चा खेल रहा है।”
Story Telling: अपनी बनाई कहानी बोलकर सुनाना।
👉 इन गतिविधियों से बच्चे में fluency (धाराप्रवाह बोलने की क्षमता) और accuracy (सटीकता) दोनों विकसित होती हैं।
कक्षा में भाषाई वातावरण (Language Environment) बनाना।
सकारात्मक प्रतिक्रिया (Positive Feedback) देना।
बच्चे की त्रुटियों (Mistakes) को सुधारना लेकिन उसका आत्मविश्वास न तोड़ना।
बोलने के अवसर सबको समान रूप से देना।
कविता, संवाद, अभिनय और चर्चा को रोज़मर्रा के शिक्षण में शामिल करना।
🔹 Speaking Skill (बोलना) — भाषा की सक्रिय कौशल (Active Skill) है।
🔹 सुनने से बोलना विकसित होता है — Listening → Speaking → Reading → Writing (LSRW) क्रम।
🔹 कविता पाठ (Poem Recitation): उच्चारण, लय और अभिव्यक्ति को निखारता है।
🔹 संवाद (Conversation): व्यवहारिक भाषा, प्रश्न–उत्तर व विनम्रता सिखाता है।
🔹 वाद-विवाद (Debate): तर्क, विचार और आत्मविश्वास का विकास करता है।
🔹 बोलने के लिए शिक्षक को चाहिए —
अवसर दें,
सही उच्चारण सिखाएँ,
भाषा के प्रयोग को प्रोत्साहित करें।
🔹 बोलना भाषा सीखने का सबसे प्रभावशाली माध्यम है क्योंकि यह सोचने और व्यक्त करने की शक्ति दोनों को बढ़ाता है।
पढ़ना (Reading) केवल शब्दों को देखना नहीं, बल्कि शब्दों से अर्थ ग्रहण करना (Understanding meaning through words) है।
यह भाषा का ग्रहणशील कौशल (Receptive Skill) है, क्योंकि बच्चा सुनकर या देखकर भाषा ग्रहण करता है।
पढ़ना भाषा अधिगम का महत्वपूर्ण चरण है जो बच्चे के ज्ञान, कल्पना और विचार शक्ति को बढ़ाता है।
🪶 Example:
जब बच्चा “सूरज उगा” पढ़कर समझता है कि “सुबह हो गई है” —
→ इसका अर्थ है कि उसने पढ़ने के साथ समझना (Reading with Understanding) सीखा है।
बच्चे में भाषाई दक्षता (Linguistic Proficiency) विकसित करना।
शब्द पहचानने की क्षमता (Word Recognition Skill) बढ़ाना।
अर्थ ग्रहण करने (Comprehension) की योग्यता बनाना।
पठन में रुचि (Reading Habit & Interest) पैदा करना।
ज्ञानवर्धन (Knowledge Enhancement) करना।
🪶 Classroom Example:
शिक्षक बच्चों को चित्र पुस्तक पढ़ने देते हैं —
→ बच्चे शब्द पहचानते हैं, अर्थ समझते हैं और पढ़ने की आदत बनाते हैं।
पठन दो मुख्य रूपों में होता है 👇
जब बच्चा जोर से पढ़ता है (Reads Aloud) ताकि सुनने वाला भी समझ सके।
इसमें बच्चा शब्दों का सही उच्चारण (Pronunciation) सीखता है।
स्वर, लय और गति (Tone, Rhythm, Speed) पर नियंत्रण आता है।
ध्वनियों (Sounds) की पहचान और अभ्यास होता है।
प्रारंभिक कक्षाओं में यह पठन का पहला चरण होता है।
शिक्षक को ध्यान देना चाहिए कि बच्चा केवल रटकर न पढ़े बल्कि अर्थ के साथ पढ़े।
🪶 Classroom Example:
शिक्षक कहते हैं – “सभी बच्चे मिलकर कविता पढ़ें — चिड़िया उड़ती जाती है…”
→ बच्चे एक साथ आवाज़ में पढ़ते हैं, सही ध्वनि और स्वर का अभ्यास करते हैं।
सही उच्चारण कराना।
गलतियों को तुरंत और विनम्रता से सुधारना।
बच्चों को अर्थपूर्ण वाचन (Meaningful Reading) के लिए प्रेरित करना।
जब बच्चा शब्दों को मन ही मन पढ़ता है (Reads Silently) ताकि अपने आप अर्थ समझ सके।
इसमें बच्चा समझ (Comprehension) और ध्यान (Concentration) से पढ़ता है।
मौन वाचन से तेज़ पढ़ने की क्षमता (Reading Speed) विकसित होती है।
बच्चे की कल्पनाशक्ति (Imagination) बढ़ती है।
यह स्वाध्ययन (Self-learning) की आदत को प्रोत्साहित करता है।
मौन वाचन के बाद समझ संबंधी प्रश्न (Comprehension Questions) पूछना उपयोगी होता है।
🪶 Daily Life Example:
बच्चा अकेले बैठकर कहानी की किताब पढ़ रहा है —
→ वह मौन वाचन कर रहा है और कहानी की घटनाओं की कल्पना कर रहा है।
बच्चों को रोचक कहानियाँ, चित्र पुस्तकें दें।
मौन वाचन के बाद बच्चों से पूछें — “कहानी में क्या हुआ?”
बच्चों के उत्तरों से समझें कि उन्होंने अर्थ समझा या नहीं।
Comprehension (समझ) का मतलब है — “पढ़े हुए का अर्थ जानना और विचार से जोड़ना।”
यह पठन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि बिना समझे पढ़ना याद करना मात्र (Mechanical Reading) है।
बच्चे को शब्द पहचानने के साथ-साथ वाक्य का अर्थ (Sentence Meaning) समझना होता है।
यह सुनियोजित सोच (Logical Thinking) और भाषाई अनुभव (Language Experience) से विकसित होता है।
शिक्षक को चाहिए कि बच्चे से प्रश्न पूछे ताकि उसकी समझ जाँची जा सके।
🪶 Classroom Example:
बच्चा पढ़ता है — “राम स्कूल गया।”
→ शिक्षक पूछते हैं — “राम कहाँ गया?”
→ बच्चा जवाब देता है — “स्कूल गया।”
→ इसका अर्थ है कि बच्चे ने पढ़ा और समझा दोनों।
चित्रों के माध्यम से पढ़ाना (Picture Reading):
→ छोटे बच्चों को पहले चित्रों से शब्द जोड़ना सिखाएँ।
→ Example: “यह सेब है” – चित्र दिखाकर पढ़ना।
सहपाठी पठन (Paired Reading):
→ दो बच्चों को एक साथ पढ़ने दें — एक पढ़े, दूसरा सुने।
कहानी पढ़ने के बाद चर्चा (Post-reading Discussion):
→ “कहानी में तुम्हें कौन-सा पात्र अच्छा लगा?”
लघु अनुच्छेद (Short Paragraphs):
→ बच्चों को छोटे-छोटे अनुच्छेद पढ़ने दें ताकि वे जल्दी अर्थ पकड़ सकें।
भविष्यवाणी तकनीक (Prediction Technique):
→ कहानी का आधा भाग पढ़ाकर पूछें — “आगे क्या होगा?”
→ इससे कल्पना और समझ दोनों बढ़ते हैं।
शब्द पहचान खेल (Word Games):
→ “कौन पहले शब्द पहचानता है?” जैसे खेलों से बच्चों का ध्यान बढ़ता है।
शिक्षक को केवल “पढ़ने की गति” नहीं, बल्कि “अर्थ समझने की क्षमता” भी देखनी चाहिए।
Oral Reading Test: बच्चा सही उच्चारण से पढ़ पा रहा है या नहीं।
Silent Reading Test: बच्चा अर्थ समझ पा रहा है या नहीं।
Comprehension Questions:
“कहानी में क्या हुआ?”
“मुख्य पात्र कौन था?”
“तुम्हें कहानी से क्या सिख मिली?”
पढ़ने के लिए प्रेरक वातावरण (Motivating Environment) बनाना।
बच्चों की रुचि अनुसार किताबें उपलब्ध कराना।
पढ़ने के बाद चर्चा करना ताकि Critical Thinking विकसित हो।
बच्चे को सही उच्चारण, सही अर्थ और सही भाव के साथ पढ़ने के लिए प्रेरित करना।
🔹 Reading Skill (पठन कौशल) — भाषा की ग्रहणशील क्षमता (Receptive Skill)।
🔹 मौखिक वाचन (Oral Reading): ज़ोर से पढ़ना, सही उच्चारण सीखना।
🔹 मौन वाचन (Silent Reading): मन ही मन पढ़ना, अर्थ और कल्पना पर ध्यान।
🔹 Reading Comprehension: पढ़े हुए का अर्थ समझना और अपने अनुभव से जोड़ना।
🔹 Teacher’s Role:
रोचक पाठ्य सामग्री देना।
उच्चारण सुधारना।
अर्थ समझने के प्रश्न पूछना।
🔹 Effective Reading = सही उच्चारण + अर्थ समझ + रुचि।
🔹 पठन के माध्यम से बच्चा भाषा, विचार और भावनाओं की समझ विकसित करता है।
लेखन (Writing) का अर्थ है — अपने विचारों, भावनाओं या ज्ञान को शब्दों के रूप में प्रकट करना।
यह भाषा का सृजनात्मक या उत्पादक कौशल (Productive Skill) है क्योंकि इसमें बच्चा स्वयं भाषा का निर्माण करता है।
लेखन सीखना धीरे-धीरे होता है — पहले बच्चे नकल (Copying) करते हैं, फिर श्रुतलेख (Dictation) और अंत में रचनात्मक लेखन (Creative Writing) करते हैं।
🪶 Classroom Example:
शिक्षक बोर्ड पर “मेरा नाम रीमा है।” लिखते हैं — बच्चे उसे देखकर वही लिखते हैं।
→ यह लेखन सीखने का पहला चरण है।
बच्चे में सही लेखन आदतें (Correct Writing Habits) विकसित करना।
विचारों की अभिव्यक्ति (Expression of Ideas) सिखाना।
व्याकरण और वाक्य संरचना (Grammar & Sentence Formation) का ज्ञान देना।
सृजनात्मकता (Creativity) और कल्पनाशक्ति (Imagination) बढ़ाना।
साफ-सुथरा और स्पष्ट लेखन (Neat & Legible Writing) सिखाना।
🪶 Example:
बच्चा जब “मेरा विद्यालय” पर छोटा अनुच्छेद लिखता है — तो वह अपने विचारों को भाषा में प्रकट करना सीखता है।
जब बच्चा शिक्षक या किताब में लिखा देखकर वही लिखता है, तो उसे अनुकरणात्मक लेखन कहते हैं।
लेखन की शुरुआत इसी चरण से होती है।
इससे बच्चे को अक्षर, शब्द और वाक्य की बनावट (Formation) का अभ्यास मिलता है।
बच्चे सही आकार, मात्रा, विराम चिन्ह (Punctuation) सीखते हैं।
अनुकरण से बच्चे में आत्मविश्वास और साफ-सुथरी लिखावट का विकास होता है।
🪶 Classroom Example:
शिक्षक बोर्ड पर लिखते हैं – “राम खेत में काम करता है।”
→ बच्चे उसे अपनी कॉपी में वैसा ही लिखते हैं।
सरल और छोटे वाक्य लिखने के लिए प्रेरित करें।
बच्चों को धीरे-धीरे स्वतंत्र लेखन की ओर ले जाएँ।
जब शिक्षक वाक्य बोलते हैं और बच्चे सुनकर लिखते हैं, तो इसे श्रुतलेख (Dictation) कहते हैं।
इससे बच्चे में सुनने (Listening) और लिखने (Writing) दोनों कौशल का अभ्यास होता है।
बच्चा उच्चारण, वर्तनी (Spelling) और विराम चिन्हों (Punctuation Marks) का सही प्रयोग सीखता है।
यह स्मरण शक्ति (Memory) और ध्यान एकाग्रता (Concentration) बढ़ाता है।
श्रुतलेख से शुद्ध लेखन (Correct Writing) की आदत विकसित होती है।
🪶 Classroom Example:
शिक्षक कहते हैं — “मौसम बहुत सुहावना है।”
→ बच्चे सुनकर वही वाक्य कॉपी में लिखते हैं।
वाक्य को दो बार पढ़ें — एक बार सामान्य गति से और दूसरी बार धीरे।
त्रुटियाँ बताकर सुधार कराएँ, लेकिन बच्चे को डाँटें नहीं।
श्रुतलेख को मज़ेदार बनाने के लिए कहानी आधारित या चित्र आधारित वाक्य चुनें।
जब बच्चा अपने विचारों, कल्पनाओं या अनुभवों को अपने शब्दों में लिखता है, तो यह रचनात्मक लेखन कहलाता है।
यह लेखन का सबसे उच्च चरण (Highest Stage) है।
इससे बच्चे की कल्पनाशक्ति, विचारशीलता और आत्म-अभिव्यक्ति (Self-expression) बढ़ती है।
बच्चा अपने अनुभव, भावनाएँ, कहानियाँ, कविताएँ या पत्र लिख सकता है।
इसमें कोई तय उत्तर नहीं होता, बच्चा अपनी रचना स्वयं बनाता है।
शिक्षक को बच्चे के विचारों को प्रोत्साहित (Encourage) करना चाहिए, न कि केवल गलतियाँ सुधारनी चाहिए।
🪶 Classroom Example:
शिक्षक बच्चों से पूछते हैं – “अगर तुम जादुई पेन पाओ तो क्या करोगे?”
→ बच्चे अपनी कल्पना से कहानी लिखते हैं — यह रचनात्मक लेखन है।
बच्चों को विचार करने के लिए विषय दें — जैसे “मेरा पसंदीदा खिलौना”, “बरसात का दिन”।
चित्र या कहानी का आरंभिक वाक्य देकर बच्चों से आगे लिखवाएँ।
प्रशंसा और प्रोत्साहन से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाएँ।
चित्र आधारित लेखन (Picture Composition):
→ एक चित्र दिखाकर बच्चों से उसके बारे में वाक्य लिखवाना।
सहयोगी लेखन (Collaborative Writing):
→ बच्चों को जोड़ी में मिलकर एक कहानी या अनुच्छेद लिखने देना।
वाक्य पूर्ण करना (Sentence Completion):
→ “मैं रोज़ ___ जाता हूँ।” जैसे अधूरे वाक्य पूरे करवाना।
डायरी लेखन (Diary Writing):
→ “आज मैंने क्या सीखा?” जैसे वाक्यों में अपनी भावनाएँ लिखवाना।
त्रुटि सुधार अभ्यास (Error Correction Practice):
→ बच्चे के लिखे वाक्यों को देखकर स्वयं सुधारने की आदत डालना।
Story Building Game:
→ शिक्षक शुरू करते हैं — “एक दिन जंगल में…”
→ हर बच्चा बारी-बारी से एक पंक्ति जोड़ता है।
शिक्षक को केवल “साफ-सुथरा लिखना” नहीं देखना चाहिए, बल्कि —
सार्थकता (Meaningfulness) — बच्चा जो लिख रहा है, उसका अर्थ है या नहीं।
शुद्धता (Accuracy) — वर्तनी और व्याकरण सही हैं या नहीं।
संगति (Coherence) — विचारों में क्रम और जुड़ाव है या नहीं।
अभिव्यक्ति (Expression) — बच्चा अपने विचारों को स्पष्ट रूप में लिख पा रहा है या नहीं।
🪶 Example:
अगर बच्चा “मुझे स्कूल जाना अच्छा लगता है क्योंकि वहाँ मैं खेलता हूँ।” लिखता है,
→ तो इसमें स्पष्टता, संगति और सटीकता तीनों हैं।
लेखन के प्रति रुचि (Interest) पैदा करें।
बच्चों को त्रुटियों पर शर्मिंदा न करें, बल्कि सुधार का अवसर दें।
सकारात्मक प्रतिक्रिया (Positive Feedback) दें।
बच्चों की रचनाओं को प्रदर्शित (Display) करें ताकि आत्मविश्वास बढ़े।
व्यक्तिगत लेखन शैली (Individual Style) को सम्मान दें।
🔹 लेखन (Writing) = विचारों की अभिव्यक्ति का साधन।
🔹 यह भाषा का Productive Skill (उत्पादक कौशल) है।
🔹 अनुकरण (Imitation): देखकर लिखना – लेखन की शुरुआत।
🔹 श्रुतलेख (Dictation): सुनकर लिखना – वर्तनी और ध्यान का अभ्यास।
🔹 रचनात्मक लेखन (Creative Writing): अपने विचारों से लिखना – कल्पना और अभिव्यक्ति का विकास।
🔹 शिक्षक की भूमिका:
रोचक लेखन गतिविधियाँ देना।
त्रुटियों को सुधारना, लेकिन बच्चे को हतोत्साहित नहीं करना।
लेखन को दैनिक गतिविधि का हिस्सा बनाना।
🔹 प्रभावी लेखन = साफ-सुथरा, शुद्ध, अर्थपूर्ण और रचनात्मक।
📋 Topics:-
Meaning: किसी कार्य को करने का व्यवस्थित तरीका। Teaching में यह बताता है कि शिक्षक भाषा कैसे सिखाएगा।
Example: जैसे – “प्रत्यक्ष पद्धति” में शिक्षक बच्चों से सीधा लक्ष्य भाषा में बात करता है।
🧠 Remember: Method = “कैसे सिखाया जाए?” का उत्तर।
Meaning: यह विधि मातृभाषा के सहारे दूसरी भाषा सिखाने पर आधारित है। इसमें Grammar के नियमों और Translation का उपयोग होता है।
Example:
Teacher कहता है – “Ram goes to school.” इसका अर्थ हिंदी में बताओ → “राम स्कूल जाता है।”
इससे grammar rule और अर्थ दोनों समझ में आते हैं।
Meaning: जब हम किसी वाक्य को एक भाषा से दूसरी भाषा में समझाते हैं, तो यह translation कहलाता है।
Example:
English sentence – “The sky is blue.”
Translation – “आसमान नीला है।”
🧠 Classroom Tip: Translation बच्चों को अर्थ समझने में मदद करता है।
Meaning: भाषा सिखाने में जब मातृभाषा का सहारा नहीं लिया जाता, केवल लक्ष्य भाषा (Target Language) में सिखाया जाता है।
Example:
शिक्षक “Apple” दिखाकर कहता है – “This is an apple.”
वह हिंदी में नहीं बताता।
👉 यह प्रत्यक्ष पद्धति है।
Meaning: जिस भाषा को सीखना या सिखाना उद्देश्य है।
Example:
अगर बच्चा हिंदी जानता है और English सीख रहा है → English उसकी Target Language है।
Meaning: जब शिक्षण में दो भाषाएँ साथ-साथ प्रयोग होती हैं – मातृभाषा + लक्ष्य भाषा।
Example:
Teacher कहता है – “Stand up – खड़े हो जाओ।”
👉 इससे बच्चे दोनों भाषाओं को जोड़ना सीखते हैं।
Meaning: यह भाषा शिक्षण की पद्धति है जिसमें ध्यान Grammar पर नहीं बल्कि संपर्क और प्रयोग (Communication and Use) पर होता है।
Example:
शिक्षक बच्चों को “Market” का रोल प्ले कराता है –
एक बच्चा दुकानदार, दूसरा ग्राहक।
वे बोलते हैं → “How much is this?” “Ten rupees.”
👉 यह संप्रेषणात्मक सीखना है।
Meaning: विचारों, भावनाओं और सूचनाओं को भाषा के माध्यम से एक-दूसरे तक पहुँचाना।
Example:
Teacher और छात्र के बीच सवाल-जवाब करना – यह भाषा का प्रयोग है।
Meaning: जब विद्यार्थी किसी वास्तविक स्थिति की भूमिका निभाते हैं ताकि भाषा का व्यवहारिक उपयोग कर सकें।
Example:
विषय – “Doctor & Patient”
Student A – “What happened?”
Student B – “I have a headache.”
👉 इससे आत्मविश्वास और बोलने की fluency बढ़ती है।
Meaning: जब बच्चे खेल, कहानी, अभिनय जैसी गतिविधियों से भाषा सीखते हैं।
Example:
Teacher बच्चों से “शब्द खोजो खेल” खिलाता है या “कहानी सुनाने” की गतिविधि करवाता है।
👉 यह तरीका बच्चे को सक्रिय बनाता है।
Meaning: ऐसा शिक्षक जो बच्चों को खुद सीखने के अवसर देता है, सिर्फ बताता नहीं।
Example:
Teacher बच्चों से कहता है – “तुम अपनी पसंद की कहानी सुनाओ।”
वह केवल सुनता और सहयोग करता है।
Meaning: जब विद्यार्थी समूह में काम करते हैं और एक-दूसरे से सीखते हैं।
Example:
4 बच्चों का ग्रुप “कहानी पूरी करो” खेल खेलता है — हर बच्चा एक लाइन जोड़ता है।
👉 सहयोग से सीखना गहरा और आनंदमय बनता है।
Meaning: जब बच्चे अपनी सोच और कल्पना के अनुसार लिखते हैं, न कि नकल करके।
Example:
शिक्षक कहता है – “अगर तुम बादल होते तो क्या करते?”
बच्चे अपने विचार लिखते हैं → यही रचनात्मक लेखन है।
Meaning: किसी कार्य को करने के लिए मन में उत्साह और ऊर्जा जगाना।
Example:
Teacher कहता है – “बहुत अच्छा बोला, शाबाश!”
👉 बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता है।
Meaning: वह परिस्थिति जिसमें कोई शब्द या वाक्य प्रयोग किया गया है।
Example:
“Bank” शब्द का अर्थ अलग-अलग संदर्भ में बदल सकता है —
River bank (किनारा)
Bank (बैंक संस्था)
🧾 CTET Quick Points:
✅ Grammar–Translation Method → मातृभाषा की सहायता से नियमों द्वारा सिखाना।
✅ Direct Method → मातृभाषा का प्रयोग नहीं, केवल लक्ष्य भाषा में शिक्षण।
✅ Bilingual Method → मातृभाषा + लक्ष्य भाषा दोनों का संयोजन।
✅ Communicative Approach → Grammar नहीं, Communication पर ध्यान।
✅ Activity-Based Learning → “Learning by Doing” (करते हुए सीखना)।
✅ Teacher as Facilitator → मार्गदर्शक, प्रेरक, सहयोगी।
✅ Story, Game, Role Play → भाषा को जीवंत और व्यवहारिक बनाते हैं।
✅ Collaborative Learning → समूह में सीखना, संवाद और आत्मविश्वास दोनों बढ़ते हैं।
✅ Motivation (प्रेरणा) और Context (संदर्भ) भाषा प्रयोग को अर्थपूर्ण बनाते हैं।
✅ CTET में यह पद्धतियाँ Pedagogical Approach Questions के रूप में पूछी जाती हैं —
जैसे “कौन-सी विधि में मातृभाषा का प्रयोग नहीं होता?” → Direct Method.
मुख्य पद्धतियाँ:
1️⃣ व्याकरण-अनुवाद पद्धति (Grammar–Translation Method)
2️⃣ प्रत्यक्ष पद्धति (Direct Method)
3️⃣ द्विभाषिक पद्धति (Bilingual Method)
यह सबसे पुरानी और पारंपरिक पद्धति है जिसमें लक्ष्य भाषा (Target Language) को मातृभाषा (Mother Tongue) के माध्यम से सिखाया जाता है।
इसमें छात्र अनुवाद (Translation) के ज़रिए भाषा सीखते हैं।
व्याकरण (Grammar) पर जोर:
भाषा के नियम (rules), संरचना (structure) और शब्दार्थ (meaning) सिखाए जाते हैं।
→ Example: “I go to school” = “मैं स्कूल जाता हूँ।”
अनुवाद अभ्यास (Translation practice):
छात्र अंग्रेज़ी वाक्यों का हिंदी में या हिंदी वाक्यों का अंग्रेज़ी में अनुवाद करते हैं।
शिक्षक-केंद्रित पद्धति (Teacher-centered):
शिक्षक सिखाता है, छात्र सुनते हैं। सीखना ज़्यादातर याद करने (rote learning) पर आधारित है।
लेखन और पठन (Reading-Writing) पर जोर —
बोलने और सुनने की तुलना में पढ़ना और लिखना अधिक सिखाया जाता है।
कम संसाधन आवश्यक (Less resources):
किसी विशेष उपकरण या वातावरण की ज़रूरत नहीं होती।
समय की बचत होती है।
बड़ी कक्षा (large class) में भी आसानी से लागू की जा सकती है।
अनुवाद से अर्थ जल्दी समझ में आता है।
बोलने-सुनने की दक्षता (Speaking-Listening skills) विकसित नहीं होती।
छात्र भाषा “सोचने” की बजाय “अनुवाद” करने लगते हैं।
यह भाषा को जीवंत रूप में नहीं सिखाती।
शिक्षक कहे –
“Ram is playing.”
फिर समझाए – “राम खेल रहा है।”
→ छात्र नियम याद करते हैं: “is/am/are + verb + ing” = Present Continuous Tense.
इस पद्धति में भाषा को सीधे उस भाषा में सिखाया जाता है, मातृभाषा का प्रयोग नहीं किया जाता।
यानी छात्र लक्ष्य भाषा में सोचने, बोलने, सुनने की आदत डालते हैं।
मातृभाषा का प्रयोग नहीं (No use of mother tongue):
शिक्षक हर बात लक्ष्य भाषा में ही समझाता है।
Example: “Apple” शब्द समझाने के लिए शिक्षक सेब दिखाता है।
सुनना और बोलना पहले (Listening and Speaking first):
भाषा प्राकृतिक क्रम में सिखाई जाती है –
सुनना → बोलना → पढ़ना → लिखना।
व्याकरण अप्रत्यक्ष रूप से (Grammar indirectly taught):
नियमों को सीधे नहीं बताया जाता, बल्कि उदाहरणों से छात्र खुद समझते हैं।
अभिनय, चित्र, वस्तु-सहायता (Use of demonstration and pictures):
भाषा को वास्तविक वस्तुओं, चित्रों, हावभावों से सिखाया जाता है।
संचार कौशल पर ध्यान (Focus on communication):
भाषा को उपयोग के रूप में सिखाया जाता है, न कि केवल नियमों के रूप में।
बच्चे भाषा को स्वाभाविक रूप से (naturally) सीखते हैं।
Listening और Speaking skills मजबूत होती हैं।
भाषा सीखना रोचक (interesting) बनता है।
बड़ी कक्षा में लागू करना कठिन।
मातृभाषा न होने से कमजोर विद्यार्थियों को समझने में कठिनाई होती है।
शिक्षकों को अधिक प्रशिक्षण और रचनात्मकता चाहिए।
शिक्षक “Chair” शब्द सिखाने के लिए कुर्सी पर हाथ रखता है और कहता है –
“This is a chair.”
बच्चे भी दोहराते हैं – “This is a chair.”
यह पद्धति व्याकरण-अनुवाद और प्रत्यक्ष पद्धति का संतुलित मिश्रण (balanced combination) है।
यहाँ दोनों भाषाएँ — मातृभाषा (Mother tongue) और लक्ष्य भाषा (Target language) — का समझदारी से प्रयोग किया जाता है।
दोनों भाषाओं का प्रयोग (Use of both languages):
शिक्षक कठिन शब्द या वाक्य मातृभाषा में समझा सकता है, लेकिन अभ्यास लक्ष्य भाषा में करवाता है।
अर्थ स्पष्टता (Clarity of meaning):
मातृभाषा का उपयोग केवल अर्थ स्पष्ट करने के लिए होता है, अनुवाद के लिए नहीं।
संवाद पर ध्यान (Focus on communication):
बच्चों को बोलने और प्रयोग करने के अवसर दिए जाते हैं।
व्याकरण और प्रयोग दोनों का संतुलन (Balance of grammar and use):
न केवल भाषा के नियम, बल्कि उसका व्यवहारिक प्रयोग (functional use) भी सिखाया जाता है।
छात्र जल्दी समझते हैं क्योंकि मातृभाषा सहायक बनती है।
शिक्षक को भाषा सिखाने में सुविधा होती है।
भाषा का प्रयोग और व्याकरण दोनों विकसित होते हैं।
यदि मातृभाषा पर अधिक निर्भरता हो जाए तो बोलने की आदत कम हो जाती है।
शिक्षक को दोनों भाषाओं पर समान अधिकार होना चाहिए।
शिक्षक कहता है –
“This is a pen.”
और फिर हिंदी में जोड़ता है – “यह एक पेन है।”
फिर अभ्यास करवाता है –
“Say it again – This is a pen.”
→ यहाँ मातृभाषा केवल अर्थ स्पष्ट करने के लिए प्रयोग हुई है।
✅ व्याकरण-अनुवाद पद्धति:
Translation-based, grammar-focused.
Listening/Speaking skills कमजोर।
समझने और पढ़ने में आसान, पर प्रयोग में कठिन।
✅ प्रत्यक्ष पद्धति:
मातृभाषा का प्रयोग नहीं।
सुनना और बोलना पहले सिखाया जाता है।
भाषा स्वाभाविक और जीवंत बनती है।
✅ द्विभाषिक पद्धति:
दोनों भाषाओं का प्रयोग (Mother tongue + Target language)।
अर्थ स्पष्ट करने के लिए मातृभाषा, प्रयोग के लिए लक्ष्य भाषा।
यह व्यावहारिक (practical) और संतुलित पद्धति है।
✅ CTET परीक्षा में ध्यान रखें:
प्रत्यक्ष पद्धति → Communication skills पर ज़ोर।
व्याकरण-अनुवाद पद्धति → नियम और अनुवाद आधारित।
द्विभाषिक पद्धति → समझ + प्रयोग दोनों का मेल।
संप्रेषण (Communication) का अर्थ है — विचारों, भावनाओं और सूचनाओं का आदान-प्रदान (exchange of ideas, feelings and information)।
संप्रेषणात्मक पद्धति (Communicative Approach) भाषा को संवाद और व्यवहार (interaction & real use) के माध्यम से सिखाने की विधि है।
इसका उद्देश्य है कि छात्र केवल भाषा के नियम न जानें बल्कि उसे वास्तविक जीवन में प्रयोग (real-life use) करना सीखें।
यह पद्धति 1970 के दशक में यूरोप में विकसित हुई, और इसे Hymes तथा Wilkins जैसे भाषाविदों ने लोकप्रिय बनाया।
यह Direct Method से आगे बढ़कर बनाई गई है — जहाँ उद्देश्य केवल बोलना नहीं, बल्कि अर्थपूर्ण संप्रेषण (meaningful communication) करना है।
🧩 Simple Example:
अगर शिक्षक कहता है – “Tell me what you did yesterday.”
→ यहाँ छात्र अपनी बात खुद बनाकर बोलता है — यह Communicative use है।
छात्र को भाषा का वास्तविक उपयोग (Real use of language) सिखाना।
सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना (LSRW skills) को एकसाथ विकसित करना।
भाषा को संवाद और परिस्थिति (context) के साथ जोड़ना।
छात्रों में आत्मविश्वास (confidence) बढ़ाना ताकि वे भाषा में स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त हो सकें।
भाषा प्रयोग पर ध्यान (Focus on Use):
भाषा को प्रयोग में लाने पर बल, न कि केवल उसके नियम याद करने पर।
→ Example: बच्चे “Good morning!” कहकर शिक्षक से naturally संवाद करते हैं।
अर्थपूर्ण परिस्थिति (Meaningful Context):
भाषा को परिस्थितियों और घटनाओं से जोड़कर सिखाया जाता है।
→ Example: “Shopping at market” activity – छात्र खुद संवाद बोलते हैं, जैसे “How much is this apple?”
त्रुटि (Error) को सीखने का हिस्सा माना जाता है:
गलतियाँ भाषा सीखने की प्रक्रिया (learning process) का स्वाभाविक हिस्सा हैं। शिक्षक तुरंत सुधार नहीं करता, बल्कि छात्रों को बोलने के लिए प्रेरित करता है।
जोड़ी और समूह गतिविधियाँ (Pair and Group Activities):
छात्र Pair work या Group work में बात करते हैं ताकि बातचीत का अभ्यास हो।
→ Example: एक छात्र दुकानदार बने, दूसरा ग्राहक – “Role play activity।”
शिक्षक की भूमिका (Teacher’s Role):
शिक्षक “guide and facilitator” होता है, यानी वह भाषा सिखाने वाला नहीं बल्कि सीखने का माहौल बनाने वाला होता है।
छात्र की भूमिका (Learner’s Role):
छात्र active participant होता है। वह सुनता, बोलता, सोचता और भाषा का प्रयोग करता है।
सभी कौशलों (Skills) का एकीकरण (Integration):
सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना को एक साथ प्रयोग में लाया जाता है — ये सब एक-दूसरे से जुड़े हैं।
Role Play (भूमिका-अभिनय):
छात्र वास्तविक जीवन की भूमिकाएँ निभाते हैं जैसे – डॉक्टर–मरीज़, दुकानदार–ग्राहक।
→ इससे speaking skill और confidence दोनों बढ़ते हैं।
Dialogue Practice (संवाद अभ्यास):
तैयार संवाद की बजाय छात्रों को अपनी स्थिति के अनुसार वाक्य बनाकर बोलने दिए जाते हैं।
Group Discussion (समूह चर्चा):
किसी विषय पर बच्चों को समूह में विचार साझा करने दिए जाते हैं – जैसे “Clean India” या “Save Water।”
Information Gap Activities:
दो छात्रों के पास अलग-अलग जानकारी होती है, और वे बातचीत करके जानकारी साझा करते हैं।
→ Example: एक के पास ट्रेन का समय, दूसरे के पास टिकट की जानकारी।
Games and Songs:
भाषा सीखने को आनंदमय बनाने के लिए “word games”, “story chain”, “rhymes” जैसी गतिविधियाँ की जाती हैं।
इस पद्धति का मुख्य लक्ष्य है कि छात्र Communicative Competence प्राप्त करें।
इसमें चार प्रकार की क्षमताएँ होती हैं —
Grammatical Competence (व्याकरणिक योग्यता):
सही व्याकरण का प्रयोग करने की क्षमता।
→ Example: “He go” की जगह “He goes.”
Sociolinguistic Competence (सामाजिक भाषिक योग्यता):
स्थिति के अनुसार भाषा का सही प्रयोग करना।
→ Example: शिक्षक से कहना – “Good morning, Sir!” और मित्र से – “Hi!”
Discourse Competence (संवाद-संबंधी योग्यता):
वाक्यों को जोड़कर अर्थपूर्ण संवाद या अनुच्छेद बनाना।
→ Example: कहानी को क्रम से सुनाना।
Strategic Competence (रणनीतिक योग्यता):
जब शब्द याद न हों तो gestures, synonyms या दूसरा तरीका अपनाना।
→ Example: “I forgot the word… like thing you eat in morning!” (for ‘breakfast’)
छात्र भाषा को जीवंत और स्वाभाविक रूप में सीखते हैं।
Listening और Speaking दोनों मजबूत होते हैं।
बच्चे आत्मविश्वास से संवाद करना सीखते हैं।
भाषा के प्रयोग से वास्तविक संप्रेषण क्षमता (communication skill) विकसित होती है।
यह सभी भाषा कौशलों (skills) को एकसाथ विकसित करती है।
बड़े वर्गों (large classes) में गतिविधियाँ कराना कठिन होता है।
सभी शिक्षकों को इसकी पूरी training नहीं होती।
कभी-कभी छात्र grammar accuracy पर कम ध्यान देते हैं।
अधिक समय और संसाधनों की आवश्यकता होती है।
✅ Communicative Approach = भाषा प्रयोग की विधि (Language in use).
✅ मुख्य उद्देश्य: भाषा में बोलने और समझने की वास्तविक क्षमता विकसित करना।
✅ शिक्षक की भूमिका: मार्गदर्शक (facilitator), केवल समझाने वाला नहीं।
✅ कक्षा गतिविधियाँ: Role play, dialogue, group discussion, games, real situations।
✅ त्रुटियाँ (errors) को सीखने का स्वाभाविक हिस्सा माना जाता है।
✅ मुख्य सिद्धांत:
भाषा “संचार के लिए” सीखी जाती है, न कि “नियमों के लिए”।
विद्यार्थी active participant होता है।
✅ CTET में याद रखें: यह पद्धति Child-Centered और Activity-Based दोनों है।
गतिविधि आधारित शिक्षण (Activity-Based Teaching) एक ऐसी शिक्षण पद्धति है जिसमें बच्चे स्वयं करके सीखते हैं (learning by doing)।
यह पद्धति रटने (rote learning) की जगह अनुभव से सीखने (experiential learning) पर आधारित है।
भाषा सीखने में यह विधि इसलिए उपयोगी है क्योंकि बच्चे खेल, कहानी, और भूमिकाओं (role play) के माध्यम से भाषा का स्वाभाविक प्रयोग करते हैं।
इसका मुख्य उद्देश्य है — भाषा को जीवंत, आनंदमय और प्रयोग योग्य बनाना।
🧩 Example:
अगर शिक्षक कहानी सुनाने की बजाय बच्चों से कहानी अभिनय करवाता है → बच्चे न सिर्फ़ सुनते हैं बल्कि बोलना, सुनना, और भाव प्रकट करना सीखते हैं।
बच्चों को भाषा के प्रयोग में सक्रिय भागीदारी (active participation) देना।
Listening, Speaking, Reading, Writing (LSRW) — चारों कौशलों का एकसाथ विकास करना।
बच्चों में रचनात्मकता (creativity) और कल्पनाशक्ति (imagination) को बढ़ाना।
भाषा को सामाजिक संदर्भों (social situations) में प्रयोग करना सिखाना।
शिक्षण को आनंददायक (joyful) और बाल-केंद्रित (child-centered) बनाना।
बच्चे केंद्र में (Child at the centre):
बच्चे खुद करते हैं, शिक्षक केवल मार्गदर्शक (facilitator) होता है।
सीखने का वातावरण (Learning Environment):
भाषा का प्रयोग प्राकृतिक और मज़ेदार माहौल में कराया जाता है।
अनुभव से सीखना (Learning by doing):
बच्चे करते हुए सीखते हैं (hands-on learning) — जैसे खेलना, अभिनय करना, कहानी सुनाना आदि।
सहयोगात्मक अधिगम (Collaborative Learning):
बच्चे समूह में काम करते हैं → संवाद और सामाजिक कौशल दोनों बढ़ते हैं।
सभी इंद्रियों का उपयोग (Use of Senses):
बच्चे देख कर, सुन कर, बोल कर, और करके सीखते हैं — यानी पूरा अनुभव।
परिचय:
कहानी बच्चों को भाषा से जोड़ने का सबसे स्वाभाविक तरीका है।
इसमें बच्चे भाव, कल्पना, और शब्दों को एक साथ महसूस करते हैं।
क्यों उपयोगी है:
कहानी में भावनात्मक जुड़ाव (emotional connection) होता है।
भाषा का प्राकृतिक प्रवाह (natural flow) सिखाती है।
नए शब्द (vocabulary) और वाक्य संरचना (sentence structure) सीखने में मदद करती है।
शिक्षक की भूमिका:
शिक्षक आवाज़, हाव-भाव (gestures), और चित्रों का उपयोग करके कहानी सुनाए ताकि बच्चे कल्पना कर सकें।
कक्षा उदाहरण:
शिक्षक “सिंह और चूहा” कहानी सुनाता है, फिर बच्चों से पूछता है —
“अगर तुम चूहा होते तो क्या करते?”
→ इससे बोलने और सोचने की क्षमता दोनों विकसित होती हैं।
परिचय:
खेल बच्चों के लिए सबसे स्वाभाविक गतिविधि है। जब भाषा सीखने को खेल में बदल दिया जाए, तो बच्चे बिना दबाव के सीखते हैं।
प्रकार:
शब्द खेल (Word games): जैसे “शब्द बनाओ”, “Antakshari”, “Guess the word”।
वाक्य खेल (Sentence games): “पूरा करो वाक्य” या “गलती खोजो।”
Quiz / Spelling Games: spelling याद कराने के लिए प्रतियोगिताएँ।
लाभ:
बच्चे नई शब्दावली (vocabulary) आसानी से याद रखते हैं।
भाषा सीखने में रुचि (interest) बढ़ती है।
समूह खेल से टीमवर्क और सहयोग (teamwork & cooperation) की भावना आती है।
कक्षा उदाहरण:
“शब्द खोजो खेल” — शिक्षक बोर्ड पर “ग” से शुरू होने वाले शब्द खोजने को कहता है।
बच्चे बोलते हैं — “गेंद, गिलहरी, घर” → मज़े में सीखना!
परिचय:
Role Play (भूमिका-अभिनय) में बच्चे विभिन्न पात्रों की भूमिका निभाते हैं।
यह भाषा को “वास्तविक जीवन की परिस्थिति” में प्रयोग करने का अवसर देता है।
उद्देश्य:
बोलने में आत्मविश्वास (confidence) बढ़ाना।
उच्चारण और भाव व्यक्त करने की कला सिखाना।
सामाजिक परिस्थितियों को समझना।
कक्षा उदाहरण:
विषय — “Railway Station”
एक बच्चा टिकट क्लर्क बने, दूसरा यात्री।
संवाद:
“Sir, I want a ticket to Delhi.”
“Here is your ticket.”
→ यहाँ बच्चे भाषा का प्रयोग “context” में कर रहे हैं।
लाभ:
भाषा प्रयोग में स्वाभाविकता (natural communication)।
सहानुभूति (empathy) और कल्पना शक्ति का विकास।
बोलने और सुनने की क्षमता दोनों मजबूत।
मार्गदर्शक (Guide):
गतिविधियाँ करवाने में सहयोग देना, न कि केवल पढ़ाना।
सुविधाकर्ता (Facilitator):
बच्चों को बोलने, सोचने, और व्यक्त करने के अवसर देना।
प्रेक्षक (Observer):
यह देखना कि कौन-सा बच्चा किन कौशलों में आगे या पीछे है।
प्रेरक (Motivator):
बच्चों की छोटी उपलब्धियों पर प्रशंसा (positive reinforcement) देना।
बच्चे सक्रिय और आनंदपूर्वक (actively & joyfully) सीखते हैं।
भाषा के चारों कौशल (LSRW) एकसाथ विकसित होते हैं।
आत्मविश्वास और अभिव्यक्ति क्षमता बढ़ती है।
सीखना स्थायी (permanent learning) बन जाता है।
यह विधि बाल-केंद्रित (child-centered) और अनुभवात्मक (experiential) दोनों है।
अधिक समय और तैयारी की आवश्यकता।
बड़े वर्गों (large classrooms) में सभी को शामिल करना कठिन।
कभी-कभी विषय से ध्यान भटक जाता है।
शिक्षक को प्रशिक्षण (training) की आवश्यकता होती है।
✅ गतिविधि आधारित शिक्षण = Learning by doing (करते हुए सीखना)।
✅ मुख्य तीन माध्यम – कहानी, खेल, और रोल प्ले।
✅ उद्देश्य – भाषा सीखने को प्राकृतिक, आनंदमय और व्यवहारिक (practical) बनाना।
✅ शिक्षक = Facilitator & Motivator (मार्गदर्शक और प्रेरक)।
✅ भाषा के सभी कौशलों का विकास होता है (LSRW)।
✅ यह विधि Child-Centered + Activity-Oriented + Communicative है।
📋 Topics:-
Topics Covered:
शिक्षण सहायक सामग्री (TLM, ICT, Audio-Visual Aids)
भाषा खेल, शब्दावली निर्माण की गतिविधियाँ
बहुभाषिक कक्षा में रणनीतियाँ
Meaning: वे सभी वस्तुएँ, चित्र, मॉडल, चार्ट, कार्ड या ऑडियो-विज़ुअल साधन जो पढ़ाने और समझाने में मदद करते हैं।
Simple Words: किताबें, Flash Cards, चित्र, Audio Clips, Word Charts।
Example:
शिक्षक “फल” पढ़ाते समय असली फल या उनके चित्र लाते हैं – यही TLM है।
Meaning: शिक्षण में Technology (तकनीक) का प्रयोग जैसे — Computer, Mobile, Projector, Internet आदि।
Explanation: ICT शिक्षण को रोचक और इंटरएक्टिव (Interactive) बनाता है।
Example:
शिक्षक “क्रिया (Verb)” समझाने के लिए स्मार्ट बोर्ड पर एनीमेशन दिखाते हैं।
Meaning: ऐसी सामग्री जिसमें देखने (Visual) और सुनने (Audio) दोनों का माध्यम होता है।
Example:
बच्चों को “Birds” पर एक छोटी वीडियो दिखाई जाती है जिसमें उनकी आवाजें भी आती हैं।
Meaning: ऐसा सीखना जिसमें बच्चे सक्रिय रूप से भाग लेते हैं — केवल सुनते नहीं बल्कि बोलते, प्रश्न पूछते और उत्तर देते हैं।
Example:
शिक्षक कहते हैं — “अब बताओ, इस कहानी का नाम किसने रखा?” और बच्चे जवाब देते हैं।
Meaning: बच्चे के सही उत्तर या अच्छे व्यवहार पर उसे प्रशंसा (Praise) या इनाम (Reward) देकर प्रोत्साहित करना।
Example:
शिक्षक कहते हैं, “बहुत अच्छा बोला, अंकुर!” — यह positive reinforcement है।
Meaning: किसी व्यक्ति या भाषा के पास मौजूद शब्दों का समूह।
Explanation: शब्दावली का विकास भाषा सीखने का मुख्य आधार है।
Example:
“Water – पानी – नीर” जैसे शब्द जानना शब्दावली बढ़ाता है।
Meaning: ऐसे खेल जिनसे बच्चे खेल-खेल में भाषा सीखते हैं।
Explanation: यह भाषा को “Fear-free” और “Fun-based” बनाता है।
Example:
“शब्द पकड़ो”, “Guess the Word”, “Antakshari”, “Word Chain” इत्यादि।
Meaning: किसी मूल शब्द (Root Word) से नए शब्द बनाना।
Example:
“लिख” → “लेखन”, “लेखक”, “लिखाई” – यह शब्द निर्माण है।
Meaning: एक शब्द को दूसरे से जोड़कर अर्थ समझना।
Example:
“सूरज” शब्द सुनते ही “रोशनी, दिन, गर्मी” याद आते हैं।
Meaning: किसी शब्द का अर्थ उसके वाक्य के संदर्भ (Context) से समझना।
Example:
“कल वह बहुत तेज़ दौड़ा” — यहाँ “तेज़” गति के अर्थ में है, जबकि “तेज़ चाकू” में काटने की धार के अर्थ में।
Meaning: एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग करने की क्षमता।
Example:
बच्चा घर पर पंजाबी बोलता है, स्कूल में हिंदी, और टीवी पर अंग्रेज़ी समझता है — यह बहुभाषिकता है।
Meaning: एक ही वाक्य या वार्ता में दो भाषाओं का मिश्रण करना।
Example:
“Today we will read कहानी का पहला पृष्ठ” — हिंदी और अंग्रेज़ी का मिश्रण।
Meaning: सभी भाषाओं और संस्कृतियों का समान सम्मान और भागीदारी।
Example:
शिक्षक सभी बच्चों से पूछते हैं – “आपकी भाषा में ‘पानी’ को क्या कहते हैं?” ताकि हर बच्चा जुड़ सके।
Meaning: कक्षा में विभिन्न भाषाओं, रीति-रिवाजों और संस्कृतियों की उपस्थिति।
Example:
एक ही कक्षा में तमिल, हिंदी और बंगाली बच्चे – अलग भाषा लेकिन एकता।
Meaning: दो भाषाओं का उपयोग करके शिक्षा देना ताकि बच्चा दोनों में सहज हो सके।
Example:
“This is a किताब – we read books to gain knowledge.”
✅ TLM (Teaching-Learning Material): Concrete, Visual & Audio Aids make learning meaningful.
✅ ICT in Language Teaching: Use of Smartboard, Internet, Audio-Video for interactive learning.
✅ Audio-Visual Aids: “देखना + सुनना = बेहतर समझ।”
✅ Reinforcement: Positive feedback builds confidence.
✅ Language Games: Make language joyful & stress-free.
✅ Vocabulary Development: Word association, context learning, storytelling improve fluency.
✅ Multilingual Strategy: Respect all languages, use bilingual method, and bridge local language to target language.
✅ Code-Switching: Mix of languages helps in concept clarity.
✅ Inclusion: Give equal opportunity to every linguistic background.
✅ CTET Tip: NCF 2005 और NEP 2020 दोनों ने कहा है — “Mother tongue-based multilingual education strengthens learning foundation.”
शिक्षण सहायक सामग्री (TLM – Teaching Learning Material) वे सभी साधन हैं जिनका उपयोग शिक्षक बच्चों को भाषा सिखाने में करता है ताकि सीखना रुचिकर (Interesting), प्रभावी (Effective) और व्यवहारिक (Practical) बने।
इसका उद्देश्य केवल पढ़ाना नहीं, बल्कि बच्चों को अनुभव द्वारा सीखने (Learning by Experience) का अवसर देना है।
TLM = वो साधन जिनसे बच्चा “देखकर, सुनकर, करके” सीखता है।
🧩 Example:
चित्र कार्ड, शब्द कार्ड, कहानी की किताबें, ब्लैकबोर्ड, चार्ट, मिट्टी के मॉडल, बोलने-सुनने की गतिविधियाँ, इत्यादि।
वे सामग्री जिनसे विद्यार्थी “देखकर” सीखते हैं।
ये Language Visualization को बढ़ाती हैं।
🧠 Examples:
चित्र चार्ट (Picture Charts)
Flash Cards (शब्द कार्ड)
Blackboard Drawing
Story Charts
Posters
Maps
📚 Example in class: शिक्षक “फलों के नाम” सिखाते समय फल के चित्र कार्ड दिखाता है।
वे साधन जो सुनकर सीखने (Listening Skill) को विकसित करते हैं।
इससे उच्चारण (Pronunciation), लय (Rhythm), और स्वर (Tone) का ज्ञान होता है।
🧠 Examples:
रेडियो कार्यक्रम
कहानी या कविता की रिकॉर्डिंग
शिक्षक का वाचन (Reading Aloud)
📚 Class Example: “कविता का ऑडियो सुनाना ताकि बच्चे लय और भाव समझें।”
यह देखने + सुनने दोनों अनुभवों से सीखने की सुविधा देती है।
यह सबसे प्रभावी TLM मानी जाती है क्योंकि बच्चे Multi-sensory learning (बहु-इंद्रिय अधिगम) करते हैं।
🧠 Examples:
शैक्षणिक वीडियो (Educational Videos)
Smart Class Content
Animated Stories
YouTube learning content (for kids)
📚 Example: शिक्षक “पर्यावरण” पर एक छोटा वीडियो दिखाकर बच्चों से चर्चा करवाता है।
ICT का अर्थ है सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, यानी digital tools जिनसे सीखना आसान और आधुनिक बनता है।
यह भाषा शिक्षण को Interactive (संवादात्मक) और Dynamic (गतिशील) बनाता है।
🧠 Examples:
Smart Board, Projector, Audio Recorder
Educational Apps (जैसे Diksha, ePathshala, YouTube Edu)
Computer / Mobile-based storytelling
📚 Example: बच्चे टैबलेट पर “Word Matching Game” खेलकर शब्द याद करते हैं।
वे सामग्री जो स्कूल या समुदाय में आसानी से उपलब्ध होती हैं।
यह कम खर्चीली (Low-cost) और बाल-अनुकूल (Child-friendly) होती है।
🧠 Examples:
पुराने अख़बार, पत्रिकाएँ
कार्डबोर्ड से बने शब्द कार्ड
स्थानीय वस्तुएँ जैसे फल, खिलौने, मिट्टी के खिलौने
📚 Example: शिक्षक गाँव में उपलब्ध वस्तुओं के नाम सिखाने के लिए असली वस्तुएँ लाता है।
रुचि जगाती है (Creates Interest):
बच्चे visuals देखकर सीखने में आनंद लेते हैं।
👉 Example: कहानी चार्ट से बच्चे ध्यानपूर्वक सुनते हैं।
समझ बढ़ाती है (Enhances Understanding):
अमूर्त (Abstract) बातें चित्रों और मॉडलों से स्पष्ट होती हैं।
👉 Example: “Rain Cycle” का चित्र समझने में मदद करता है।
सक्रिय भागीदारी (Active Participation):
जब बच्चे सामग्री के साथ काम करते हैं, तो सीखना स्थायी होता है।
👉 Example: बच्चे स्वयं कहानी के कार्ड को क्रम में लगाते हैं।
भाषा कौशलों का विकास (Develops LSRW Skills):
सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना — सभी कौशलों को विकसित करती है।
👉 Example: Story Card → Listening + Speaking practice.
याद रखने में मदद (Aids Memory Retention):
Visuals और activities से concepts लंबे समय तक याद रहते हैं।
बच्चों की विविधता को स्वीकार करती है (Caters to Individual Differences):
हर बच्चा अलग तरह से सीखता है — कोई सुनकर, कोई देखकर।
TLM हर तरह के बच्चे के लिए उपयोगी है।
निर्माता (Creator):
शिक्षक को खुद भी सस्ती स्थानीय सामग्री बनानी चाहिए।
👉 Example: पुराने कार्डबोर्ड से शब्द कार्ड बनाना।
सुविधाकर्ता (Facilitator):
बच्चे को सामग्री इस्तेमाल करने देना चाहिए, सिर्फ दिखाना नहीं।
👉 Example: बच्चों से खुद चार्ट पढ़वाना।
नवोन्मेषक (Innovator):
शिक्षक ICT और पारंपरिक सामग्री का मिश्रण करे।
👉 Example: कहानी वीडियो दिखाने के बाद बच्चों से रोल प्ले कराना।
कहानी सुनाने के लिए – चित्र कार्ड, कहानी वीडियो, Puppets
शब्द सिखाने के लिए – Flash Cards, Word Wall
कविता के लिए – ऑडियो/वीडियो, तालियाँ बजाकर लय अभ्यास
व्याकरण के लिए – चार्ट, word puzzles, matching games
लेखन के लिए – चित्र देखकर वाक्य बनाना (Picture Composition)
सीखना रोचक और दृश्यात्मक बनता है।
बच्चे Interactive Activities से सक्रिय रहते हैं।
Multimedia (audio-video) से भाषा का सही उच्चारण सीखा जा सकता है।
समय की बचत होती है।
Distance learning और self-learning में सहायक।
बच्चे तकनीक से जुड़ते हैं — यह “21st Century Skill” है।
उद्देश्यपूर्ण (Purposeful) – विषय और उद्देश्य से जुड़ी हो।
सरल (Simple) – बच्चों की उम्र और समझ के अनुरूप हो।
रुचिकर (Interesting) – आकर्षक रंग, चित्र और आकार हों।
सस्ती (Low-cost) – आसानी से उपलब्ध या बन सकने वाली।
सुरक्षित (Safe) – बच्चों के लिए सुरक्षित और उपयोगी हो।
व्यवहारिक (Practical) – Classroom में आसानी से उपयोग हो सके।
🧾 Quick Revision for CTET:
✅ TLM (Teaching Learning Material): वे सभी साधन जो भाषा सिखाने को सरल और आनंदमय बनाते हैं।
✅ Visual Aids: चार्ट, चित्र, मॉडल।
✅ Audio Aids: कविता/कहानी की रिकॉर्डिंग, रेडियो।
✅ Audio-Visual Aids: Smart Class, Video, Animation।
✅ ICT Tools: Mobile Apps, Smart Board, Projector।
✅ Local Resources: समुदाय या विद्यालय से बनी सस्ती सामग्री।
✅ Teacher’s Role: निर्माता + सहयोगी + नवोन्मेषक।
✅ Main Objective: बच्चों की सक्रिय भागीदारी, रुचि और समझ बढ़ाना।
✅ 21वीं सदी में ICT आधारित शिक्षण सबसे प्रभावी भाषा शिक्षण संसाधन है।
भाषा सीखने की प्रक्रिया में खेल (Games) और गतिविधियाँ (Activities) बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
जब बच्चे खेल के माध्यम से भाषा सीखते हैं, तो सीखना रुचिकर (Interesting) और स्थायी (Permanent) हो जाता है।
इन गतिविधियों का मुख्य उद्देश्य है —
👉 बच्चों में शब्द ज्ञान (Vocabulary), अर्थ समझ, संचार कौशल (Communication Skills) और सृजनात्मकता (Creativity) को विकसित करना।
🧠 Keyword:
Language Games = भाषाई कौशल सिखाने वाले खेल
Vocabulary Building = शब्दावली का विस्तार करने की प्रक्रिया
भाषा खेल वे शिक्षण गतिविधियाँ हैं जिनमें बच्चे खेल-खेल में भाषा का प्रयोग (Use of Language in Playful Manner) करते हैं।
इनका उद्देश्य है कि बच्चे बोलने, सुनने, पढ़ने और लिखने की भाषा कौशलों को आनंदपूर्वक विकसित करें।
भाषा सीखने में रुचि पैदा करना।
बच्चों को सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित करना।
शब्दों, वाक्यों और उच्चारण का अभ्यास करवाना।
संप्रेषण (Communication) की क्षमता बढ़ाना।
त्रुटियों को स्वाभाविक रूप से सुधारना।
बच्चों में शब्द पहचान (Word Recognition) और शब्द निर्माण (Word Formation) की क्षमता बढ़ाने के लिए।
🧩 Examples:
शब्द जाल (Word Chain):
पहला बच्चा कहे “फल”, अगला कहे “लड्डू”, फिर “ऊँट”… यानी आखिरी अक्षर से नया शब्द बनाना।
यह खेल बच्चों को अक्षरों और ध्वनियों के प्रति सजग बनाता है।
शब्द खोज (Word Search):
शिक्षक ब्लैकबोर्ड पर कई अक्षर लिखता है — बच्चे उनमें से अर्थपूर्ण शब्द ढूँढते हैं।
शब्द जोड़ो (Make a Word):
बच्चों को अक्षरों का समूह दिया जाता है — “क”, “ल”, “म” → “कलम” बनाना।
बच्चों को शब्दों को क्रम में रखकर सही वाक्य बनाने होते हैं।
🧩 Example:
शब्द – “खेल”, “मैं”, “रहा”, “हूँ” → सही वाक्य “मैं खेल रहा हूँ।”
👉 इससे बच्चों का वाक्य विन्यास (Sentence Structure) मजबूत होता है।
इसमें बच्चे किसी स्थिति या पात्र की भूमिका निभाकर भाषा बोलते हैं।
यह Communicative Skills को बढ़ाता है।
🧩 Examples:
“बाज़ार में सब्ज़ी खरीदना” → एक बच्चा दुकानदार, दूसरा ग्राहक।
“स्कूल में छुट्टी की अर्जी देना।”
👉 बच्चों में आत्मविश्वास (Confidence) और बोलने की दक्षता (Speaking Fluency) विकसित होती है।
बच्चे ध्यानपूर्वक सुनना और अर्थ समझना सीखते हैं।
🧩 Examples:
Simon Says Game: “Simon says touch your nose” — बच्चों को केवल “Simon says” पर ही क्रिया करनी है।
कहानी सुनो और बताओ: शिक्षक कहानी सुनाकर पूछता है — “कहानी में बिल्ली कहाँ गई थी?”
👉 इससे Listening Skill और ध्यान (Concentration) दोनों बढ़ते हैं।
बच्चे चित्र देखकर शब्द या वाक्य बनाते हैं।
🧩 Examples:
“Picture Bingo” – शिक्षक चित्र दिखाता है, बच्चे नाम बोलते हैं।
“Describe the Picture” – चित्र देखकर बच्चे वाक्य बोलते हैं।
👉 इससे Observation Power + Vocabulary दोनों विकसित होते हैं।
बच्चों से रोज़ नए शब्द इकट्ठा करवाना।
🧩 Example: “आज हमने पाँच नए शब्द सीखे – पुस्तक, अध्यापक, मित्र, विद्यालय, समय।”
कक्षा की दीवार पर नये शब्द लिखकर चिपकाना।
👉 इससे शब्द रोज़ दिखाई देते हैं और याद रहते हैं।
🧩 Example: "फल", "जानवर", "रंग" – अलग-अलग हिस्सों में।
चित्र और शब्द साथ में दिखाने से बच्चे शब्द को अर्थ से जोड़ना सीखते हैं।
🧩 Example: सेब 🍎 = “Apple”
शिक्षक एक शब्द बोले, बच्चे उसका समानार्थी या विलोम बताएं।
🧩 Example:
“सुंदर” → “खूबसूरत” (समानार्थी)
“ऊँचा” → “नीचा” (विलोम)
दिए गए शब्द से नए शब्द बनाना।
🧩 Example:
“राम” → रामकुमार, रामेश्वर, रामायण
“खेल” → खिलाड़ी, खेलना, खेलकूद
👉 इससे बच्चों की शब्द सृजन क्षमता (Word Creativity) बढ़ती है।
बच्चे कहानी या कविता में आए शब्दों से अर्थ निकालना सीखते हैं।
🧩 Example: कविता में “मंद समीर बहती है” → “समीर” का अर्थ “हवा” समझना।
रुचि और आनंद बढ़ाते हैं – बच्चे खेल-खेल में सीखते हैं।
सक्रिय भागीदारी (Active Participation) होती है।
संचार कौशल (Communication Skill) का अभ्यास होता है।
सहयोग और टीमवर्क (Cooperation & Teamwork) की भावना बढ़ती है।
शब्द भंडार (Vocabulary Bank) समृद्ध होता है।
भाषा के प्रयोग (Use of Language) की आदत बनती है।
Confidence और Creativity दोनों विकसित होते हैं।
सहयोगी (Facilitator) बने, सिर्फ निर्देशन न दे।
खेलों को सीखने के उद्देश्य (Learning Objective) से जोड़ें।
बच्चों को समान अवसर दे भाग लेने का।
त्रुटि सुधार (Error Correction) को खेल का हिस्सा बनाए।
स्थानीय सामग्री (Local Material) का प्रयोग करें – कार्ड, चित्र, शब्द-पर्ची आदि।
🧩 कक्षा 2: “फल – सब्ज़ी पहचानो” खेल → बच्चे चित्र देखकर नाम बोलते हैं।
🧩 कक्षा 3: “कविता शब्द खोज” → कविता में नए शब्द ढूँढो और अर्थ बताओ।
🧩 कक्षा 4: “रोल प्ले – डाकघर में बातचीत।”
🧩 कक्षा 5: “Word Relay Game” – टीम बनाकर शब्द श्रृंखला खेल।
✅ Language Games = खेल-खेल में भाषा सिखाने की पद्धति।
✅ Main Purpose: बच्चों में रुचि, सहभागिता, और भाषा प्रयोग बढ़ाना।
✅ Types: Word Games, Role Play, Listening Games, Picture Games।
✅ Vocabulary Building Activities: Word Wall, Word Collection, Synonym-Antonym Game।
✅ Benefits: Vocabulary Enrichment, Confidence, Teamwork, Communication Skills।
✅ Teacher’s Role: Facilitator, Guide, Innovator।
✅ CTET Tip: भाषा खेल = “Activity-Based Learning” का उदाहरण है।
भारत एक बहुभाषिक देश (Multilingual Country) है — यहाँ के विद्यार्थी अक्सर एक से अधिक भाषाएँ बोलते हैं।
इसलिए कक्षा भी बहुभाषिक (Multilingual Classroom) होती है, जहाँ बच्चे विभिन्न भाषाई पृष्ठभूमियों से आते हैं।
ऐसे वातावरण में शिक्षक को ऐसी रणनीतियाँ (Strategies) अपनानी पड़ती हैं जो सभी भाषाओं का सम्मान (Respect) करें और बच्चों को सीखने में सहजता (Comfort) प्रदान करें।
🧠 Keywords:
Multilingualism (बहुभाषिकता) – एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग करने की क्षमता।
Language Diversity (भाषाई विविधता) – अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाले बच्चों की उपस्थिति।
बच्चे अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं — कोई हिंदी, कोई पंजाबी, कोई मराठी आदि।
शिक्षक को बच्चों की मातृभाषा (Mother Tongue) की समझ रखनी पड़ती है।
कक्षा में सांस्कृतिक विविधता (Cultural Diversity) भी होती है।
एक ही बात को अलग-अलग भाषाओं में समझाना पड़ सकता है।
कक्षा में भाषाई आदान-प्रदान (Language Exchange) के अवसर बढ़ जाते हैं।
🧩 Example:
अगर कक्षा में बच्चे हिंदी, गुजराती और उर्दू बोलने वाले हैं, तो शिक्षक को कुछ शब्द तीनों भाषाओं में स्पष्ट करने पड़ सकते हैं, जैसे — “पानी – जल – आब”।
संचार की कठिनाई (Communication Difficulty):
शिक्षक की भाषा सबके लिए समान नहीं होती।
बच्चे कभी-कभी अपनी भाषा में उत्तर देते हैं, जिससे भ्रम होता है।
भाषाई असमानता (Language Inequality):
कुछ भाषाएँ “मुख्य” मानी जाती हैं और कुछ “कमज़ोर” — इससे बच्चे असहज महसूस कर सकते हैं।
सहपाठियों के बीच मज़ाक या भेदभाव:
यदि कोई बच्चा अपनी भाषा बोलता है और अन्य बच्चे हँसते हैं, तो उसका आत्मविश्वास कम होता है।
शिक्षण सामग्री की कमी:
कई बार सभी भाषाओं में संसाधन उपलब्ध नहीं होते।
🧩 Example:
अगर कहानी की किताब केवल हिंदी में है, तो तमिल या बंगाली बच्चे उसे पूरी तरह नहीं समझ पाते।
समावेशी दृष्टिकोण (Inclusive Attitude):
सभी भाषाओं और संस्कृतियों का सम्मान करें।
यह भावना बच्चों में अपनापन पैदा करती है।
सभी भाषाओं को अवसर देना:
बच्चों को अपनी भाषा में अभिव्यक्ति करने की अनुमति दें।
इससे आत्मविश्वास और भाषा गर्व (Language Pride) बढ़ता है।
सहायक बनना, नियंत्रक नहीं (Facilitator not Controller):
शिक्षक को बच्चों के बीच से सीखने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए।
Code-Switching का उपयोग:
ज़रूरत पड़ने पर शिक्षक दो भाषाओं का मिश्रण (Code Mixing) कर सकता है ताकि बच्चा अर्थ समझ सके।
🧩 Example: “Look at the चित्र — What is this?”
शिक्षक को बच्चों की मातृभाषा को नई भाषा सिखाने के सेतु (Bridge) की तरह उपयोग करना चाहिए।
🧩 Example:
अगर बच्चा “कुत्ता” शब्द जानता है, तो शिक्षक उसे “Dog” से जोड़कर नया शब्द सिखा सकता है।
शिक्षक आवश्यकता अनुसार दो भाषाओं का प्रयोग करता है — जैसे हिंदी और अंग्रेज़ी।
🧩 Example:
“Today we will learn Sangya – it means Noun (नाम बताने वाला शब्द)।”
अलग-अलग भाषाओं के बच्चों को एक समूह में मिलाकर गतिविधियाँ कराना।
इससे बच्चे एक-दूसरे की भाषा से भी सीखते हैं।
🧩 Example:
“चित्र देखकर कहानी बनाओ” → हिंदी बोलने वाला बच्चा अपनी भाषा में बताए, दूसरा अंग्रेज़ी में — दोनों सीखते हैं।
बच्चों की मातृभाषा में उपलब्ध लोककथाएँ, गीत, कहावतें आदि प्रयोग करना।
🧩 Example:
एक ही कहानी “कछुआ और खरगोश” को विभिन्न भाषाओं में सुनाना।
बच्चों से छोटी कहानियाँ या वाक्य अपनी भाषा से लक्ष्य भाषा में अनुवाद करवाना।
🧩 Example:
“मेरा घर सुंदर है” → “My house is beautiful.”
चित्र, चार्ट, और ऑडियो-वीडियो सामग्री भाषा के अंतर को पाटते हैं।
🧩 Example:
“फल” का चित्र दिखाकर शब्द तीन भाषाओं में सिखाना – “Apple”, “सेब”, “सफरजन।”
कक्षा में “भाषा दिवस” मनाना — बच्चे अपनी भाषा में कविता या गीत प्रस्तुत करें।
इससे सभी भाषाओं का समान सम्मान बढ़ता है।
भाषाई सहानुभूति (Linguistic Empathy):
बच्चे अन्य भाषाओं और संस्कृतियों का सम्मान करना सीखते हैं।
संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development):
एक से अधिक भाषाएँ जानने से मस्तिष्क अधिक सक्रिय होता है।
संचार कौशल में वृद्धि (Better Communication):
बच्चे विभिन्न भाषाओं में संवाद कर पाते हैं।
रचनात्मकता (Creativity):
बच्चे कई भाषाओं के शब्दों को मिलाकर नए विचार व्यक्त करते हैं।
राष्ट्रीय एकता (National Integration):
बहुभाषिकता से देश की विविधता में एकता (Unity in Diversity) को बल मिलता है।
बच्चों की भाषाई पृष्ठभूमि जानें।
मातृभाषा को प्रारंभिक शिक्षा में शामिल करें।
भाषा तुलना (Language Comparison) से अर्थ स्पष्ट करें।
प्रत्येक बच्चे को अपनी भाषा में कुछ बोलने का अवसर दें।
ऑडियो-वीडियो सामग्री से सभी भाषाओं को जोड़े।
🧩 Example:
शिक्षक बच्चों से पूछ सकता है — “आपकी भाषा में ‘पानी’ को क्या कहते हैं?”
👉 बच्चे उत्तर देंगे — जल, नीर, थन्नी, पानी, आब — इससे सब भाषाएँ सम्मानित होती हैं।
✅ Multilingual Classroom: जहाँ बच्चे अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं।
✅ Main Challenge: Communication barrier और resource की कमी।
✅ Teacher’s Role: Inclusive, supportive, bilingual facilitator।
✅ Main Strategies:
Bridging Languages
Group Work
Bilingual Teaching
Local Resources
Visual Aids
Translation
Language Celebration
✅ Benefits: Better communication, cultural harmony, cognitive growth।
✅ CTET Tip: NCF 2005 व NEP 2020 दोनों में बहुभाषिकता को शिक्षा की ताकत माना गया है।
📋 Topics:-
📘 विषय : मूल्यांकन और निदानात्मक शिक्षण (Assessment & Diagnostic Teaching)
Meaning (अर्थ):
सीखने की प्रक्रिया में विद्यार्थी की प्रगति को मापने और समझने की प्रक्रिया को मूल्यांकन (Assessment) कहा जाता है।
यह सिर्फ अंक देने के लिए नहीं, बल्कि यह जानने के लिए होता है कि बच्चा क्या जानता है और कहाँ कठिनाई है।
Example:
शिक्षक बच्चों से कहानी पढ़वाकर सवाल पूछते हैं — इससे पता चलता है कि किसे समझ आया और किसे नहीं।
Meaning:
यह वह मूल्यांकन है जो सीखने की प्रक्रिया के दौरान (During Learning Process) किया जाता है।
इसका उद्देश्य बच्चों की कमज़ोरियाँ पहचानना और सुधार में मदद करना है।
Example:
शिक्षक हर हफ्ते बोलने या लिखने का छोटा test लेते हैं — ताकि तुरंत feedback मिल सके।
Meaning:
यह मूल्यांकन सीखने की प्रक्रिया के अंत (At the End of Term) में किया जाता है।
इसका उद्देश्य है — यह जानना कि बच्चे ने पूरी अवधि में कितना सीखा।
Example:
Term-end exam या final test एक सारांशात्मक मूल्यांकन है।
Meaning:
CCE का मतलब है — बच्चे की संपूर्ण प्रगति (Overall Development) का निरंतर आकलन।
यह केवल परीक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि व्यवहार, सहभागिता, रुचि, रचनात्मकता आदि पर भी ध्यान देता है।
Example:
शिक्षक बच्चे की बातचीत, समूह कार्य और चित्रकला में भागीदारी भी अंकित करते हैं।
Meaning:
यह मूल्यांकन विद्यार्थियों की गलतियों और कठिनाइयों (Errors & Difficulties) को पहचानने के लिए किया जाता है,
ताकि आगे सुधारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) कराया जा सके।
Example:
अगर कोई बच्चा बार-बार “ख” की जगह “क” बोलता है,
तो शिक्षक यह पहचानेंगे कि उसे ध्वनि अभ्यास की ज़रूरत है।
Meaning:
किसी पाठ (Passage/Text) को समझने की क्षमता को पठन समझ कहा जाता है।
यह केवल पढ़ना नहीं, बल्कि मतलब समझना, विचार बनाना, और उत्तर देना शामिल है।
Example:
शिक्षक कहानी पढ़वाकर पूछते हैं – “कहानी में मुख्य पात्र कौन था?”
Meaning:
जब विद्यार्थी पाठ को सिर्फ याद नहीं करते बल्कि विश्लेषण (Analysis), मूल्यांकन (Evaluation) और रचनात्मक सोच (Creative Thinking) से समझते हैं, तो इसे उच्च स्तरीय समझ कहते हैं।
Example:
बच्चा कहानी पढ़कर खुद से नया अंत लिखता है — यह उच्च स्तरीय समझ है।
Meaning:
सीखने की प्रक्रिया में की गई गलती जो बताती है कि बच्चे की समझ अधूरी है।
त्रुटि किसी असफलता का संकेत नहीं बल्कि सीखने का अवसर है।
Example:
बच्चा “मैं स्कूल जांता हूँ।” लिखता है → “जांता” = त्रुटि।
Meaning:
बच्चों की गलतियों का अध्ययन कर यह समझना कि क्यों और कहाँ गलती हुई।
यह एक निदानात्मक प्रक्रिया (Diagnostic Process) है।
Example:
अगर बच्चा बार-बार “बिल्ली” को “बिलि” लिखता है → शिक्षक समझेंगे कि यह “मात्रा ज्ञान” की गलती है।
Meaning:
त्रुटि विश्लेषण के बाद, जब शिक्षक विशेष तरीकों से गलती सुधारने के लिए अतिरिक्त सहायता (Extra Support) देते हैं,
तो उसे सुधारात्मक शिक्षण कहा जाता है।
Example:
शिक्षक बच्चे को सही उच्चारण सिखाने के लिए चित्र और ध्वनि अभ्यास करवाते हैं।
Meaning:
बच्चों को यह बताना कि उन्होंने सही किया या कहाँ सुधार की ज़रूरत है।
Feedback सीखने को बेहतर बनाता है।
Example:
शिक्षक कहते हैं — “तुमने बहुत अच्छा लिखा, लेकिन विराम चिन्ह पर ध्यान दो।”
Meaning:
विद्यार्थी को सही काम पर सकारात्मक प्रशंसा (Positive Praise) देना, ताकि वह और अच्छा करे।
Example:
शिक्षक बोलते हैं — “बहुत बढ़िया! अब अगली बार थोड़ा और साफ लिखो।”
Meaning:
जब विद्यार्थी खुद यह सोचता है कि उसने कितना सीखा और कहाँ सुधार चाहिए।
यह आत्मविश्वास और आत्मजागरूकता बढ़ाता है।
Example:
बच्चा कहता है — “मुझे कविता याद है, पर मैं उसे तेज़ी से नहीं बोल पा रहा हूँ।”
Meaning:
जब विद्यार्थी अपने साथी के कार्य को देखकर राय या प्रतिक्रिया देता है,
तो इसे सहपाठी मूल्यांकन कहते हैं।
Example:
एक बच्चा दूसरे की कहानी सुनकर कहता है — “तुम्हारी कहानी अच्छी थी, लेकिन अंत और मज़ेदार हो सकता है।”
Meaning:
विद्यार्थी के बौद्धिक (Intellectual), भावनात्मक (Emotional), सामाजिक (Social) और रचनात्मक (Creative) पहलुओं का विकास।
CCE इसी दिशा में काम करता है।
Example:
बच्चा कविता भी पढ़े, खेल में भाग भी ले और समूह चर्चा में बोले — यही समग्र विकास है।
Meaning:
किसी विचार या जानकारी को भागों में बाँटकर समझना और तुलना करना।
Example:
कहानी में यह सोच पाना कि “लेखक ने यह पात्र क्यों बनाया होगा?” — यह विश्लेषणात्मक सोच है।
Meaning:
जब शिक्षक किसी कठिन अवधारणा को फिर से सिखाते हैं ताकि बच्चा गलती दोहराए नहीं।
Example:
बच्चे “संज्ञा” और “सर्वनाम” में भ्रमित हैं → शिक्षक दोबारा आसान उदाहरणों से समझाते हैं।
Meaning:
विद्यार्थी के व्यवहार, प्रतिक्रिया और भाषा प्रयोग को ध्यान से देखना ताकि वास्तविक मूल्यांकन किया जा सके।
Example:
शिक्षक नोट करते हैं कि कौन-सा बच्चा बोलने में झिझकता है और कौन आत्मविश्वास से जवाब देता है।
Meaning:
सुधारात्मक शिक्षण के बाद यह जाँचना कि बच्चा अब गलती दोहरा तो नहीं रहा।
Example:
शिक्षक दो हफ्ते बाद वही शब्द फिर लिखवाते हैं यह देखने के लिए कि अब सही लिखा या नहीं।
Meaning:
ऐसा मूल्यांकन जो बच्चे की कल्पनाशक्ति, सोचने की क्षमता और सृजनशीलता को आँकता है।
Example:
शिक्षक बच्चों से कहते हैं — “कहानी का नया अंत लिखो।”
✅ Formative Assessment – सीखने की प्रक्रिया के दौरान किया गया मूल्यांकन।
✅ Summative Assessment – सत्र के अंत में प्राप्त ज्ञान का परीक्षण।
✅ CCE – सतत और व्यापक मूल्यांकन; समग्र विकास पर केंद्रित।
✅ Diagnostic Assessment – कठिनाइयों और त्रुटियों की पहचान करने वाला मूल्यांकन।
✅ Reading Comprehension – पठन के माध्यम से अर्थ, भाव और विचार समझने की क्षमता।
✅ Error Analysis – गलती की पहचान, कारण और सुधार की प्रक्रिया।
✅ Remedial Teaching – कमजोर विद्यार्थियों को सुधार हेतु विशेष सहायता देना।
✅ Feedback – सीखने को सुधारने के लिए शिक्षक की प्रतिक्रिया।
✅ Positive Reinforcement – अच्छी कोशिश पर प्रशंसा देकर आत्मविश्वास बढ़ाना।
✅ Re-evaluation – सुधार के बाद पुनः जाँच करना।
✅ Holistic Development – बच्चे के सभी पक्षों का विकास (बौद्धिक, सामाजिक, रचनात्मक)।
भाषा मूल्यांकन (Language Assessment) का अर्थ है —
बच्चे की भाषा समझ, प्रयोग, उच्चारण, शब्द भंडार, व्याकरण और संप्रेषण क्षमता (Communication skills) की जाँच करना।
इसका उद्देश्य केवल अंक देना (grading) नहीं है, बल्कि यह जानना है कि बच्चा कितना और कैसे सीख रहा है।
Example:
शिक्षक कहानी पढ़ने के बाद बच्चों से पूछते हैं — “कहानी का मुख्य पात्र कौन था?”
इससे पता चलता है कि बच्चा सुनकर समझने (Listening Comprehension) की क्षमता रखता है।
बच्चे की भाषाई दक्षता (Language Proficiency) का पता लगाना।
यह समझना कि कौन-से क्षेत्र में बच्चा मजबूत (Strong) या कमज़ोर (Weak) है।
शिक्षण प्रक्रिया को सुधारना (To improve teaching).
बच्चों में आत्ममूल्यांकन (Self-assessment) की भावना पैदा करना।
भाषा के चार कौशलों (Listening, Speaking, Reading, Writing – LSRW) का संतुलित मूल्यांकन करना।
Meaning:
यह वह मूल्यांकन है जो सीखने की प्रक्रिया के दौरान (During learning) किया जाता है।
इसका उद्देश्य बच्चे की सीख में सुधार (Improvement) करना है।
मुख्य विशेषताएँ:
निरंतर और नियमित (Continuous & Ongoing)
Feedback के माध्यम से सुधार
Marks से ज़्यादा Learning पर ध्यान
Diagnostic & Remedial nature (त्रुटि पहचान और सुधार आधारित)
Classroom Example:
शिक्षक रोज़ पाठ पढ़ाने के बाद प्रश्न पूछते हैं –
“इस कहानी का संदेश क्या था?”
या “कौन सा शब्द नया था?”
यह Formative Assessment है क्योंकि इससे शिक्षक समझते हैं कि कौन बच्चा समझ रहा है और कौन नहीं।
Meaning:
यह मूल्यांकन सत्र के अंत (End of Term) में किया जाता है ताकि यह जाना जा सके कि बच्चे ने कितना सीखा है।
मुख्य उद्देश्य:
मूल्यांकन करना, ग्रेड देना, और अगली कक्षा में पदोन्नति के लिए निर्णय लेना।
मुख्य विशेषताएँ:
Year-end or Term-end examination
Quantitative in nature (अंकों पर आधारित)
सीखने की अंतिम उपलब्धि का आकलन
Classroom Example:
साल के अंत में “भाषा परीक्षा” जिसमें व्याकरण, पठन, लेखन आदि सभी प्रश्न पूछे जाते हैं।
Meaning:
CCE का अर्थ है —
“निरंतर (Continuous)” यानी पूरे साल चलने वाला मूल्यांकन,
और “व्यापक (Comprehensive)” यानी बच्चे के संपूर्ण विकास (Overall Development) का मूल्यांकन।
मुख्य उद्देश्य:
केवल अकादमिक (Academic) नहीं बल्कि भावनात्मक, सामाजिक, रचनात्मक (Emotional, Social, Creative) विकास का मूल्यांकन करना।
मुख्य विशेषताएँ:
Continuous → नियमित और सतत अवलोकन
Comprehensive → संज्ञानात्मक (Cognitive), भावात्मक (Affective) और क्रियात्मक (Psychomotor) क्षेत्रों का आकलन
Stress-free Learning Environment
Diagnostic + Remedial + Creative
Example:
शिक्षक छात्रों की पठन क्षमता, सहयोग भावना, अनुशासन और प्रस्तुति कौशल सबका मूल्यांकन करते हैं।
जैसे — कहानी सुनाने की गतिविधि, समूह कार्य, शब्द खेल, कविता पाठ आदि के माध्यम से।
Listening Skills (श्रवण कौशल):
– बच्चे ने क्या सुना, कितना समझा?
– Example: कहानी सुनकर प्रश्नों के उत्तर देना।
Speaking Skills (वाचन/बोलने का कौशल):
– उच्चारण, प्रवाह, आत्मविश्वास और भाषा प्रयोग।
– Example: चित्र देखकर कहानी सुनाना।
Reading Skills (पठन कौशल):
– शब्द पहचान, भावार्थ, समझ।
– Example: अनुच्छेद पढ़कर प्रश्नों का उत्तर देना।
Writing Skills (लेखन कौशल):
– व्याकरण, वर्तनी, रचनात्मकता।
– Example: पत्र लेखन, अनुच्छेद लेखन, कहानी पूर्ण करना।
Observer (अवलोकक): बच्चों की प्रगति को ध्यान से देखना।
Facilitator (सुविधादाता): मदद करना, न कि डराना।
Feedback Provider: सही समय पर सुधारात्मक प्रतिक्रिया देना।
Encourager (प्रोत्साहक): बच्चों की छोटी उपलब्धियों की भी सराहना करना।
Record Keeper: प्रत्येक बच्चे की प्रगति का रिकॉर्ड रखना।
Diagnostic Teaching का अर्थ है —
बच्चे की सीखने की कठिनाई (Learning Difficulty) को पहचानकर उसे सुधारने हेतु उपयुक्त कदम उठाना।
Formative Assessment से शिक्षक यह पता लगाते हैं कि
कौन बच्चा किस क्षेत्र में पीछे है, और फिर Remedial Teaching (सुधारात्मक शिक्षण) द्वारा मदद करते हैं।
Example:
यदि बच्चा “वर्ण भेद” नहीं समझ पा रहा है,
तो शिक्षक उसे चित्र आधारित अभ्यास (Picture-based drill) से समझाते हैं।
✅ Formative Assessment:
➡ सीखने की प्रक्रिया के दौरान, सुधार हेतु किया गया मूल्यांकन।
➡ Feedback आधारित, त्रुटि पहचानने वाला।
✅ Summative Assessment:
➡ सत्र/टर्म के अंत में सीखने की उपलब्धि को मापता है।
➡ Exam आधारित, ग्रेड देने वाला।
✅ CCE (Continuous & Comprehensive Evaluation):
➡ सतत (निरंतर) + व्यापक (संपूर्ण विकास)।
➡ बच्चे के अकादमिक, सामाजिक और भावनात्मक पहलुओं का मूल्यांकन।
✅ Teacher’s Role:
Observer, Motivator, Guide & Feedback Provider।
✅ Diagnostic & Remedial Link:
Formative assessment से मिली जानकारी → Remedial teaching से सुधार।
✅ CTET Exam Tip:
CCE को NCF 2005 ने आवश्यक माना क्योंकि यह “Stress-free learning” और “Holistic development” को बढ़ावा देता है।
पठन समझ (Reading Comprehension) का अर्थ है —
पाठ को केवल पढ़ना नहीं, बल्कि उसके अर्थ को समझना, व्याख्या करना (Interpret), और उपयोग करना।
यह भाषा सीखने की एक सक्रिय प्रक्रिया (Active Process) है जिसमें विद्यार्थी सोचता, समझता और अर्थ निकालता है।
Example:
बच्चा कहानी पढ़ता है – “चींटी और टिड्डा”
अगर वह यह बता पाए कि “टिड्डा क्यों भूखा रह गया?”,
तो इसका मतलब है कि उसने पठन समझ (Reading Comprehension) प्राप्त की।
यह जानना कि बच्चा पढ़े गए पाठ को कितना समझ पा रहा है।
बच्चे की शब्दार्थ समझने की क्षमता (Word Meaning Skill) को मापना।
भावार्थ (Sense or Idea) निकालने की क्षमता का मूल्यांकन।
बच्चे की आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking) का विकास।
पठन के बाद भाषा प्रयोग (Language Use) में सुधार लाना।
Example:
शिक्षक बच्चों को कविता पढ़ने देते हैं और फिर पूछते हैं —
“कवि क्या कहना चाहता है?”
→ यह पठन समझ का मूल्यांकन है।
शब्द पहचान (Word Recognition):
बच्चा शब्दों को सही पहचान सके और उनका उच्चारण सही करे।
Example: “सूरज” शब्द पढ़ते समय उसे “सूरज” ही बोले, “सुरज” नहीं।
शब्दार्थ ज्ञान (Vocabulary Knowledge):
शब्दों के अर्थ को संदर्भ में समझना।
Example: “कल” शब्द का अर्थ संदर्भ पर निर्भर करता है — बीता हुआ दिन या आने वाला दिन।
वाक्य समझ (Sentence Understanding):
वाक्य के अर्थ को सही ढंग से ग्रहण करना।
Example: “राम ने श्याम को किताब दी।” → किसने दी? यह समझना ज़रूरी है।
भावार्थ ग्रहण (Inferential Meaning):
पाठ में न लिखे गए भाव को समझना।
Example: “माँ के चेहरे पर मुस्कान थी।” → इसका भाव है कि माँ खुश थी।
आलोचनात्मक समझ (Critical Understanding):
यह सोचना कि पाठ में दी गई बात सही है या गलत, तर्कसंगत है या नहीं।
Example: “टिड्डा काम नहीं करता था” → क्या यह सही व्यवहार था?
बच्चे से पढ़े गए अंश पर प्रश्न पूछे जाते हैं।
Example: “कहानी का मुख्य पात्र कौन था?”
इससे बच्चे की Listening + Understanding Skills दोनों का आकलन होता है।
बच्चे पाठ पढ़कर लिखित उत्तर देते हैं।
Objective + Subjective दोनों प्रकार के प्रश्न शामिल किए जा सकते हैं।
Example:
एक शब्द में उत्तर – “कहानी का नाम क्या था?”
संक्षिप्त उत्तर – “चींटी ने क्या किया?”
बच्चों को पाठ के आधार पर सही शब्द भरने होते हैं।
Example: “चींटी ने ____ जमा किया।” → “अनाज”
बच्चा पढ़े गए पाठ के आधार पर निर्णय करता है।
Example: “टिड्डा सर्दियों में मेहनत करता था।” → गलत
खासकर निचली कक्षाओं में उपयोगी।
Example: चित्र देखकर पूछना — “यह कौन सा पात्र है?” या “क्या कर रहा है?”
इससे बच्चा Observation + Reading Connection बनाता है।
बच्चा पढ़े गए अंश को अपने शब्दों में संक्षेप में लिखे।
इससे उसकी समझने और अभिव्यक्त करने की क्षमता (Comprehension & Expression) दोनों का मूल्यांकन होता है।
मार्गदर्शक (Guide): बच्चों को समझदारी से पढ़ने की रणनीतियाँ सिखाना।
अवलोकक (Observer): पढ़ते समय बच्चों की हिचकिचाहट, गति, और अभिव्यक्ति पर ध्यान देना।
प्रोत्साहक (Motivator): पढ़ने में रुचि जगाने के लिए कहानी, कविताएँ, खेल आदि शामिल करना।
सहायक (Facilitator): कठिन शब्द या भाव समझने में मदद करना।
मूल्यांकनकर्ता (Evaluator): हर बच्चे के स्तर के अनुसार प्रश्न बनाना।
Example:
कमज़ोर पाठक के लिए सरल प्रश्न, जैसे – “कहानी में कौन आया?”
अच्छे पाठक के लिए गहन प्रश्न, जैसे – “लेखक ने यह कहानी क्यों लिखी होगी?”
यदि बच्चा पढ़ तो रहा है पर अर्थ नहीं समझ पा रहा, तो यह पठन समझ की कठिनाई (Reading Difficulty) है।
शिक्षक को चाहिए कि वह कारण खोजे —
क्या शब्द पहचान, ध्यान केंद्रित करने, या शब्दार्थ में समस्या है?
फिर Remedial Teaching (सुधारात्मक शिक्षण) द्वारा समाधान करे —
जैसे चित्र, रोल-प्ले, दोहराव अभ्यास से समझ बढ़ाना।
Example:
बच्चा “बादल” शब्द नहीं पहचान पा रहा → शिक्षक “बादल” की तस्वीर दिखाकर, बोलकर और वाक्य में प्रयोग करके समझाता है।
✅ पठन समझ (Reading Comprehension) — पढ़े गए पाठ का अर्थ समझना, विचार बनाना, और भाव ग्रहण करना।
✅ मुख्य घटक:
शब्द पहचान → शब्दार्थ → वाक्य अर्थ → भावार्थ → आलोचनात्मक समझ।
✅ मूल्यांकन विधियाँ:
मौखिक प्रश्न
लिखित उत्तर
रिक्त स्थान
सही/गलत
चित्र आधारित प्रश्न
सारांश लेखन
✅ शिक्षक की भूमिका:
Guide, Observer, Facilitator, Motivator, Evaluator।
✅ Diagnostic Teaching Link:
पठन कठिनाई पहचानना → कारण समझना → सुधारात्मक रणनीति अपनाना।
✅ CTET Exam Tip:
Formative Evaluation में पठन समझ के लिए सबसे उपयोगी साधन —
“Oral Questioning + Picture-based Comprehension” माना जाता है।
त्रुटि (Error) का अर्थ है — सीखने की प्रक्रिया में होने वाली गलतियाँ, जो यह बताती हैं कि विद्यार्थी कहाँ और क्यों गलती कर रहा है।
त्रुटि किसी कमज़ोरी (Weakness) का परिणाम होती है, न कि असफलता का।
त्रुटि का विश्लेषण करने से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि विद्यार्थी की समझ (Understanding) किस हिस्से में अधूरी है।
Example:
अगर बच्चा “मेरा स्कूल जांता हूँ।” लिखता है,
तो यह त्रुटि है → सही वाक्य होगा “मैं स्कूल जाता हूँ।”
→ यहाँ क्रिया (Verb) और सर्वनाम (Pronoun) का गलत प्रयोग है।
त्रुटि विश्लेषण (Error Analysis) का मतलब है — विद्यार्थियों द्वारा की गई गलतियों का अध्ययन करना,
ताकि उनके कारण (Causes) और प्रकृति (Nature) को समझा जा सके।
यह एक निदानात्मक प्रक्रिया (Diagnostic Process) है, जिससे शिक्षक को सुधार की दिशा तय करने में मदद मिलती है।
Simple Meaning:
Error Analysis = गलती क्यों हुई + कहाँ हुई + कैसे ठीक करें
Example:
बच्चा बार-बार “बिल्ली” को “बिलि” लिखता है →
→ शिक्षक समझेगा कि समस्या “मात्रा ज्ञान” में है।
भाषिक त्रुटियाँ (Linguistic Errors):
भाषा के नियमों से जुड़ी गलतियाँ।
Example: “वो स्कूल जाता हूँ।” (Subject-Verb agreement error)
लेखन त्रुटियाँ (Writing Errors):
वर्तनी, विराम चिन्ह या व्याकरण से जुड़ी गलतियाँ।
Example: “मुझे किताबे पसन्द है।” → “किताबें” (Plural mistake)
उच्चारण त्रुटियाँ (Pronunciation Errors):
बोलने में गलती करना।
Example: “शेर” की जगह “सेर” बोलना।
अर्थगत त्रुटियाँ (Semantic Errors):
शब्द का अर्थ गलत लेना।
Example: “कल” का अर्थ समझे — बीता हुआ दिन जबकि लेखक ने आने वाला दिन लिखा है।
वाक्य संरचना त्रुटियाँ (Syntactic Errors):
वाक्य क्रम गलत होना।
Example: “स्कूल मैं पढ़ने जाता हूँ।” → “मैं स्कूल पढ़ने जाता हूँ।”
त्रुटि की पहचान (Identification of Errors):
छात्र के उत्तर या लेखन को ध्यान से पढ़कर गलत हिस्से को पहचानना।
Example: “मैं आम खाता है।” → “है” की जगह “हूँ” होना चाहिए।
त्रुटि का वर्गीकरण (Classification of Errors):
त्रुटि किस प्रकार की है – वर्तनी, व्याकरण, उच्चारण या अर्थ की।
त्रुटि के कारणों का पता लगाना (Finding Causes):
यह समझना कि गलती क्यों हुई —
ज्ञान की कमी,
द्विभाषिक प्रभाव (Mother tongue interference),
ध्यान न देना, या
गलत अभ्यास।
त्रुटि की आवृत्ति देखना (Frequency Analysis):
कौन सी गलती सबसे ज़्यादा बार होती है, उस पर विशेष ध्यान देना।
सुधार योजना बनाना (Planning Remedial Teaching):
बार-बार होने वाली गलतियों के लिए विशेष सुधारात्मक गतिविधियाँ (Remedial Activities) तय करना।
मातृभाषा का प्रभाव (Mother Tongue Influence):
बच्चा अपनी भाषा के नियम दूसरी भाषा में लागू कर देता है।
Example: “He go to school.” → हिंदी ढाँचे “वह स्कूल जाता है” का प्रभाव।
अभ्यास की कमी (Lack of Practice):
बार-बार न दोहराने से गलती बनी रहती है।
भ्रम या अधूरी समझ (Incomplete Understanding):
बच्चे ने नियम तो सीखा पर उसका प्रयोग नहीं समझा।
यांत्रिक सीखना (Mechanical Learning):
रटकर सीखना, बिना अर्थ समझे।
शिक्षण पद्धति की कमी (Ineffective Teaching Method):
अगर शिक्षक अवधारणा को अच्छे से नहीं समझाते, तो बच्चे नियम गड़बड़ा देते हैं।
सुधारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) वह प्रक्रिया है
जिसमें शिक्षक विद्यार्थी की त्रुटियों को पहचानकर सुधार के लिए विशेष सहायता (Special Support) प्रदान करता है।
इसका उद्देश्य केवल गलती दिखाना नहीं, बल्कि गलती को समझना और सही उपयोग सिखाना है।
Example:
अगर बच्चा “क” और “ख” में अंतर नहीं समझ पा रहा,
तो शिक्षक उसे चित्र, ध्वनि अभ्यास और लिखने की गतिविधि कराते हैं।
त्रुटि की पहचान (Diagnosis):
कौन सी गलती है — यह पता लगाना।
कारण का पता लगाना (Cause Identification):
गलती क्यों हुई — यह समझना।
सुधारात्मक कार्ययोजना बनाना (Remedial Planning):
गलती सुधारने के लिए कौन-सी गतिविधि या तरीका अपनाया जाए।
पुनः शिक्षण (Re-teaching):
गलत अवधारणा को फिर से आसान तरीके से सिखाना।
अभ्यास कराना (Practice):
अभ्यास के ज़रिए सुधार को स्थायी बनाना।
पुनर्मूल्यांकन (Re-evaluation):
सुधार के बाद यह जांचना कि गलती दोबारा तो नहीं हो रही।
पुनरावृत्ति (Repetition):
सही रूप को बार-बार सुनवाना या लिखवाना।
Example: बच्चा “खाना” की जगह “खन्ना” लिखता है → बार-बार सही रूप दोहरवाना।
दृश्य सामग्री का प्रयोग (Use of Visual Aids):
चित्र, चार्ट, Flashcards से सही अर्थ और रूप दिखाना।
समूह क्रिया (Group Activity):
कमजोर बच्चों को समूह में मिलाकर खेल या अभ्यास करवाना।
शब्द खेल या वाक्य खेल (Word/Sentence Games):
जैसे — “गलत वाक्य को सही करो” खेल।
सकारात्मक प्रोत्साहन (Positive Reinforcement):
जब बच्चा गलती सुधार ले, तो उसकी प्रशंसा करना ताकि आत्मविश्वास बढ़े।
निरीक्षक (Observer):
ध्यान से गलती पहचानना।
मार्गदर्शक (Guide):
त्रुटि के कारण समझाना।
सहायक (Supportive Mentor):
बच्चों को बिना डाँटे गलती सुधारने में मदद करना।
प्रेरक (Motivator):
गलतियों को सीखने के अवसर की तरह दिखाना।
✅ त्रुटि (Error) — सीखने की प्रक्रिया में की गई गलती जो समझ की कमी दर्शाती है।
✅ त्रुटि विश्लेषण (Error Analysis) — गलतियों के कारणों और प्रकारों का अध्ययन।
✅ त्रुटियों के प्रकार: भाषिक, लेखन, उच्चारण, अर्थगत, संरचनात्मक।
✅ त्रुटि विश्लेषण के चरण: पहचान → वर्गीकरण → कारण → सुधार योजना।
✅ सुधारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching): त्रुटियों को सही करने के लिए पुनः शिक्षण और अभ्यास।
✅ तकनीकें: पुनरावृत्ति, दृश्य सामग्री, समूह गतिविधि, शब्द खेल, प्रोत्साहन।
✅ शिक्षक की भूमिका: निरीक्षक + सहायक + प्रेरक।
✅ CTET Exam Tip:
Formative Assessment में Error Analysis और Remedial Teaching का उद्देश्य सीखने में सुधार (Improvement in Learning) होता है, न कि केवल अंक देना।
📋 Topics:-
Meaning: “Cognition” का मतलब है सोचने, समझने, याद रखने और निर्णय लेने की प्रक्रिया।
यानि हमारे मस्तिष्क (Brain) द्वारा जानकारी को ग्रहण करने और उपयोग करने की क्षमता।
Example:
जब बच्चा किसी कहानी को सुनकर उसका अर्थ समझने की कोशिश करता है — वह Cognitive Process है।
🧠 Cognitive = Mind से सोचने-समझने वाली प्रक्रिया।
Meaning: Piaget के अनुसार, Schema मानसिक ढाँचा (Mental Framework) है जिसके द्वारा हम चीज़ों को समझते हैं।
हर नई जानकारी को पुरानी जानकारी से जोड़ने के लिए दिमाग schema बनाता है।
Example:
बच्चे ने “गेंद” के लिए एक schema बनाया है — गोल चीज़। जब वह “सेब” देखता है, तो पहले उसे भी गेंद समझता है, फिर सीखता है कि ये अलग है।
🧩 Schema = Mind का “Knowledge Structure” जो हमें चीज़ें पहचानने में मदद करता है।
Meaning: जब बच्चा नई जानकारी को अपने पुराने ज्ञान (Existing Schema) में जोड़ देता है।
Example:
बच्चा “कुत्ता” देखता है और बिल्ली को भी “कुत्ता” कहता है — क्योंकि उसने दोनों को चार पैर वाले जानवर के रूप में assimilate किया है।
🔸 Assimilation = नई चीज़ को पुराने ज्ञान में जोड़ना।
Meaning: जब नई जानकारी पुरानी जानकारी से मेल नहीं खाती, तो बच्चा अपना schema बदल देता है।
Example:
बच्चा समझता है कि बिल्ली और कुत्ता दोनों अलग हैं — अब उसने नया schema बना लिया।
🔸 Accommodation = अपने पुराने ज्ञान में बदलाव करके नई सीख अपनाना।
Meaning: Piaget के अनुसार सीखना तब होता है जब बच्चा Assimilation और Accommodation में संतुलन बनाता है।
Example:
जब बच्चा confusion से निकलकर नई चीज़ को ठीक से समझ लेता है, तो equilibration होता है।
⚖️ Equilibration = सीखने की मानसिक स्थिरता।
Meaning: Vygotsky का सिद्धांत है — बच्चे की वर्तमान क्षमता और मार्गदर्शन से प्राप्त की जा सकने वाली क्षमता के बीच का अंतर ZPD कहलाता है।
Example:
बच्चा अकेले 2 शब्द पढ़ सकता है, लेकिन शिक्षक की मदद से 5 शब्द पढ़ लेता है — यही उसका ZPD है।
🎯 ZPD = वह क्षेत्र जहाँ बच्चा “थोड़ी मदद” से सीख सकता है।
Meaning: शिक्षक या सहपाठी द्वारा दी गई अस्थायी मदद (Temporary Support) जो बच्चे को कठिन कार्य करने में मदद करती है।
धीरे-धीरे यह सहारा हटा लिया जाता है।
Example:
Teacher पहले बच्चे के साथ पढ़ता है, फिर अकेले पढ़ने को कहता है — यही Scaffolding है।
🏗️ Scaffolding = Step-by-step सहारा देकर सीखने में मदद करना।
Meaning: Krashen के अनुसार, भाषा सीखने के लिए learner को ऐसा Input (भाषाई सामग्री) मिलना चाहिए जो उसकी वर्तमान समझ से थोड़ा कठिन हो (i + 1)।
Example:
अगर बच्चा “This is a cat” जानता है, तो “This is a black cat” सुनना उसका i+1 Input है।
📚 Input Hypothesis = थोड़ा कठिन भाषा सुनकर प्राकृतिक रूप से सीखना।
Meaning: Krashen के अनुसार, डर, तनाव या आत्मविश्वास की कमी भाषा सीखने में बाधा बनती है।
जितना डर ज़्यादा होगा, उतनी सीख कम होगी।
Example:
अगर बच्चा गलती के डर से बोल नहीं पाता, तो उसका Affective Filter ऊँचा है।
❤️ Affective Filter = Emotional Block जो learning को रोकता है।
Meaning: Bloom ने learning के तीन स्तर बताए —
Cognitive (Thinking),
Affective (Feeling),
Psychomotor (Doing)।
Example:
जब बच्चा कविता याद करता है → Cognitive,
भावना महसूस करता है → Affective,
और नाट्य रूपांतरण करता है → Psychomotor।
🌱 Bloom’s Taxonomy = सीखने के मानसिक, भावनात्मक और क्रियात्मक स्तर।
Meaning: यह learning का वह हिस्सा है जहाँ रुचि, मूल्य, भावनाएँ और दृष्टिकोण विकसित होते हैं।
Example:
जब बच्चा देशभक्ति गीत गाते समय गर्व महसूस करता है — वह Affective Domain में सीख रहा है।
💖 Affective = भावनाओं से जुड़ी सीख।
Meaning:
Bilingual: दो भाषाओं में सीखना।
Multilingual: दो से अधिक भाषाओं में सीखना।
Example:
Teacher हिंदी में समझाता है और अंग्रेज़ी में अभ्यास करवाता है — यह Bilingual Class है।
🌍 Bilingual Classroom = जहाँ बच्चे दो या अधिक भाषाओं का प्रयोग करते हैं।
Meaning: भाषा सीखते समय होने वाला डर, झिझक, घबराहट या आत्मविश्वास की कमी।
Example:
बच्चा बोलते समय हकलाता है क्योंकि उसे लगता है लोग हँसेंगे — यही Language Anxiety है।
💬 Language Anxiety = बोलने या सीखने में डर की भावना।
Meaning: बच्चे के अच्छे व्यवहार या प्रयास की सराहना करके उसे और अच्छा करने के लिए प्रेरित करना।
Example:
“बहुत अच्छा किया!” या “तुमने सही कोशिश की” कहना — Positive Reinforcement है।
🌟 Positive Reinforcement = प्रशंसा द्वारा सीखने को मज़बूत करना।
Meaning: जो बच्चे सामान्य गति से सीखने में कठिनाई महसूस करते हैं। उन्हें ज़्यादा अभ्यास और समय चाहिए।
Example:
जो बच्चा बार-बार वही गलती करता है लेकिन कोशिश जारी रखता है — वह Slow Learner है।
🐢 Slow Learner = ज़्यादा मार्गदर्शन और समय की ज़रूरत वाला विद्यार्थी।
Meaning: ऐसा बच्चा जिसकी बौद्धिक या रचनात्मक क्षमता (High Ability) औसत से अधिक होती है।
Example:
जो बच्चा नई कहानी खुद लिख देता है या कठिन सवाल तुरंत हल कर देता है — Gifted Learner है।
🚀 Gifted Learner = High Potential वाला तेज़ विद्यार्थी।
Meaning: हर बच्चे की ज़रूरत और गति के अनुसार अलग-अलग शिक्षण पद्धति अपनाना।
Example:
Slow learners को extra practice देना, और gifted learners को creative task देना — यह Differentiated Teaching है।
🎨 Differentiated Instruction = एक ही विषय को अलग-अलग तरीक़े से सिखाना।
Meaning: एक छात्र दूसरे को सिखाता या सहायता करता है।
Example:
“Riya teaches Rahul spellings” — Peer Tutoring।
👫 Peer Tutoring = सहपाठी द्वारा सीखने में मदद।
Meaning: Gifted Students के लिए सामान्य पाठ्यक्रम से आगे की नई और चुनौतीपूर्ण गतिविधियाँ देना।
Example:
Creative writing, model making, quiz आदि।
🌟 Enrichment = Learning को गहराई में ले जाना।
Meaning: ऐसी कक्षा जहाँ सभी प्रकार के बच्चे — slow, gifted, special needs, language-diverse — एक साथ सीखते हैं।
Example:
Teacher सभी बच्चों को समान अवसर और समर्थन देता है — यह Inclusive Classroom है।
🌈 Inclusive Classroom = सबके लिए समान शिक्षा का वातावरण।
✅ Piaget: Schema, Assimilation, Accommodation, Equilibration
✅ Vygotsky: ZPD + Scaffolding (Learning through support)
✅ Krashen: Input Hypothesis (i+1) + Affective Filter
✅ Bloom: Cognitive (Thinking) + Affective (Feeling) Domains
✅ Bilingual Classroom: Two or more languages → challenge for teacher
✅ Language Anxiety: Fear of speaking → reduce through friendly environment
✅ Slow Learners: Need extra time, support, repetition
✅ Gifted Students: Need challenge, creative tasks
✅ Differentiated Instruction: Teach as per learner’s level
✅ Inclusive Classroom: Equal opportunity for all
(Jean Piaget’s Four Stages of Cognitive Development and Language Growth)
Jean Piaget (1896–1980) एक स्विस मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने बच्चों के संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) का सिद्धांत दिया।
Piaget का मानना था कि बच्चा केवल जानकारी ग्रहण करने वाला नहीं, बल्कि स्वयं सीखने वाला सक्रिय प्राणी (Active Learner) है।
बच्चा अपने वातावरण के साथ अनुभव (Experience) और प्रयोग (Experimentation) के द्वारा सीखता है।
Classroom Example:
जब बच्चे मिट्टी से खेलते हुए घर बनाते हैं — वे केवल खेल नहीं रहे, वे “आकार, आकार-परिवर्तन, संतुलन” के बारे में सीख रहे हैं।
Cognitive Development = मानसिक वृद्धि या सोचने-समझने की प्रक्रिया का विकास।
इसमें शामिल हैं: ध्यान (Attention), स्मृति (Memory), भाषा (Language), समस्या समाधान (Problem Solving) आदि।
यह विकास क्रमिक होता है — बच्चे की उम्र और अनुभव बढ़ने के साथ सोचने की क्षमता भी बदलती है।
Example:
एक 4 साल का बच्चा “क्यों?” वाले सवाल पूछता है, जबकि 10 साल का बच्चा “कैसे?” और “क्या होगा अगर?” जैसे सवाल पूछता है — यह संज्ञानात्मक विकास है।
Piaget ने बच्चों के मानसिक विकास को चार मुख्य चरणों (Stages) में बाँटा —
हर चरण में सोचने, समझने और भाषा के प्रयोग (Language Use) में बदलाव होता है।
मुख्य विशेषताएँ:
बच्चा इंद्रियों (Senses) और क्रियाओं (Actions) के ज़रिए सीखता है।
भाषा का प्रारंभिक विकास होता है — जैसे आवाज़ निकालना, इशारे करना, एक-एक शब्द बोलना।
बच्चा Object Permanence (वस्तु स्थायित्व) सीखता है — यानी वस्तु आँखों से ओझल हो जाए तो भी वह मौजूद है।
Example (Classroom/Daily life):
माँ खिलौना छिपा देती है, फिर दिखाती है — बच्चा मुस्कुराता है, क्योंकि अब उसे समझ आया कि खिलौना गायब नहीं हुआ था।
भाषा से संबंध:
इस अवस्था में बच्चा आवाज़ों की नकल करता है, बोलने के लिए तैयार होता है — यही भाषा विकास की नींव है।
मुख्य विशेषताएँ:
बच्चा कल्पनाशील (Imaginative) बनता है।
सोचने की क्षमता विकसित होती है लेकिन अभी तर्क (Logic) नहीं होता।
बच्चा स्वकेन्द्रित (Egocentric) होता है — यानी चीज़ों को अपनी दृष्टि से ही देखता है।
भाषा बहुत तेज़ी से विकसित होती है — शब्दावली बढ़ती है, वाक्य बनने लगते हैं।
Example:
बच्चा गुड़िया से बात करता है, मानो वह सच में सुन रही हो — यह कल्पनाशक्ति का उदाहरण है।
भाषा से संबंध:
इस अवस्था में बच्चे नए शब्द सीखते हैं, वाक्य बनाना शुरू करते हैं और संवाद के रूप में भाषा प्रयोग करते हैं।
मुख्य विशेषताएँ:
अब बच्चा तार्किक सोच (Logical Thinking) सीखने लगता है, परंतु अभी तक ठोस वस्तुओं (Concrete Objects) के माध्यम से ही समझ सकता है।
बच्चा Conservation (स्थायित्व) की अवधारणा समझता है – जैसे गिलास छोटा-बड़ा हो सकता है, पर पानी की मात्रा वही है।
भाषा अब स्पष्ट, संरचित और तार्किक होती है।
Example (Classroom):
शिक्षक दो अलग आकार के गिलासों में बराबर पानी डालते हैं — बच्चा कहता है “दोनों में बराबर पानी है” → यह ठोस सोच का उदाहरण है।
भाषा से संबंध:
इस अवस्था में बच्चे व्याकरणिक रूप से सही बोलना, कहानी समझना, और सवाल-जवाब करना सीखते हैं।
मुख्य विशेषताएँ:
बच्चा सार सोच (Abstract Thinking) करने लगता है — यानी अब वह ऐसी बातों पर भी सोच सकता है जो प्रत्यक्ष नहीं हैं।
वह तर्क (Reasoning) और परिकल्पना (Hypothesis) बना सकता है।
भाषा अब और सृजनात्मक (Creative) और तार्किक (Analytical) बन जाती है।
किशोर अवस्था में बच्चे वाद-विवाद (Debate), तर्कपूर्ण बातचीत और लेखन कौशल में निपुण होते हैं।
Example:
छात्र सवाल करता है — “अगर सूरज पश्चिम से उगता तो क्या होता?”
→ यह उसकी सार सोच और रचनात्मक भाषा प्रयोग का संकेत है।
Piaget ने कहा कि भाषा = संज्ञानात्मक विकास का परिणाम (Language is the result of cognitive growth) है।
बच्चा पहले सोचना सीखता है, फिर सोच को भाषा में व्यक्त करता है।
भाषा सीखने के लिए बच्चा अन्वेषण (Exploration) और परस्पर क्रिया (Interaction) का प्रयोग करता है।
मुख्य बिंदु:
भाषा सोच की अभिव्यक्ति है।
बच्चे अपनी उम्र और सोचने की क्षमता के अनुसार भाषा का प्रयोग करते हैं।
शिक्षक को बच्चे की संज्ञानात्मक अवस्था को देखकर ही भाषा सिखानी चाहिए।
Classroom Example:
Pre-Operational Stage में बच्चे से “कहानी बनवाना” आसान है,
पर Formal Stage में उससे “कहानी का विश्लेषण” करवाना बेहतर होगा।
अवस्था अनुसार शिक्षण (Stage-Appropriate Teaching):
शिक्षक को बच्चे की सोचने की क्षमता को ध्यान में रखकर भाषा क्रियाएँ देनी चाहिए।
जैसे – छोटे बच्चों को चित्र कहानी, बड़े बच्चों को वाद-विवाद या लेखन।
अनुभवात्मक शिक्षा (Learning by Doing):
Piaget का सिद्धांत “करके सीखो” पर आधारित है।
भाषा सिखाने के लिए रोल-प्ले, बातचीत, खेल, कहानी सुनाना उपयोगी है।
गलतियों को अवसर मानना:
बच्चा गलती करके सीखता है। शिक्षक को गलती पर दंड नहीं, सुधारात्मक प्रतिक्रिया (Constructive Feedback) देनी चाहिए।
संवाद आधारित शिक्षण (Interactive Teaching):
शिक्षक और विद्यार्थियों में लगातार बातचीत होनी चाहिए ताकि बच्चे अपनी भाषा का प्रयोग कर सकें।
✅ Piaget ने कहा – “बच्चा एक Active Learner है जो वातावरण से सीखता है।”
✅ कुल चार चरण (4 Stages) –
Sensori-Motor (0–2 वर्ष) → इंद्रियों से सीखना, भाषा की शुरुआत।
Pre-Operational (2–7 वर्ष) → कल्पनाशक्ति, स्वकेन्द्रित सोच, शब्दावली वृद्धि।
Concrete Operational (7–11 वर्ष) → ठोस तर्क, व्याकरणिक भाषा।
Formal Operational (11+ वर्ष) → सार सोच, तर्क और रचनात्मक भाषा प्रयोग।
✅ भाषा = संज्ञानात्मक विकास का परिणाम।
✅ शिक्षक की भूमिका –
अवस्था अनुसार शिक्षण
अनुभवात्मक क्रियाएँ
संवाद और सुधारात्मक प्रतिक्रिया।
✅ भाषा विकास और सोच (Thinking) आपस में गहराई से जुड़े हैं।
Lev Vygotsky (1896–1934) एक रूसी मनोवैज्ञानिक थे।
उन्होंने सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत (Sociocultural Theory of Learning) दिया।
उनका मानना था कि सीखना (Learning) केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक प्रक्रिया (Social Process) है।
बच्चे दूसरों के साथ बातचीत (Interaction) और सहयोग (Collaboration) से सीखते हैं।
Example:
जब बच्चा किसी दोस्त या शिक्षक की मदद से कोई कठिन शब्द पढ़ना सीखता है, तो वह अकेले से ज़्यादा प्रभावी रूप से सीखता है।
भाषा और विचार (Language and Thought) –
Vygotsky के अनुसार, भाषा (Language) सोच (Thought) का माध्यम है।
बच्चा भाषा के माध्यम से सोचता, समझता और सीखता है।
Example:
बच्चा ज़ोर से बोलता है – “पहले ये करूँगा फिर वो।” → यह उसका Inner Speech (आंतरिक विचार) है, जो उसे योजना बनाने में मदद करता है।
सामाजिक संपर्क (Social Interaction) –
सीखना तब होता है जब बच्चा अनुभवी व्यक्ति (More Knowledgeable Other - MKO) के साथ जुड़ता है — जैसे शिक्षक, माता-पिता, या सहपाठी।
ZPD = Zone of Proximal Development
हिन्दी में: निकटस्थ विकास क्षेत्र
👉 यह Vygotsky का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
ZPD वह क्षेत्र है जहाँ बच्चा अभी स्वयं नहीं सीख सकता,
लेकिन किसी की सहायता (Guidance or Support) से सीख सकता है।
सरल भाषा में:
➡ बच्चा जो अकेले कर सकता है और जो सहायता से कर सकता है — उन दोनों के बीच का अंतर = ZPD।
वर्तमान स्तर (Actual Development Level)
→ जो बच्चा अपने दम पर (Independently) कर सकता है।
Example: बच्चा अकेले 2-अंकों की संख्या जोड़ सकता है।
संभावित स्तर (Potential Development Level)
→ जो बच्चा सहायता (With help) से कर सकता है।
Example: वही बच्चा शिक्षक की मदद से 3-अंकों की संख्या जोड़ सकता है।
इन दोनों के बीच का क्षेत्र = ZPD
→ यहीं पर सीखने की सर्वाधिक संभावना (Maximum Learning Possibility) होती है।
Classroom Example:
एक बच्चा “स” से शुरू होने वाले शब्द नहीं पहचान पा रहा।
शिक्षक थोड़ा संकेत देता है – “स... सूरज!”
बच्चा तुरंत बोल उठता है “सपना, सब्ज़ी!”
→ यह बच्चा ZPD में था — थोड़ा सहयोग मिला और उसने सीख लिया।
Scaffolding = अस्थायी सहारा (Temporary Support)
👉 यह ZPD के अंदर शिक्षक द्वारा दिया गया सहयोग है।
Vygotsky के अनुसार, जब बच्चा नई चीज़ सीखता है, तो शिक्षक या कोई अनुभवी व्यक्ति उसे “सहारा” देता है ताकि वह धीरे-धीरे स्वतंत्र रूप से सीख सके।
Guidance (मार्गदर्शन):
शुरुआत में शिक्षक बताता है कि क्या और कैसे करना है।
Example: शिक्षक कहता है – “पहले वाक्य पढ़ो, फिर उत्तर सोचो।”
Prompting (संकेत देना):
शिक्षक छोटे संकेत या सुझाव देता है।
Example: “यह शब्द पहले हमने कहानी में देखा था, याद है?”
Modeling (नमूना दिखाना):
शिक्षक खुद उदाहरण देता है।
Example: “देखो, मैं यह गणित का सवाल ऐसे हल करता हूँ।”
Encouragement (प्रोत्साहन):
बच्चा कुछ सही करे तो शिक्षक उसकी प्रशंसा करता है।
Example: “बहुत अच्छा! अब अगला तुम खुद करो।”
Gradual Withdrawal (धीरे-धीरे सहारा हटाना):
जैसे-जैसे बच्चा सक्षम होता है, शिक्षक मदद कम करता है।
Example: अब बच्चा अकेले काम करने लगता है।
Scaffolding का मुख्य उद्देश्य:
➡ “बच्चे को स्वतंत्र (Independent Learner)” बनाना।
ZPD = क्षेत्र (Area) जहाँ बच्चा सीख सकता है।
Scaffolding = प्रक्रिया (Process) जिसके ज़रिए शिक्षक बच्चे को उस क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद करता है।
In short:
➡ ZPD बताता है कहाँ मदद चाहिए,
➡ Scaffolding बताता है कैसे मदद दी जाए।
Example (Classroom):
शिक्षक कहानी पढ़वाता है –
पहले वह खुद पढ़ता है (Modeling),
फिर बच्चों को एक पंक्ति पढ़ने देता है (Guidance),
फिर बच्चे पूरी कहानी खुद पढ़ते हैं (Independent Learning)।
→ यही ZPD + Scaffolding का उपयोग है।
बच्चे के ZPD की पहचान करें:
पता लगाएँ कि बच्चा क्या कर सकता है और कहाँ सहायता चाहिए।
उचित Scaffolding दें:
न ज़्यादा मदद, न बहुत कम — उतनी ही सहायता दें जितनी आवश्यक है।
Interacting Learning Environment बनाएँ:
बच्चों को बातचीत, समूह कार्य, चर्चा में शामिल करें।
Peer Learning को बढ़ावा दें:
जो बच्चे ज़्यादा जानते हैं, उन्हें कमज़ोर छात्रों की मदद करने दें।
Feedback दें:
लगातार प्रोत्साहन और सुधारात्मक प्रतिक्रिया से बच्चा आत्मविश्वासी बनता है।
Cycle चलाना सीखना:
पहले माता-पिता साइकिल पकड़ते हैं (Scaffolding),
फिर धीरे-धीरे छोड़ देते हैं — बच्चा खुद चला लेता है → यही ZPD में सीखना है।
नई भाषा सीखना:
शिक्षक पहले शब्द पढ़ता है, फिर बच्चों से दोहरवाता है, फिर सवाल करवाता है —
यह क्रमिक सहायता Scaffolding कहलाती है।
✅ Vygotsky → Sociocultural Theory – सीखना सामाजिक प्रक्रिया है।
✅ ZPD (Zone of Proximal Development) – वह क्षेत्र जहाँ बच्चा मदद से सीख सकता है।
✅ Scaffolding – शिक्षक द्वारा दिया गया अस्थायी सहारा (Temporary Support)।
✅ ZPD = “कहाँ मदद चाहिए”, Scaffolding = “कैसे मदद दी जाए”।
✅ MKO (More Knowledgeable Other) – जो व्यक्ति बच्चे से ज़्यादा जानता है (teacher, parent, peer)।
✅ शिक्षक की भूमिका –
बच्चे का ZPD पहचानना
सहायता धीरे-धीरे घटाना
बातचीत, सहयोग, और फीडबैक से सीखने को प्रोत्साहित करना।
✅ अंतिम लक्ष्य – बच्चा स्वतंत्र रूप से सीखने वाला (Independent Learner) बने।
Stephen Krashen एक अमेरिकी भाषाविद् (Linguist) और भाषा अधिग्रहण विशेषज्ञ हैं।
उन्होंने Second Language Acquisition (द्वितीय भाषा अधिग्रहण) को समझाने के लिए कई सिद्धांत दिए।
उनका सबसे प्रसिद्ध सिद्धांत है — Input Hypothesis।
👉 Krashen का मानना है कि हम भाषा “सीखते” नहीं हैं, बल्कि “अधिग्रहित (Acquire)” करते हैं जब हमें अर्थपूर्ण और समझने योग्य भाषा इनपुट मिलता है।
Language Learning (भाषा सीखना)
यह एक सचेत (Conscious) प्रक्रिया है।
जैसे – grammar rules, spelling, definitions याद करना।
यह “पढ़ाई” की तरह होता है।
Example:
बच्चे से पूछा गया – “‘Was’ कहाँ प्रयोग करते हैं?” → वह नियम याद करता है।
Language Acquisition (भाषा अधिग्रहण)
यह एक अवचेतन (Unconscious) प्रक्रिया है।
बच्चा सुनकर, देखकर, बोलकर स्वाभाविक रूप से भाषा पकड़ता है।
Example:
बच्चा “मैं स्कूल जा रहा हूँ” बार-बार सुनकर खुद बोलना शुरू करता है, बिना नियम जाने।
✅ Krashen का कहना है – असली भाषा सीखना = Acquisition, न कि रटकर Learning।
👉 “We acquire language when we understand messages that are slightly beyond our current level of competence.”
अर्थात् —
हम भाषा तब अधिग्रहित करते हैं जब हमें ऐसी भाषा सुनने या पढ़ने को मिलती है जो हमारी समझ से थोड़ी आगे (Slightly beyond) हो, लेकिन फिर भी अर्थपूर्ण और समझने योग्य हो।
इस विचार को Krashen ने i + 1 Formula से समझाया।
i = बच्चे का वर्तमान भाषा स्तर (Current Level)
+1 = थोड़ा नया या चुनौतीपूर्ण भाषा स्तर (Next Level)
➡ यानी जब बच्चे को i+1 level का Input दिया जाता है, तो वह नई भाषा धीरे-धीरे पकड़ लेता है।
Example:
अगर बच्चा “This is a cat.” समझ सकता है,
तो उसे “This is a black cat.” सुनाया जाए —
यह उसकी समझ से थोड़ा आगे (i+1) है, जिससे वह “black” शब्द अधिग्रहित करेगा।
Krashen ने कहा कि Input को समझना ज़रूरी है, कठिन नहीं बनाना।
Comprehensible Input का मतलब है — ऐसी भाषा जो छात्र को अर्थ के साथ समझ में आए।
चित्रों (Pictures) का उपयोग करें।
👉 शब्द “apple” बोलते समय चित्र दिखाएँ।
हाव-भाव (Gestures) का प्रयोग करें।
👉 “Run” कहते समय दौड़ने का इशारा करें।
संदर्भ (Context) दें।
👉 “The boy is eating.” बोलते समय बच्चे की खाने की क्रिया दिखाएँ।
✅ इससे बच्चा शब्द का अर्थ अनुभव से समझता है, याद करने से नहीं।
Meaningful Input (अर्थपूर्ण इनपुट):
केवल शब्द या व्याकरण नहीं, पूरा संदर्भ और अर्थ जरूरी है।
Example: कहानी सुनाना, जहाँ बच्चा भाव और स्थिति से सीखता है।
Low Affective Filter (कम भावनात्मक बाधा):
जब बच्चा डर, तनाव या असफलता के डर से मुक्त होता है, तब ही वह बेहतर सीखता है।
Affective Filter (भावनात्मक बाधा) का अर्थ है —
भावनाएँ जैसे डर, आत्मविश्वास की कमी, शर्म जो सीखने में रुकावट डालती हैं।
Example: अगर शिक्षक बच्चे का मज़ाक उड़ाए तो बच्चा बोलने से डर जाएगा।
Natural Order (स्वाभाविक क्रम):
भाषा सीखने का एक प्राकृतिक क्रम होता है।
जैसे बच्चा पहले सुनता है → बोलता है → पढ़ता है → लिखता है।
समझने योग्य इनपुट देना (Provide Comprehensible Input):
शिक्षक को भाषा का स्तर ऐसा रखना चाहिए जो बच्चों को समझ में आए, पर थोड़ा नया भी हो।
सहायक वातावरण बनाना (Create Supportive Environment):
बच्चों को गलती करने की स्वतंत्रता दें, ताकि वे आत्मविश्वास से बोल सकें।
अर्थ पर ध्यान देना (Focus on Meaning, not Grammar):
शुरुआत में grammar की जगह communication पर ज़ोर दें।
अवसर देना (Give Opportunities):
बच्चों को सुनने, बोलने, और प्रयोग करने के अवसर दें।
जैसे — कहानियाँ, भूमिका-निभाना (Role Play), गीत, बातचीत आदि।
Storytelling (कहानी सुनाना):
शिक्षक आसान कहानी सुनाता है, और बीच-बीच में नए शब्द जोड़ता है — “The boy is jumping… high!”
→ बच्चा अर्थ समझते हुए नया शब्द “jumping” सीख लेता है।
Class Discussion (कक्षा में चर्चा):
शिक्षक रोज़मर्रा के विषयों पर चर्चा करवाता है — “What do you eat in lunch?”
→ यह स्वाभाविक बातचीत बच्चों को बोलने की आदत देती है।
Songs & Rhymes (गीत और कविताएँ):
बच्चे अर्थपूर्ण शब्द और लय दोनों से भाषा पकड़ते हैं।
Krashen ने कुल 5 Hypotheses दीं — Input Hypothesis उनमें से एक है।
(CTET में कभी-कभी बाकी नाम पूछे जाते हैं, इसलिए याद रखें 👇)
Acquisition vs Learning Hypothesis –
भाषा स्वाभाविक रूप से अधिग्रहित होती है, रटने से नहीं।
Monitor Hypothesis –
Grammar केवल सुधार के लिए है, बोलने की प्रवाहता के लिए नहीं।
Natural Order Hypothesis –
भाषा सीखने का एक स्वाभाविक क्रम होता है।
Input Hypothesis –
i+1 स्तर का Input सीखने में मदद करता है।
Affective Filter Hypothesis –
भावनात्मक रुकावटें (डर, शर्म) सीखने को प्रभावित करती हैं।
✅ Stephen Krashen → अमेरिकी भाषाविद्, Second Language Acquisition Theory के जनक।
✅ Language Acquisition ≠ Learning → यह स्वाभाविक और अर्थपूर्ण प्रक्रिया है।
✅ Input Hypothesis → i + 1 Rule → बच्चा वही सीखता है जो उसकी वर्तमान समझ से थोड़ा आगे हो।
✅ Comprehensible Input = समझ में आने वाली भाषा।
✅ Affective Filter → भावनात्मक बाधा; इसे कम रखना ज़रूरी है।
✅ शिक्षक को भाषा का वातावरण ऐसा बनाना चाहिए जिसमें बच्चे स्वाभाविक रूप से भाषा का प्रयोग करें।
✅ Grammar से ज़्यादा ध्यान Meaning और Context पर देना चाहिए।
✅ उद्देश्य: बच्चे में भाषा का आत्मविश्वास और स्वाभाविक प्रयोग बढ़ाना।
Benjamin Bloom (1956) एक शिक्षा मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने सीखने के उद्देश्यों को वर्गीकृत किया।
उन्होंने बताया कि सीखना केवल याद रखना नहीं है — बल्कि यह सोचना (Thinking), महसूस करना (Feeling), और करना (Doing) तीनों से जुड़ा होता है।
इसीलिए उन्होंने तीन मुख्य क्षेत्र (Domains) बताए:
Cognitive Domain → ज्ञानात्मक क्षेत्र (Knowledge & Thinking)
Affective Domain → भावात्मक क्षेत्र (Attitude & Feelings)
Psychomotor Domain → क्रियात्मक क्षेत्र (Skills & Action)
👉 CTET Paper 1 में अधिकतर प्रश्न पहले दो — Cognitive और Affective Domain — से पूछे जाते हैं।
यह क्षेत्र सोचने, समझने और ज्ञान के उपयोग से जुड़ा होता है।
यह बताता है कि बच्चा किसी भी विषय को कैसे जानता, समझता, और लागू करता है।
Bloom ने इसे 6 स्तरों (Levels) में बाँटा है —
(नीचे से ऊपर जाते हुए जटिलता बढ़ती है।)
यहाँ बच्चा सिर्फ याद रखता है – facts, terms, definitions, formulas आदि।
यह सीखने का पहला और सबसे सरल स्तर है।
Example:
– “भारत की राजधानी क्या है?”
– “Noun की परिभाषा बताओ।”
👉 छात्र सिर्फ याद किया हुआ उत्तर दोहराता है।
बच्चा अब केवल याद नहीं करता, बल्कि अर्थ भी समझता है।
वह अपने शब्दों में समझा सकता है।
Example:
– “वाक्य में कर्ता और क्रिया कैसे जुड़े हैं, समझाओ।”
– “जल चक्र कैसे काम करता है?”
👉 यह स्तर “Explain” या “Describe” शब्दों से पहचाना जाता है।
बच्चा सीखे हुए ज्ञान को नई स्थिति (New Situation) में लागू करता है।
यह “Learning by Doing” का स्तर है।
Example:
– गणित का सूत्र किसी नए सवाल में लगाना।
– Grammar rule को नए वाक्य में प्रयोग करना।
👉 यह दिखाता है कि बच्चा केवल जानता नहीं, बल्कि उपयोग भी कर सकता है।
बच्चा चीज़ों को टुकड़ों में बाँटकर समझता है —
कौन-सा भाग क्या कर रहा है, कारण-परिणाम क्या है।
Example:
– कहानी के मुख्य पात्रों का विश्लेषण करो।
– “जलवायु परिवर्तन के कारण क्या हैं?”
👉 यह स्तर “Compare”, “Differentiate”, “Examine” शब्दों से पहचाना जाता है।
बच्चा अब नई चीज़ बनाता है या विचार जोड़ता है।
यह रचनात्मक (Creative) सोच का स्तर है।
Example:
– “अपनी कहानी खुद लिखो।”
– “किसी समस्या का नया समाधान सोचो।”
👉 इस स्तर पर बच्चा कल्पना, संयोजन और नवाचार करता है।
यह सबसे ऊँचा स्तर है — जहाँ बच्चा निर्णय (Judgment) लेता है।
वह किसी विचार, उत्तर या कार्य का मूल्यांकन करता है – सही या गलत क्यों है।
Example:
– “क्या गांधीजी का अहिंसा का मार्ग आज भी उपयोगी है?”
– “कविता में कौन-सी बात सबसे प्रभावशाली लगी?”
👉 यहाँ बच्चा तर्क देकर निर्णय करता है।
यह क्षेत्र रवैए (Attitude), भावनाओं (Emotions), और मूल्यों (Values) से जुड़ा है।
Bloom के सहयोगी Krathwohl ने इसे 5 स्तरों में बाँटा।
बच्चा नई जानकारी पर ध्यान देता है, उसे सुनने के लिए तैयार होता है।
Example:
– शिक्षक की बात ध्यान से सुनना।
– कहानी या कविता में रुचि दिखाना।
बच्चा अब भाग लेता है — उत्तर देता है, प्रश्न पूछता है, या सहयोग करता है।
Example:
– शिक्षक द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देना।
– समूह गतिविधि में शामिल होना।
बच्चा किसी विचार या व्यवहार को महत्त्वपूर्ण मानता है।
Example:
– “सत्य बोलना जरूरी है” — इस बात को दिल से मानना।
– स्वच्छता या समयपालन को मूल्य मानना।
बच्चा अपने मूल्यों को व्यवस्थित (Organize) करता है और उन्हें जीवन में स्थान देता है।
Example:
– “ईमानदारी, परिश्रम और सहयोग” — इन मूल्यों को अपने व्यवहार का हिस्सा बनाना।
यह सबसे उच्च स्तर है — जहाँ मूल्य व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं।
Example:
– बच्चा हर स्थिति में सच्चा रहता है क्योंकि अब यह उसका स्वभाव बन गया है।
शिक्षक को सभी स्तरों का ध्यान रखना चाहिए —
बच्चे को सिर्फ याद करने नहीं, सोचने, महसूस करने और करने के अवसर देने चाहिए।
Cognitive Activities:
– प्रश्न पूछना, विश्लेषण कराना, रचनात्मक कार्य देना।
Affective Activities:
– कहानी, चर्चा, नैतिक शिक्षा, रोल-प्ले, सामाजिक मूल्य सिखाना।
Assessment:
– प्रश्न केवल “क्या” पर नहीं, बल्कि “क्यों” और “कैसे” पर आधारित हों।
Cognitive Example:
शिक्षक कहता है — “कविता का भाव बताओ” → बच्चा सोचता है, विश्लेषण करता है।
Affective Example:
“झूठ बोलना बुरा क्यों है?” → बच्चा मूल्य पर विचार करता है और उसे अपनाता है।
✅ Bloom (1956) → Learning Objectives को 3 Domains में बाँटा।
✅ Cognitive Domain → Thinking (6 Levels) → Remember, Understand, Apply, Analyze, Create, Evaluate.
✅ Affective Domain → Feeling & Values (5 Levels) → Receive, Respond, Value, Organize, Characterize.
✅ Cognitive में “ज्ञान का प्रयोग”, Affective में “भाव और मूल्य” का विकास होता है।
✅ शिक्षक को इन दोनों Domains को संतुलित तरीके से कक्षा में लागू करना चाहिए।
✅ CTET में अक्सर प्रश्न आते हैं –
“कौन-सा स्तर मूल्य आधारित व्यवहार दिखाता है?”
“Bloom’s Taxonomy का सबसे उच्च स्तर कौन-सा है?”
Bilingual का अर्थ है — दो भाषाओं का प्रयोग करने वाला।
→ जैसे: एक बच्चा हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों जानता है।
Multilingual का अर्थ है — दो से अधिक भाषाएँ प्रयोग करने वाला।
→ जैसे: भारत में बच्चे हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू, मराठी आदि कई भाषाएँ बोलते हैं।
भारत एक बहुभाषिक (Multilingual) देश है। इसलिए कक्षा में अलग-अलग भाषाई पृष्ठभूमि (Language Background) के बच्चे आते हैं।
👉 मुख्य बात: शिक्षक को ऐसे माहौल में पढ़ाना होता है जहाँ हर बच्चे की भाषा अलग हो सकती है।
यह सीखने में कई चुनौतियाँ (Challenges) पैदा करता है।
बच्चे अलग-अलग मातृभाषा (Mother Tongue) बोलते हैं।
स्कूल की शिक्षण भाषा (Medium of Instruction) कई बच्चों की पहली भाषा नहीं होती।
एक ही कक्षा में भाषा-समझ का स्तर (Language Proficiency Level) अलग-अलग होता है।
कुछ बच्चे भाषा में आत्मविश्वासी होते हैं, तो कुछ डर या झिझक महसूस करते हैं।
Example:
एक कक्षा में —
रवि हिंदी बोलता है,
सुहाना उर्दू,
सीमा मराठी,
और पढ़ाई का माध्यम अंग्रेज़ी है।
→ शिक्षक को सबके लिए संतुलित तरीका अपनाना पड़ता है।
जब शिक्षण की भाषा बच्चे की मातृभाषा नहीं होती, तो उसे समझने में दिक्कत होती है।
Example:
अगर गणित अंग्रेज़ी में पढ़ाई जा रही है और बच्चा हिंदी भाषी है, तो “Subtraction” शब्द उसे कठिन लग सकता है।
शिक्षक और छात्र के बीच संवाद कमजोर हो जाता है।
बच्चे अपने विचार खुलकर नहीं रख पाते।
Example:
बच्चा कहना चाहता है “मुझे समझ नहीं आया”, पर अंग्रेज़ी में बोलने में डरता है।
जब बच्चे को अपनी भाषा में बोलने का मौका नहीं मिलता, तो वह झिझकता है।
उसे लगता है कि उसकी भाषा “कमज़ोर” है।
Example:
यदि कक्षा में केवल अंग्रेज़ी में बोलने की अनुमति हो, तो हिंदी या उर्दू भाषी बच्चे चुप रहने लगते हैं।
शिक्षक को हर बच्चे की भाषा समझना या सम्मान देना कठिन होता है।
समय की कमी में सबको समान ध्यान देना मुश्किल हो जाता है।
Example:
एक शिक्षक को हिंदी, अंग्रेज़ी और मराठी भाषी बच्चों को एक साथ समझाना है — यह आसान नहीं है।
किताबें अक्सर एक ही भाषा में होती हैं।
अन्य भाषाई छात्रों के लिए अनुवाद या चित्रात्मक सहारा नहीं होता।
Example:
अगर किताब अंग्रेज़ी में है, तो उर्दू भाषी बच्चा चित्र देखकर ही समझने की कोशिश करता है।
परीक्षा में भाषा का अंतर बच्चे के ज्ञान को प्रभावित कर देता है।
Example:
बच्चा विज्ञान समझता है लेकिन अंग्रेज़ी में लिख नहीं पाता, तो उसका स्कोर कम हो जाता है।
कुछ भाषाओं को “ऊँचा दर्जा” मिल जाता है (जैसे अंग्रेज़ी), जबकि स्थानीय भाषाओं को कमतर समझा जाता है।
इससे बच्चों में असमानता (Inequality) आती है।
Example:
बच्चा कहता है – “मुझे तो अंग्रेज़ी नहीं आती, मैं बेवकूफ़ हूँ।”
→ यह भावनात्मक नुकसान है।
शुरुआती कक्षाओं में बच्चे की मातृभाषा का सहारा लेकर पढ़ाना चाहिए।
इससे बच्चे को आत्मविश्वास और समझ दोनों मिलते हैं।
Example:
“Water means पानी” – दोनों भाषाओं में समझाने से बच्चा तुरंत सीखता है।
शिक्षक ज़रूरत पड़ने पर दो भाषाओं का मिश्रण (Mixing of Two Languages) कर सकते हैं।
Example:
“Children, अब हम subtraction सीखेंगे – इसका मतलब है घटाना।”
👉 यह तरीका भाषा सीखने में मदद करता है।
चित्र, चार्ट, वीडियो आदि का उपयोग करें ताकि भाषा पर निर्भरता कम हो।
Example:
“Tree” शब्द के साथ पेड़ की तस्वीर दिखाना → सभी भाषाओं के बच्चों को समझ आ जाता है।
एक भाषा में अच्छा बच्चा दूसरे बच्चे की मदद करे।
यह सहयोगात्मक (Collaborative) वातावरण बनाता है।
Example:
रवि अंग्रेज़ी में अच्छा है, तो वह सीमा को कठिन शब्द समझाए।
शिक्षक को हर भाषा का सम्मान (Respect) करना चाहिए।
उसे यह नहीं दिखाना चाहिए कि केवल एक भाषा श्रेष्ठ है।
Example:
अगर बच्चा अपनी भाषा में बोलता है, तो शिक्षक उसे प्रोत्साहित करे: “बहुत अच्छा, अब इसे अंग्रेज़ी में भी बोलने की कोशिश करो।”
बच्चों को कहानी, गाना, और रोल-प्ले जैसी गतिविधियों में अपनी भाषा प्रयोग करने दें।
इससे वे अपनी पहचान के साथ सीखने में भाग लेते हैं।
मूल्यांकन केवल भाषा के आधार पर न हो, बल्कि समझ, सहभागिता और प्रयास को भी शामिल करें।
Example:
बच्चा अगर उत्तर अपनी भाषा में बोलता है पर सही है, तो उसे पूर्ण अंक दें।
📚 Example:
कक्षा 3 में गणित पढ़ाई जा रही है — विषय “Shapes”।
शिक्षक “Circle” कहता है और साथ ही “गोल” शब्द बोलता है।
बच्चे अपने शब्दों में बताते हैं — “मेरे घर में थाली गोल है।”
→ इस तरह दोनों भाषाओं का प्रयोग सीखने को आसान बनाता है।
✅ Bilingual Classroom = दो भाषाएँ; Multilingual Classroom = कई भाषाएँ।
✅ भारत की कक्षाएँ स्वाभाविक रूप से बहुभाषिक हैं।
✅ मुख्य चुनौतियाँ – भाषा समझ, संवाद, आत्मविश्वास, शिक्षक की कठिनाई, मूल्यांकन में असमानता।
✅ समाधान – मातृभाषा का प्रयोग, Code-Switching, Visual Aids, Peer Learning, सम्मानजनक दृष्टिकोण।
✅ शिक्षक का कार्य – भाषाई विविधता (Linguistic Diversity) को बाधा नहीं, संसाधन (Resource) मानना चाहिए।
✅ CTET में अक्सर प्रश्न आता है:
“बहुभाषिक कक्षा में शिक्षक की भूमिका क्या होनी चाहिए?”
👉 उत्तर: बच्चे की सभी भाषाओं को सीखने का साधन मानना चाहिए, बाधा नहीं।
Language Anxiety (भाषा चिंता) का अर्थ है —
किसी नई भाषा को बोलते, लिखते या समझते समय होने वाली घबराहट, डर या तनाव (Nervousness, Fear, or Tension) की भावना।
जब विद्यार्थी को डर लगता है कि वह भाषा में गलती करेगा, हँसी उड़ाई जाएगी या शिक्षक डाँटेंगे,
तो वह language learning (भाषा अधिगम) में सक्रिय भाग नहीं लेता।
Example:
कक्षा में शिक्षक अंग्रेज़ी में प्रश्न पूछता है —
“Tell me your favorite hobby.”
बच्चा जानता है उत्तर, पर डर के कारण चुप रहता है।
👉 यही Language Anxiety है।
जब विद्यार्थी बोलने या बातचीत करने से डरता है।
उसे लगता है कि वह गलत बोलेगा या लोग हँसेंगे।
Example:
बच्चा कहता है “He go to school” और सब हँस पड़ते हैं → अगली बार वह बोलने से बचता है।
परीक्षा या मूल्यांकन (Assessment) के समय भाषा में गलती करने का डर।
भाषा परीक्षा में शब्द या व्याकरण गलत होने का भय रहता है।
Example:
अंग्रेज़ी स्पेलिंग टेस्ट में बच्चा nervous हो जाता है और सही शब्द भी भूल जाता है।
शिक्षक या सहपाठी उसके उत्तर का मज़ाक उड़ाएँगे या उसे गलत ठहराएँगे,
इस डर से बच्चा भागीदारी से दूर रहता है।
Example:
जब शिक्षक कहता है “गलत बोला तुमने”, तो बच्चा अगली बार उत्तर देने से बचता है।
बच्चा अपनी भाषा क्षमता पर भरोसा नहीं करता।
उसे लगता है कि “मैं दूसरों जितना अच्छा नहीं बोल सकता।”
Example:
“सबको अंग्रेज़ी आती है, मुझे नहीं।” — यह सोच ही डर बढ़ाती है।
कुछ शिक्षक या साथी गलती पर हँसते हैं या सुधारते नहीं, डाँट देते हैं।
→ इससे बच्चा सोचता है “मैं बोलूँगा तो गलती हो जाएगी।”
अगर शिक्षक कठोर है या केवल “सही” उत्तर को महत्व देता है,
तो बच्चे खुलकर नहीं बोलते।
Example:
“तुम्हारा tense गलत है” बार-बार कहने से बच्चा डरने लगता है।
अगर कुछ बच्चे भाषा में बहुत अच्छे हैं,
तो बाकी बच्चे हीनभावना (Inferiority Complex) महसूस करते हैं।
जब घर या स्कूल में नई भाषा बोलने का माहौल नहीं होता,
तो बच्चा अभ्यास से वंचित रहता है।
Example:
बच्चा स्कूल में अंग्रेज़ी सीखता है, लेकिन घर पर कोई अंग्रेज़ी नहीं बोलता → डर बढ़ता है।
बोलने में झिझक (Hesitation in Speaking)
कक्षा में कम भागीदारी (Less Participation)
सीखने की गति धीमी (Slow Learning)
आत्मसम्मान में कमी (Low Self-Esteem)
गलतियों का डर, जिससे अभ्यास रुक जाता है (Avoidance of Practice)
Example:
ऐसे बच्चे लिखने-बोलने से बचते हैं, सिर्फ सुनने में समय बिताते हैं।
कक्षा में सुरक्षित और सहयोगी वातावरण (Safe & Supportive Environment) बनाना चाहिए।
शिक्षक को बच्चों को यह महसूस कराना चाहिए कि “गलती करना सीखने का हिस्सा है।”
Example:
शिक्षक कहे – “It’s okay if you make a mistake. You are learning!”
सही उत्तर देने या प्रयास करने वाले बच्चे की सराहना करें (Appreciate the effort)।
Example:
“Good try! Next time you’ll say it even better.”
जो बच्चे confident हैं, उन्हें shy बच्चों के साथ जोड़ें।
मिलकर बोलने-लिखने की गतिविधियाँ कराएँ।
Example:
Role Play – “Shopkeeper and Customer” → बच्चे मज़े में भाषा बोलते हैं।
शुरुआत में बच्चे को मातृभाषा से जोड़कर सीखने दें।
Example:
“Table – यानी मेज़” कहकर दोनों भाषाओं में अर्थ समझाएँ।
गलती पर हँसने या डाँटने के बजाय, शिक्षक को उसे सुधार के अवसर (Opportunity to Learn) के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए।
Example:
बच्चा बोला – “He go to school.”
शिक्षक मुस्कराकर बोले – “Good! Just add ‘s’ with ‘go’ – He goes to school.”
भाषा को सिर्फ किताबों में नहीं, जीवन से जोड़कर (Context-based) सिखाना चाहिए।
Example:
बच्चों को बोलने दें – “My name is ___”, “I like mango.” → Simple daily use sentences से डर कम होता है।
खेल, गाने, नाटक (Drama), और भाषा खेल (Language Games) से सीखना रोचक बनता है।
→ जब मज़ा आता है, तो डर अपने-आप घट जाता है।
📘 Example:
कक्षा 4 में अंग्रेज़ी की कक्षा चल रही है।
एक बच्चा चुप है क्योंकि उसे डर है कि वह गलत बोलेगा।
शिक्षक मुस्कराकर कहता है – “No problem! Speak slowly. I am listening.”
→ बच्चा बोलने की कोशिश करता है → यही “भाषा चिंता का समाधान” है।
✅ Language Anxiety = नई भाषा बोलने या सीखने का डर।
✅ मुख्य कारण – आत्मविश्वास की कमी, गलतियों का डर, नकारात्मक मूल्यांकन, वातावरण की कमी।
✅ प्रभाव – बोलने में झिझक, भागीदारी में कमी, धीमा अधिगम।
✅ शिक्षक की भूमिका – सुरक्षित वातावरण बनाना, मातृभाषा का उपयोग, positive reinforcement देना।
✅ “गलती सीखने का हिस्सा है” – यह भावना सबसे प्रभावी समाधान है।
✅ CTET में अक्सर प्रश्न आता है:
प्रश्न: भाषा चिंता को कम करने के लिए शिक्षक को क्या करना चाहिए?
उत्तर: छात्रों को आत्मविश्वास देना, सहायक वातावरण बनाना, और प्रयास की सराहना करना।
हर कक्षा में सभी बच्चे एक समान गति से नहीं सीखते (Different Learning Pace)।
कुछ बच्चे जल्दी समझ लेते हैं (Gifted Students) और कुछ को अधिक समय व सहारा चाहिए (Slow Learners)।
एक शिक्षक का कार्य है – सभी शिक्षार्थियों (Learners) के लिए उपयुक्त शिक्षण रणनीतियाँ (Teaching Strategies) अपनाना ताकि कोई बच्चा पीछे न रह जाए।
वे विद्यार्थी जो दूसरों की तुलना में धीरे सीखते हैं,
जिन्हें concepts को समझने, याद रखने और लागू करने में समय लगता है।
Keyword:
Slow Learners = ऐसे बच्चे जिनकी learning speed औसत से कम होती है।
धीमी समझ (Slow Understanding) – उन्हें नए विषय को समझने में अधिक समय लगता है।
कम एकाग्रता (Low Concentration) – जल्दी ध्यान भटकता है।
अक्सर भूलना (Forgetfulness) – जो सीखा है, जल्दी भूल जाते हैं।
प्रेरणा की कमी (Low Motivation) – बार-बार असफल होने से आत्मविश्वास कम हो जाता है।
मदद की आवश्यकता (Need of Support) – उन्हें अधिक मार्गदर्शन और दोहराव की ज़रूरत होती है।
Example:
शिक्षक ने subtraction समझाया, लेकिन बच्चा फिर से पूछता है —
“Ma’am, minus कैसे करते हैं?” — यह Slow Learner का संकेत है।
शिक्षक को हर बच्चे की गति के अनुसार पढ़ाना चाहिए।
ज़रूरत हो तो एक-एक करके समझाएँ।
Example:
अध्यापक कहते हैं – “चलो राहुल, हम दोनों मिलकर यह सवाल फिर से करेंगे।”
बार-बार अभ्यास करवाना उन्हें आत्मविश्वास देता है।
Example:
शब्दों की spelling रोज़ दोहराना।
अमूर्त (Abstract) बातें समझ नहीं आतीं, इसलिए ठोस वस्तुएँ दिखाएँ।
Example:
“3 + 2 = 5” समझाने के लिए teacher पाँच पेंसिल दिखाए।
चित्र, चार्ट, वीडियो आदि से सीखना आसान बनता है।
Example:
Animals पर वीडियो दिखाना बजाय सिर्फ़ पढ़ाने के।
एक होशियार बच्चे को धीमे बच्चे के साथ जोड़ा जाए।
Example:
सीमा, रिया को हर दिन 10 मिनट spelling सिखाती है।
बड़ा विषय एक बार में नहीं, छोटे भागों में सिखाएँ।
Example:
“Paragraph Writing” पहले line formation, फिर linking words सिखाएँ।
गलती पर डाँटने के बजाय प्रयास की सराहना करें।
Example:
“बहुत अच्छा, तुमने कोशिश की — अगली बार और बेहतर होगा।”
माता-पिता को घर पर अभ्यास करवाने की सलाह दें।
ऐसे विद्यार्थी जिनकी बौद्धिक क्षमता (Intellectual Ability), रचनात्मकता (Creativity) या शैक्षणिक प्रदर्शन (Academic Achievement) दूसरों से बहुत अधिक होता है।
Keyword:
Gifted Students = Above Average learners with high potential.
तेज़ सीखने की क्षमता (Quick Learning Ability)
उच्च कल्पनाशक्ति (High Imagination)
जिज्ञासु प्रवृत्ति (Curiosity) – हर चीज़ पूछना, “क्यों” पूछते रहना।
समस्या-समाधान कौशल (Problem Solving Skill)
Independent Learning (स्वतंत्र सीखना पसंद करना)
Example:
बच्चा पूछे — “Ma’am, अगर पृथ्वी घूमती है तो हम गिरते क्यों नहीं?” → यह gifted child का संकेत है।
किताब से आगे की जानकारी या अतिरिक्त गतिविधियाँ दें।
Example:
“Science Club” या “Creative Writing Workshop” में शामिल करना।
ऐसे प्रश्न पूछें जो सोचने को मजबूर करें, सिर्फ रटने वाले नहीं।
Example:
“अगर पेड़ बात कर सकते, तो वे क्या कहते?”
अपने रुचि के अनुसार प्रोजेक्ट या शोध कार्य दें।
Example:
“Make your own short poem on nature.”
अगर बच्चा जल्दी सीखता है तो उसे उच्च स्तर की सामग्री दी जाए।
Example:
Class 4 का बच्चा Class 5 की story पढ़े।
कला, संगीत, लेखन या मॉडल बनाने की गतिविधियों में शामिल करें।
Gifted learners को boredom से बचाने के लिए नई चुनौतियाँ दें।
उन्हें समूह गतिविधियों में leader बनाएँ ताकि वे अपनी क्षमता का सही उपयोग करें।
Example:
“Rahul will lead the reading activity today.”
Differentiated Instruction (भिन्नीकृत शिक्षण) – हर बच्चे की गति और क्षमता के अनुसार कार्य देना।
Flexible Grouping (लचीले समूह) – कभी slow-fast को मिलाकर, कभी अलग-अलग समूह बनाना।
Peer Learning (सहपाठी शिक्षण) – Gifted बच्चा Slow Learner को सिखाने में मदद करे।
Continuous Assessment (निरंतर मूल्यांकन) – दोनों की प्रगति पर नज़र रखना।
✅ Slow Learners → धीरे सीखने वाले बच्चे, जिन्हें ज़्यादा अभ्यास और समर्थन चाहिए।
✅ Strategies → Repetition, Peer Tutoring, Individual Support, Positive Reinforcement।
✅ Gifted Students → औसत से अधिक प्रतिभाशाली बच्चे।
✅ Strategies → Enrichment, Higher-Order Thinking, Independent Projects, Acceleration।
✅ Inclusive Classroom → सभी learners के लिए अलग-अलग गतिविधियाँ और सहयोग।
✅ CTET Tip →
प्रश्न: “एक ही कक्षा में धीमे और प्रतिभाशाली दोनों प्रकार के छात्रों के लिए शिक्षक क्या करें?”
उत्तर: “भिन्नीकृत शिक्षण (Differentiated Instruction) अपनाएँ और सभी की जरूरत के अनुसार कार्य दें।”
📋 Topics:-
Meaning:
Constructivism का अर्थ है — “ज्ञान (knowledge) बच्चे खुद अपने अनुभवों और समझ से बनाते हैं।”
इस दृष्टिकोण में शिक्षक guide होता है, न कि केवल “information देने वाला।”
Example:
अगर बच्चा खुद प्रयोग करके सीखे कि “पौधे को पानी देने से वह कैसे बढ़ता है,” तो वह Constructivist Learning है — क्योंकि उसने ज्ञान स्वयं निर्मित (self-constructed) किया।
Meaning:
जब दो विद्यार्थी किसी कार्य या प्रश्न को मिलकर करते हैं, तो उसे Pair Work कहा जाता है।
इससे सहयोग (cooperation), सुनने की आदत (listening skills) और टीम भावना (team spirit) विकसित होती है।
Example:
दो बच्चे मिलकर एक कहानी पढ़ते हैं — एक पढ़ता है और दूसरा उसका अर्थ बताता है। यह Pair Work है।
Meaning:
जब 4–6 विद्यार्थी मिलकर किसी कार्य को साझा रूप से करते हैं, तो उसे Group Work कहते हैं।
यह बच्चों में सहयोगात्मक अधिगम (Collaborative Learning) को बढ़ावा देता है।
Example:
कक्षा में “स्वच्छता पर पोस्टर” बनाने का काम जब 5 बच्चे मिलकर करते हैं, तो यह Group Work है।
Meaning:
Problem Solving वह प्रक्रिया है जिसमें छात्र किसी समस्या का तार्किक, रचनात्मक और चरणबद्ध समाधान खोजते हैं।
इससे उनका Critical Thinking (आलोचनात्मक सोच) विकसित होता है।
Example:
शिक्षक पूछे — “अगर स्कूल में पानी की कमी हो जाए तो क्या उपाय किए जा सकते हैं?”
बच्चे मिलकर समाधान सोचते हैं — यह Problem Solving है।
Meaning:
इस विधि में विद्यार्थी प्रश्न पूछकर, खोजकर और निरीक्षण करके ज्ञान प्राप्त करते हैं।
यह बच्चों की जिज्ञासा (curiosity) और research attitude (अनुसंधान प्रवृत्ति) को विकसित करता है।
Example:
बच्चे पूछते हैं — “आसमान नीला क्यों दिखता है?”
शिक्षक कहता है — “चलो प्रयोग से पता लगाते हैं।” → यह Inquiry-based Learning है।
Meaning:
जब विद्यार्थी अपने अनुभव (real-life experiences) से सीखते हैं, तो इसे Experiential Learning कहते हैं।
“Learning by Doing” इसका मुख्य सिद्धांत है।
Example:
बच्चे खुद पौधा लगाते हैं और देखते हैं कि बिना धूप के पौधा कैसे मुरझा जाता है — यह अनुभव से सीखना है।
Meaning:
जब शिक्षक पाठ को बच्चों के जीवन के अनुभवों से जोड़कर पढ़ाते हैं, तो सीखना स्थायी होता है।
यह बच्चे को समझने में मदद करता है कि पढ़ाई उसके जीवन से कैसे जुड़ी है।
Example:
जब शिक्षक “पानी बचाओ” अध्याय पढ़ाते समय बच्चों से पूछे — “घर में तुम पानी कैसे बचाते हो?” → यह Real-life Connection है।
Meaning:
HOTS का मतलब है — विश्लेषण (Analysis), मूल्यांकन (Evaluation), और सृजन (Creation) करने की क्षमता।
यह बच्चे को केवल रटने से आगे बढ़ाकर सोचने और तर्क करने वाला बनाता है।
Example:
शिक्षक पूछे — “अगर कहानी का अंत तुम्हारे अनुसार बदलना हो, तो कैसे बदलोगे?” → यह HOTS प्रश्न है।
Meaning:
Rubrics एक निर्धारित मानदंडों की सूची होती है जिससे शिक्षक यह तय करता है कि बच्चे के काम का मूल्यांकन कैसे होगा।
यह “क्या अच्छा है” और “क्या सुधार की ज़रूरत है” – दोनों बताता है।
Example:
शिक्षक एक निबंध का मूल्यांकन करते समय 4 मानदंड रखे – विषयवस्तु, भाषा, रचना, और प्रस्तुति। → यह Rubrics का प्रयोग है।
Meaning:
Checklist एक सरल सूची (list) होती है जिसमें “हाँ/ना” के रूप में किसी गतिविधि की उपस्थिति दर्ज की जाती है।
यह बताती है कि कोई कार्य पूरा हुआ या नहीं।
Example:
Teacher के पास एक सूची है — “बच्चे ने चित्र बनाया? हाँ/ना” → यह Checklist है।
Meaning:
यह शिक्षक द्वारा लिखा गया छोटा, वास्तविक घटना का विवरण (short narrative record) होता है, जो किसी बच्चे के व्यवहार या सीखने की झलक दिखाता है।
Example:
Teacher नोट करता है — “रवि ने आज पहली बार स्वयं बोलकर कविता सुनाई।” → यह Anecdotal Record है।
Meaning:
ऐसे प्रश्न जिनके कई संभव उत्तर हो सकते हैं, और जो बच्चे की सोच, कल्पना और तर्क को बढ़ावा देते हैं।
Example:
“अगर तुम शिक्षक होते, तो बच्चों को कैसे पढ़ाते?”
Meaning:
ऐसे प्रश्न जिनका उत्तर निश्चित (fixed) होता है — जैसे “हाँ/ना” या एक शब्द में।
इनसे Knowledge Recall (ज्ञान स्मरण) जाँचा जाता है।
Example:
“क्या पानी रंगहीन होता है?”
Meaning:
बच्चे के उत्तर या व्यवहार पर शिक्षक की सकारात्मक या सुधारात्मक टिप्पणी।
Feedback सीखने की प्रक्रिया को दिशा देती है।
Example:
शिक्षक कहे — “बहुत अच्छा विचार! अगर तुम इसमें एक उदाहरण जोड़ दो तो और बेहतर होगा।”
Meaning:
यह सोचने की वह क्षमता है जिसमें बच्चा तथ्यों का विश्लेषण करके तर्कसंगत निष्कर्ष निकालता है।
Critical Thinking बच्चे को “क्यों” और “कैसे” पूछने के लिए प्रेरित करती है।
Example:
“अगर बिजली खत्म हो जाए तो हम किन विकल्पों का इस्तेमाल कर सकते हैं?” — यह Critical Thinking को बढ़ाता है।
Constructivist Approach: बच्चा अनुभव से सीखता है, शिक्षक केवल मार्गदर्शक होता है।
Pair & Group Work: सहयोगात्मक अधिगम के लिए आवश्यक।
Problem Solving: बच्चों में तार्किक और रचनात्मक सोच विकसित करता है।
Inquiry-based Learning: प्रश्न पूछकर और खोजकर सीखना।
Experiential Learning: “Learning by Doing” यानी अनुभव से सीखना।
HOTS: बच्चे की सोच और रचनात्मकता का मूल्यांकन।
Rubrics: मूल्यांकन के स्पष्ट मानदंड।
Checklist: कार्य की उपस्थिति की सूची (हाँ/ना)।
Anecdotal Record: बच्चे के व्यवहार की छोटी रिपोर्ट।
Open-ended Questions: सोच और तर्क को बढ़ाते हैं।
Close-ended Questions: ज्ञान जाँचने के लिए उपयोग।
Feedback: सुधार के लिए प्रतिक्रिया।
Critical Thinking: विश्लेषणात्मक और तार्किक सोच की क्षमता।
Real-life Connection: जीवन से जुड़ा शिक्षण स्थायी होता है।
Topic: Constructivist Approach – Pair Work, Group Work
Meaning:
Constructivism का अर्थ है — “बच्चा अपने अनुभवों और सोच के आधार पर स्वयं ज्ञान का निर्माण करता है।”
यानी सीखना केवल सुनना नहीं, बल्कि स्वयं खोज करना (Active Learning) है।
मुख्य बिंदु:
विद्यार्थी ज्ञान का निर्माण (Construction of Knowledge) स्वयं करता है, शिक्षक सिर्फ मार्गदर्शक (Facilitator) होता है।
यह दृष्टिकोण Piaget और Vygotsky के विचारों पर आधारित है।
इसमें बच्चों की पूर्वज्ञान (Prior Knowledge), अनुभव (Experience) और सहयोग (Collaboration) महत्वपूर्ण हैं।
Example:
अगर शिक्षक "पानी के तीन रूप" सिखा रहा है तो सिर्फ बताने की जगह बच्चों से बर्फ पिघलवाना और भाप बनवाना — यही Constructivist Approach है।
शिक्षक व्याख्याता (Lecturer) नहीं, बल्कि सहयोगी मार्गदर्शक (Co-Learner / Facilitator) होता है।
वह विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने, सोचने और चर्चा करने के अवसर देता है।
बच्चों की जिज्ञासा (Curiosity) को बनाए रखता है और उन्हें प्रयोगों द्वारा सीखने के लिए प्रेरित करता है।
Example:
Teacher कहता है – “अगर सूर्य न निकले तो क्या होगा?” बच्चे चर्चा करते हैं, तर्क देते हैं — शिक्षक सिर्फ मार्गदर्शन करता है।
Meaning:
जब दो विद्यार्थी मिलकर किसी गतिविधि को पूरा करते हैं, उसे Pair Work (युगल कार्य) कहते हैं।
यह छात्रों को आपसी संवाद और सहयोग से सीखने का अवसर देता है।
मुख्य उद्देश्य:
Communication Skills (संवाद कौशल) का विकास।
Confidence Building (आत्मविश्वास बढ़ाना)।
Peer Learning (सहपाठी से सीखना) को बढ़ावा।
Example:
Teacher कहता है — “अपना परिचय दो लेकिन अपने साथी का नाम और शौक बताओ।”
दोनों छात्र एक-दूसरे से बात करके परिचय तैयार करते हैं — यह Pair Work है।
Active Participation: हर बच्चे को बोलने और सोचने का मौका मिलता है।
Fear Reduction: कमजोर छात्र को साथी के साथ बोलने में झिझक कम होती है।
Immediate Feedback: साथी तुरंत गलती सुधार सकता है।
Language Practice: Pair Work से भाषा और शब्दावली दोनों में सुधार होता है।
Example:
Reading pair में एक बच्चा पढ़ता है और दूसरा गलती सुधारता है। दोनों को लाभ होता है।
Meaning:
जब 4–6 विद्यार्थियों का समूह मिलकर किसी समस्या का समाधान या कार्य करता है, उसे Group Work (समूह कार्य) कहते हैं।
यह सहयोगात्मक अधिगम (Collaborative Learning) का रूप है।
मुख्य उद्देश्य:
Team Work (दल भावना) विकसित करना।
Problem Solving (समस्या समाधान) सिखाना।
Leadership Skills (नेतृत्व क्षमता) विकसित करना।
Respect for Others (अन्यों का आदर) सिखाना।
Example:
Teacher कहता है — “आपका समूह गाँव की सफाई योजना बनाए।”
बच्चे आपस में चर्चा करके समाधान तैयार करते हैं — यही Group Work है।
Social Skills Develop: बच्चे एक-दूसरे के विचार सुनना सीखते हैं।
Multiple Perspectives: हर छात्र का अनुभव समूह में नया दृष्टिकोण जोड़ता है।
Collaborative Learning: “सभी मिलकर सीखना” की भावना बढ़ती है।
Critical Thinking: समूह में बहस और तर्क से सोचने की क्षमता बढ़ती है।
Example:
कक्षा में “जल संरक्षण” पर समूह चर्चा कराना बच्चों को समाजिक और तर्कशील बनाता है।
Activity Designer: शिक्षक ऐसा कार्य चुनता है जो समूह में चर्चा को प्रेरित करे।
Facilitator: बच्चों को दिशा देता है, लेकिन उत्तर नहीं बताता।
Observer: यह देखता है कि हर बच्चा भाग ले रहा है या नहीं।
Feedback Provider: कार्य के बाद सार्थक प्रतिक्रिया देता है।
Example:
Teacher group के बीच घूमता है, सुनता है और ज़रूरत पड़ने पर सुझाव देता है — लेकिन उत्तर नहीं बताता।
Pair Work: शब्दार्थ, बातचीत अभ्यास, भूमिका अभिनय (Role Play), संवाद लेखन।
Group Work: परियोजना कार्य (Project Work), चर्चा (Discussion), पोस्टर बनाना, कहानी पूरी करना।
दोनों से बच्चे सोचते हैं, सहयोग करते हैं और रचनात्मक रूप से सीखते हैं।
Example:
Teacher कहता है — “आपका समूह एक कविता पर अभिनय करे।”
बच्चे अर्थ समझकर अपनी तरह से प्रस्तुत करते हैं — Constructivist Approach का सही उदाहरण।
सभी बच्चे समान रूप से भाग नहीं लेते।
शोर और अनुशासन की समस्या।
समय की कमी।
कमजोर बच्चे passive हो जाते हैं।
Solution:
स्पष्ट नियम बताना।
छोटे समूह बनाना।
Role बाँटना (Leader, Recorder, Speaker)।
Activity के बाद reflection कराना।
✅ Constructivism: बच्चा स्वयं अनुभव से ज्ञान बनाता है।
✅ Teacher Role: Facilitator – मार्गदर्शक और सहायक।
✅ Pair Work: 2 विद्यार्थियों का सहयोगी अधिगम → Language व Confidence में सुधार।
✅ Group Work: 4–6 छात्रों का समूह → टीमवर्क, समस्या समाधान और नेतृत्व कौशल।
✅ Benefits: Collaboration, Creativity, Critical Thinking, Communication.
✅ Challenges: Discipline, unequal participation, time management.
✅ Solution: Clear rules, small groups, role division, follow-up reflection.
✅ Core Idea: “सीखना सहयोग से होता है, प्रतियोगिता से नहीं।”
Topic: Problem Solving व Inquiry-based Learning
Meaning:
Problem Solving का अर्थ है — जब विद्यार्थी किसी कठिन परिस्थिति या प्रश्न का स्वयं समाधान (Find solution by thinking) करते हैं।
यह सीखने का ऐसा तरीका है जिसमें बच्चे तर्क (Reasoning), विश्लेषण (Analysis) और निर्णय (Decision Making) का उपयोग करते हैं।
मुख्य विचार:
केवल उत्तर याद करना नहीं, बल्कि सोचकर समाधान निकालना सीखना।
यह constructivist approach का हिस्सा है — बच्चे अपने अनुभव से सीखते हैं।
शिक्षक केवल मार्गदर्शक (Facilitator) होता है, समाधान विद्यार्थी स्वयं खोजता है।
Example:
शिक्षक पूछता है – “अगर तुम स्कूल के मॉनिटर हो और दो बच्चे झगड़ रहे हैं, तो क्या करोगे?”
बच्चे सोचते हैं, चर्चा करते हैं और समाधान निकालते हैं — यह Problem Solving है।
Problem Identification (समस्या पहचानना):
पहले समझना कि असली समस्या क्या है।
👉 Example: “पौधा सूख क्यों गया?”
Data Collection (जानकारी जुटाना):
समस्या से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करना।
👉 Example: “क्या पौधे को धूप मिली? पानी मिला?”
Hypothesis Formation (संभावित कारण बताना):
कारणों पर अनुमान लगाना (Guess करना)।
👉 “शायद पानी कम मिला या ज्यादा धूप पड़ी।”
Testing / Experimenting (परीक्षण करना):
विचारों को आज़माना या प्रयोग करना।
👉 “अब रोज़ाना थोड़ा पानी दें और देखें क्या होता है।”
Conclusion (निष्कर्ष निकालना):
क्या समाधान सफल रहा? इससे क्या सीखा?
👉 “अब पौधा हरा है — मतलब कारण पानी की कमी थी।”
Thinking Skills (सोचने की क्षमता) बढ़ती है।
Creativity (रचनात्मकता) और Decision Making (निर्णय क्षमता) विकसित होती है।
बच्चे जिम्मेदार शिक्षार्थी (Independent Learners) बनते हैं।
Real-life application सिखाता है — जो स्कूल के बाहर भी उपयोगी है।
Example:
गणित में बच्चों को कोई प्रश्न सीधा न बताकर खुद से हल करने देना — यह Problem Solving सीखना है।
Meaning:
“Inquiry” का अर्थ है खोज या जाँच करना (To inquire or to investigate)।
Inquiry-based Learning में विद्यार्थी प्रश्न पूछते हैं, खोज करते हैं, और उत्तर स्वयं ढूँढते हैं।
मुख्य विचार:
यह Question-driven learning (प्रश्न-आधारित सीखना) है।
विद्यार्थी Active Learners बनते हैं।
शिक्षक बच्चों को प्रश्न पूछने और सोचने के लिए प्रेरित करता है।
Example:
Teacher: “बारिश के बाद इंद्रधनुष क्यों दिखाई देता है?”
बच्चे सोचते हैं, रंगों के बारे में पढ़ते हैं, प्रयोग करते हैं — यह Inquiry-based Learning है।
Ask (प्रश्न पूछना):
बच्चा प्रश्न बनाता है – “यह क्यों होता है?”
Investigate (जाँच करना):
जानकारी, प्रयोग या अवलोकन से उत्तर ढूँढना।
Create (नया विचार बनाना):
परिणामों से अपना निष्कर्ष निकालना।
Discuss (चर्चा करना):
अपने विचार दूसरों से साझा करना।
Reflect (चिंतन करना):
क्या सीखा? क्या सुधार की ज़रूरत है?
Example:
Science में बच्चे पूछते हैं – “बर्फ क्यों पिघलती है?”
→ Experiment करते हैं → चर्चा करते हैं → निष्कर्ष निकालते हैं।
Problem Solving:
जब कोई विशेष समस्या दी जाती है और उसका समाधान ढूँढना होता है।
👉 Example: “जल की कमी का समाधान कैसे करें?”
Inquiry-based Learning:
जब बच्चा खुद प्रश्न करता है और खोज करता है।
👉 Example: “बारिश का पानी कहाँ जाता है?”
दोनों का उद्देश्य एक ही है — सोचकर, खोजकर सीखना।
Facilitator: बच्चे को सोचने, प्रश्न करने और प्रयोग करने में मदद करना।
Guide: दिशा देना, उत्तर नहीं बताना।
Encourager: बच्चों के विचारों की सराहना करना।
Observer: देखना कि हर बच्चा सक्रिय है या नहीं।
Example:
Teacher कहता है — “क्या तुम सोच सकते हो कि यह क्यों हुआ?”
इससे बच्चे में जिज्ञासा और तर्कशीलता दोनों बढ़ती हैं।
Curiosity (जिज्ञासा) बढ़ती है।
Critical Thinking (तार्किक सोच) विकसित होती है।
Ownership of Learning (स्वयं सीखने की जिम्मेदारी) आती है।
Deep Understanding (गहराई से समझना) होता है।
Collaboration (सहयोग) और Communication (संवाद) में सुधार।
Example:
जब बच्चे "प्रदूषण के कारण" स्वयं खोजते हैं, तो वे विषय को याद नहीं करते, समझते हैं।
Science: “क्या पौधे बिना धूप के बढ़ सकते हैं?”
Math: “अगर ₹100 को 4 बच्चों में बराबर बाँटना है, तो कैसे बाँटेंगे?”
EVS: “गाँव में पानी की बर्बादी कैसे कम की जा सकती है?”
Language: “अगर कहानी का अंत तुम बदल दो तो क्या होगा?”
ये सभी गतिविधियाँ Problem Solving + Inquiry-based Learning का हिस्सा हैं।
✅ Problem Solving: सोचकर समाधान निकालना; तर्क, विश्लेषण, निर्णय पर आधारित।
✅ Steps: Problem पहचानना → Data इकट्ठा करना → Hypothesis बनाना → Testing → Conclusion।
✅ Inquiry-based Learning: प्रश्न पूछना, खोज करना, स्वयं उत्तर पाना।
✅ Teacher Role: Facilitator, Guide, Motivator।
✅ Benefits: Curiosity, Critical Thinking, Creativity, Self-learning।
✅ Approach Type: Constructivist – विद्यार्थी केंद्रित (Child-centered)।
✅ Classroom Focus: “Answer बताने से पहले प्रश्न सोचो।”
✅ Goal: सीखना केवल याद करना नहीं, बल्कि समझना और खोज करना।
Topic: Experiential Learning (अनुभवात्मक अधिगम)
Meaning:
Experiential Learning का मतलब है — “सीखना अनुभव से” (Learning through experience)।
इसमें विद्यार्थी खुद करके, महसूस करके, और वास्तविक जीवन (real-life) से जुड़कर सीखते हैं।
मुख्य विचार:
विद्यार्थी केवल सुनने या पढ़ने से नहीं, बल्कि करके सीखते हैं (Learning by Doing)।
यह एक Child-centered approach है।
शिक्षक का कार्य होता है – अनुभव के अवसर देना, न कि केवल जानकारी देना।
Example:
👉 पौधों पर पाठ पढ़ाने के बजाय, बच्चे खुद पौधे लगाएँ और उनकी देखभाल करें — यह Experiential Learning है।
David Kolb ने Experiential Learning का प्रसिद्ध Model (चार चरणों वाला) दिया।
उन्होंने कहा कि “Experience is the foundation of learning.”
चार चरण (Four Stages of Experiential Learning):
Concrete Experience (ठोस अनुभव):
बच्चे कोई काम स्वयं करते हैं।
👉 जैसे — विज्ञान प्रयोग करना, खेत में बीज लगाना, नाटक में भाग लेना।
Reflective Observation (चिंतनात्मक अवलोकन):
किए गए अनुभव पर सोचते हैं कि क्या हुआ और क्यों हुआ।
👉 “जब हमने बीज को पानी दिया, तो वह अंकुरित क्यों हुआ?”
Abstract Conceptualization (सैद्धांतिक समझ):
अनुभव से सिद्धांत या नियम समझना।
👉 “बीज को बढ़ने के लिए पानी, धूप और हवा की जरूरत होती है।”
Active Experimentation (सक्रिय प्रयोग):
नये विचारों को किसी और परिस्थिति में आज़माना।
👉 “अब हम देखेंगे कि क्या यह बीज बिना धूप के भी बढ़ता है?”
🔸 Kolb का Cycle → Experience → Reflection → Concept → Experiment → New Experience
Active Involvement (सक्रिय भागीदारी):
विद्यार्थी सीखने की प्रक्रिया में सीधे भाग लेते हैं।
👉 Example: बच्चा Science lab में खुद प्रयोग करे।
Reflection (चिंतन):
विद्यार्थी अपने अनुभव पर विचार करता है।
👉 “मैंने यह काम कैसे किया? क्या बेहतर हो सकता था?”
Real-life Connection (वास्तविक जीवन से जुड़ाव):
सीखी गई चीज़ें जीवन में उपयोगी होती हैं।
👉 जैसे — “बाजार से चीज़ें खरीदते समय माप-तौल का उपयोग।”
Meaningful Learning (अर्थपूर्ण अधिगम):
विद्यार्थी केवल रटता नहीं, बल्कि गहराई से समझता है।
Constructivist Nature (रचनावादी दृष्टिकोण):
बच्चा अपने अनुभवों से ज्ञान का निर्माण (construct knowledge) करता है।
EVS (पर्यावरण अध्ययन):
बच्चों को “कचरा प्रबंधन” सिखाने के लिए — उन्हें स्कूल में कचरा अलग-अलग डिब्बों में डालने की गतिविधि कराई जाए।
Maths:
“मापन” सिखाने के लिए बच्चे पानी या रस से ग्लास भरकर माप करें।
Language:
“पत्र लेखन” सिखाने के लिए बच्चे सचमुच पत्र लिखें और पोस्ट करें।
Social Science:
“लोकतंत्र” सिखाने के लिए कक्षा में Mock Election (काल्पनिक चुनाव) कराया जाए।
ये सभी उदाहरण दिखाते हैं कि सीखना केवल किताबों से नहीं, बल्कि जीवन के अनुभवों से होता है।
Deep Understanding (गहराई से समझ):
विद्यार्थी बातों को महसूस करता है, इसलिए लंबे समय तक याद रखता है।
Practical Skills (व्यावहारिक कौशल):
बच्चे वास्तविक समस्याओं को हल करना सीखते हैं।
Confidence (आत्मविश्वास) बढ़ता है:
जब बच्चा खुद कोई कार्य पूरा करता है, तो उसे आत्मसंतोष मिलता है।
Creativity & Curiosity (रचनात्मकता व जिज्ञासा):
नए विचार और प्रयोग की इच्छा बढ़ती है।
Collaborative Learning (सहयोगी सीखना):
समूह में काम करने से सहयोग और संवाद कौशल विकसित होते हैं।
Life-long Learning:
क्योंकि यह सीखना केवल परीक्षा के लिए नहीं, बल्कि जीवन के लिए होता है।
Example:
एक बच्चा जब खुद Science experiment करता है और परिणाम देखता है — वह concept कभी नहीं भूलता।
Facilitator (सुविधादाता):
बच्चों को अनुभव करने के अवसर देना।
Guide (मार्गदर्शक):
प्रश्न पूछने और सोचने में मदद करना।
Observer (पर्यवेक्षक):
देखना कि बच्चे क्या कर रहे हैं और कैसे सीख रहे हैं।
Motivator (प्रेरक):
बच्चों की हर कोशिश की सराहना करना।
Connector:
कक्षा की गतिविधियों को वास्तविक जीवन (Real-life) से जोड़ना।
Example:
शिक्षक बच्चों से कहे — “घर में बिजली की बचत कैसे करते हो?”
→ यह अनुभवात्मक चर्चा बन जाती है।
समय की कमी (Time Constraint):
हर विषय में अनुभवात्मक गतिविधियाँ कराना समय लेता है।
संसाधनों की कमी (Lack of Resources):
सभी स्कूलों में प्रयोगशाला या सामग्री उपलब्ध नहीं होती।
Large Class Size (बड़ी कक्षा):
हर विद्यार्थी को अनुभव का मौका देना कठिन होता है।
Assessment (मूल्यांकन की कठिनाई):
केवल लिखित परीक्षा से अनुभवात्मक सीख को मापना मुश्किल है।
Field trips (शैक्षिक भ्रमण) कराना
Role play / Dramatization
Project-based work
Experiments & Demonstrations
Case study discussion
Community-based learning (सामुदायिक गतिविधियाँ)
Reflection Journals (अनुभव पर लेखन)
Example:
“Water conservation” सिखाने के लिए बच्चों को अपने घरों में पानी बचाने के तरीके ढूँढने और साझा करने को कहना।
✅ Experiential Learning = Learning by Doing (अनुभव से सीखना)
✅ David Kolb’s Model – Experience → Reflection → Concept → Experiment → New Experience
✅ Focus: Real-life connection + Active participation
✅ Teacher Role: Facilitator, Guide, Observer
✅ Benefits: Deep learning, creativity, practical knowledge, confidence
✅ Examples: Mock election, field visit, gardening, science experiment
✅ Challenges: Time, resources, assessment
✅ CTET Keyword: “Child learns best when connected to real-life experiences.”
Topic: HOTS Questions बनाने की रणनीति (Strategies for Creating HOTS Questions)
HOTS का पूरा रूप है — Higher Order Thinking Skills (उच्च-स्तरीय चिंतन कौशल)।
इसका मतलब है:
“ऐसे प्रश्न जो विद्यार्थियों को केवल याद करने (Remember) या बताने (Recall) से आगे सोचने पर मजबूर करें।”
HOTS questions में बच्चा:
सोचता है, तर्क करता है (Reasoning)
विभिन्न विचारों की तुलना करता है (Comparison)
समस्याओं को हल करता है (Problem-solving)
और नए विचार उत्पन्न करता है (Creativity)
Example:
👉 “महात्मा गांधी के सिद्धांत आज के समाज में कैसे उपयोगी हैं?”
यह एक HOTS question है क्योंकि इसमें सोचने और विश्लेषण की आवश्यकता है।
Bloom’s Taxonomy (ब्लूम का वर्गीकरण) के अनुसार, HOTS प्रश्न ऊपरी तीन स्तरों से संबंधित होते हैं:
Analyzing (विश्लेषण करना):
जानकारी के हिस्सों को तोड़ना और उनके संबंध समझना।
👉 Example: “कहानी के दो पात्रों की सोच में क्या अंतर है?”
Evaluating (मूल्यांकन करना):
किसी विचार या तर्क का निर्णय करना।
👉 Example: “क्या तुम लेखक के विचार से सहमत हो? क्यों?”
Creating (निर्माण करना):
नए विचार, समाधान या रचना करना।
👉 Example: “अगर तुम कहानी का अंत बदल सकते, तो कैसे करते?”
📘 याद रखो —
LOT (Lower Order Thinking) = Remember, Understand, Apply
HOTS (Higher Order Thinking) = Analyze, Evaluate, Create
ऐसे प्रश्न जिनका केवल एक निश्चित उत्तर न हो।
👉 Example: “अगर तुम इस स्थिति में होते तो क्या करते?”
📍 यह बच्चे को सोचने और तर्क देने पर मजबूर करता है।
ये प्रश्न कारण और प्रक्रिया पूछते हैं, सिर्फ तथ्यों को नहीं।
👉 Example: “हम पर्यावरण की रक्षा क्यों करें?”
👉 “पेड़ जलवायु को कैसे प्रभावित करते हैं?”
दो विचारों, पात्रों या घटनाओं की तुलना कराई जाती है।
👉 Example: “राम और भरत के चरित्र में क्या समानता और अंतर है?”
विद्यार्थी को यह अनुमान लगाना होता है कि आगे क्या हो सकता है।
👉 Example: “अगर कहानी में बारिश न होती तो क्या होता?”
ऐसे प्रश्न जिनमें छात्र को कोई वास्तविक जीवन की समस्या (Real-life problem) हल करनी हो।
👉 Example: “अगर स्कूल में पानी की कमी हो जाए तो तुम क्या समाधान सुझाओगे?”
बच्चों को कुछ नया बनाने या सोचने के लिए प्रेरित करना।
👉 Example: “अपने गाँव में स्वच्छता के लिए एक नया अभियान का विचार दो।”
इनसे छात्र अपने अनुभवों और मूल्यों पर विचार करता है।
👉 Example: “किसी मित्र की मदद करने से तुम्हें कैसा महसूस हुआ?”
Critical Thinking (आलोचनात्मक सोच) को बढ़ावा:
बच्चे तर्क, प्रमाण और निर्णय का अभ्यास करते हैं।
Creativity विकसित होती है:
बच्चे नए विचार, कहानी या समाधान बनाते हैं।
Real-life connection (वास्तविक जीवन से जुड़ाव):
HOTS प्रश्न बच्चों को जीवन की परिस्थितियों से जोड़ते हैं।
Concept Clarity (अवधारणा की स्पष्टता):
बच्चा रटने के बजाय विषय को समझकर उत्तर देता है।
Self-expression (स्वयं को व्यक्त करने की क्षमता):
बच्चा अपने विचार, अनुभव और मत स्पष्ट रूप से बताना सीखता है।
EVS:
“अगर पेड़ न हों तो पृथ्वी पर क्या प्रभाव पड़ेगा?”
→ विश्लेषण और मूल्यांकन दोनों शामिल।
Maths:
“अगर तुम्हारे पास ₹100 हैं, तो तुम अपने दोस्तों में बराबर बाँटने के कितने तरीके सोच सकते हो?”
→ रचनात्मक सोच और अनुप्रयोग।
Language:
“अगर तुम कहानी का लेखक होते, तो इसका अंत कैसे लिखते?”
→ कल्पनाशक्ति और सृजनात्मकता।
Facilitator (सुविधादाता):
बच्चों को सोचने के अवसर देना, केवल उत्तर नहीं बताना।
Question Stimulator:
अच्छे प्रश्न पूछना जो बच्चे को गहराई से सोचने पर मजबूर करें।
Encourager (प्रोत्साहक):
हर उत्तर को स्वीकार करना और तर्क को महत्व देना।
Use Real-life Contexts:
प्रश्नों को बच्चों के जीवन, परिवेश और अनुभवों से जोड़ना।
Peer Discussion (सहपाठी चर्चा):
बच्चों को एक-दूसरे के विचार सुनने और तुलना करने का अवसर देना।
प्रश्नों में “क्यों, कैसे, अगर, कल्पना करो” जैसे शब्दों का प्रयोग करें।
उत्तर एक से अधिक संभव हो सकते हैं।
प्रश्नों में बच्चे की भावनाओं, अनुभवों और निर्णय को शामिल करें।
केवल तथ्यात्मक (Factual) या स्मृति (Memory-based) प्रश्न न पूछें।
बच्चे को तर्क (Reasoning) देने के लिए प्रेरित करें।
HOTS आधारित प्रश्न CTET में pedagogy के हिस्से में बहुत पूछे जाते हैं।
यह दिखाता है कि शिक्षक केवल पढ़ा नहीं रहा, बल्कि सोचने की क्षमता (Thinking Skill) विकसित कर रहा है।
NCF 2005 और NEP 2020 दोनों में HOTS पर ज़ोर दिया गया है।
✅ HOTS = Higher Order Thinking Skills
✅ Bloom’s Higher Levels – Analyze, Evaluate, Create
✅ उद्देश्य – Critical Thinking, Creativity, Problem Solving
✅ Strategies: Why-How, Open-ended, Comparison, Prediction, Reflection
✅ Teacher Role: Facilitator, Encourager, Question Stimulator
✅ CTET Focus Line: “Teacher should ask open-ended, thought-provoking questions.”
✅ Examples:
“अगर तुम कहानी का अंत बदल सको, तो क्या करोगे?”
“पर्यावरण संरक्षण तुम्हारे लिए क्यों ज़रूरी है?”
आकलन (Assessment) का अर्थ है — विद्यार्थी के सीखने की प्रगति को समझना और यह जानना कि उसे आगे किस प्रकार सहायता की आवश्यकता है।
आकलन उपकरण वे माध्यम हैं जिनकी मदद से शिक्षक यह देखते हैं कि विद्यार्थी ने क्या और कितना सीखा।
इन उपकरणों का प्रयोग Continuous and Comprehensive Evaluation (CCE) में भी किया जाता है ताकि बच्चे के ज्ञान (Knowledge), कौशल (Skills) और व्यवहार (Attitude) का संतुलित मूल्यांकन हो सके।
पारंपरिक टेस्ट के अलावा Rubrics, Checklists, और Anecdotal Records जैसे उपकरण सीखने के वास्तविक स्तर को पहचानने में मदद करते हैं।
Example:
शिक्षक जब बच्चों के समूह कार्य (Group Work) का मूल्यांकन करते हैं, तो केवल सही उत्तर नहीं देखते बल्कि यह भी देखते हैं कि बच्चे कैसे भाग ले रहे हैं, सहयोग कर रहे हैं, और अपनी राय दे रहे हैं — यह सब आकलन उपकरणों से पता चलता है।
Meaning (अर्थ):
Rubric एक पूर्व-निर्धारित मानक (predefined criteria) होता है जिसके आधार पर किसी विद्यार्थी के प्रदर्शन (performance) का मूल्यांकन किया जाता है।
Components (मुख्य भाग):
Criteria (मापदंड): क्या मूल्यांकन किया जाएगा, जैसे — स्पष्टता, रचनात्मकता, सहभागिता।
Levels (स्तर): जैसे — उत्कृष्ट (Excellent), अच्छा (Good), सामान्य (Average), सुधार की आवश्यकता (Needs Improvement)।
Importance (महत्त्व):
Rubrics से मूल्यांकन निष्पक्ष (fair) और पारदर्शी (transparent) बनता है, क्योंकि पहले से तय होता है कि किन बातों पर अंक मिलेंगे।
Classroom Example:
Suppose शिक्षक बच्चों को “मेरे विद्यालय” पर भाषण देने को कहते हैं।
Rubric में लिखा हो:
भाषा की स्पष्टता – 5 अंक
आत्मविश्वास – 5 अंक
विचारों की क्रमबद्धता – 5 अंक
समय प्रबंधन – 5 अंक
इस तरह कुल 20 अंक दिए जा सकते हैं।
Benefit (लाभ):
विद्यार्थी जानता है कि उसे किस चीज़ पर ध्यान देना है।
शिक्षक को मूल्यांकन आसान और निष्पक्ष बनता है।
फीडबैक देना सरल होता है।
Meaning (अर्थ):
Checklist एक हाँ/ना (Yes/No) आधारित सूची होती है जिसमें यह देखा जाता है कि विद्यार्थी ने कोई विशेष कार्य या कौशल पूरा किया या नहीं।
Purpose (उद्देश्य):
यह बताती है कि किसी कौशल या गतिविधि में विद्यार्थी ने कौन-कौन से चरण पूरे किए हैं।
Use (उपयोग):
शिक्षक बच्चे की व्यक्तिगत प्रगति (individual progress) देखने के लिए इसका प्रयोग करते हैं।
Classroom Example:
यदि शिक्षक बच्चों से “पोस्टर बनाना” सिखा रहे हैं, तो Checklist में ये बिंदु हो सकते हैं:
क्या छात्र ने शीर्षक सही लिखा? ✅
क्या रंगों का सही प्रयोग किया? ✅
क्या संदेश स्पष्ट है? ❌
इससे तुरंत पता चल जाता है कि बच्चे को किस हिस्से में सुधार की ज़रूरत है।
Benefit (लाभ):
समय की बचत होती है।
शिक्षक को हर बच्चे की प्रगति पर नज़र रखने में मदद मिलती है।
सुधारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) आसान होता है।
Meaning (अर्थ):
Anecdotal Record एक संक्षिप्त वर्णनात्मक रिपोर्ट (short descriptive note) होती है जिसमें शिक्षक किसी विद्यार्थी के व्यवहार, उपलब्धि या कठिनाई को वास्तविक घटना के रूप में लिखते हैं।
Purpose (उद्देश्य):
इसका उपयोग किसी बच्चे की व्यक्तिगत विकास यात्रा (personal growth) समझने के लिए किया जाता है — जैसे उसका सामाजिक व्यवहार, आत्मविश्वास, रुचि आदि।
What it Includes (इसमें क्या लिखा जाता है):
घटना की तारीख
क्या हुआ (Incident)
शिक्षक का अवलोकन और निष्कर्ष
Classroom Example:
एक बच्चा पहले समूह गतिविधि में भाग नहीं लेता था। शिक्षक ने देखा कि बाद में वह धीरे-धीरे चर्चा में भाग लेने लगा।
शिक्षक ने यह बात अपनी Anecdotal Record File में नोट की ताकि बाद में उसकी प्रगति देखी जा सके।
Benefit (लाभ):
बच्चे के व्यवहारिक और भावनात्मक विकास का पता चलता है।
अभिभावकों से बातचीत में मदद मिलती है।
शिक्षक व्यक्तिगत मार्गदर्शन (personal guidance) दे सकता है।
ये उपकरण बच्चे की समग्र प्रगति (Holistic Development) को मापने में सहायक हैं।
ये केवल अंक देने का माध्यम नहीं बल्कि सीखने की प्रक्रिया को समझने का तरीका हैं।
इससे शिक्षक व्यक्तिगत शिक्षण रणनीति (individual teaching strategy) बना सकते हैं।
यह Continuous Assessment (निरंतर मूल्यांकन) को संभव बनाता है।
Example:
अगर किसी बच्चे की Checklist में “टीमवर्क” बार-बार ‘No’ आ रहा है, तो शिक्षक उसे Pair Work में शामिल करके सहयोग की भावना विकसित कर सकता है।
Rubrics = स्पष्ट मापदंडों के आधार पर स्तरवार मूल्यांकन।
Checklists = हाँ/ना में प्रगति का सरल आकलन।
Anecdotal Records = बच्चे के व्यवहार या घटना का संक्षिप्त विवरण।
तीनों उपकरण बच्चे की व्यक्तिगत, सामाजिक और संज्ञानात्मक वृद्धि (Cognitive + Social Growth) का संतुलित चित्र देते हैं।
ये उपकरण शिक्षक को Feedback + Remedial Teaching में सहायता करते हैं।
CTET में इनका महत्व इसलिए है क्योंकि ये Constructivist (रचनात्मक) और Child-centered learning दृष्टिकोण को समर्थन करते हैं।
Questioning (प्रश्न पूछना) शिक्षण का सबसे प्रभावी तरीका है। इससे शिक्षक यह जान पाता है कि विद्यार्थी क्या समझ रहा है और कहाँ कठिनाई है।
प्रश्न बच्चे की सोच (Thinking), जिज्ञासा (Curiosity) और समझ (Understanding) को विकसित करते हैं।
शिक्षण प्रक्रिया में दो प्रकार के प्रश्न सबसे सामान्य हैं — Open-ended और Close-ended।
Example:
जब शिक्षक पूछते हैं — “तुम्हें कहानी का कौन-सा पात्र सबसे अच्छा लगा और क्यों?” — यह एक open-ended प्रश्न है, क्योंकि इसका उत्तर सोच और तर्क पर आधारित है।
Meaning (अर्थ):
ऐसे प्रश्न जिनका उत्तर सीधा, छोटा या निश्चित (fixed answer) होता है, उन्हें Close-ended Questions कहते हैं।
Features (विशेषताएँ):
उत्तर आमतौर पर “हाँ/ना” या “एक शब्द/एक वाक्य” में दिया जा सकता है।
ये Knowledge Recall (ज्ञान स्मरण) के लिए उपयुक्त हैं।
इनसे शिक्षक जल्दी पता लगा सकते हैं कि बच्चे को concept समझ आया या नहीं।
Purpose (उद्देश्य):
तथ्यों की जाँच करना।
बुनियादी ज्ञान या जानकारी मापना।
परीक्षा या objective-type टेस्ट में उपयोग।
Classroom Examples:
“क्या सूरज पूर्व दिशा में उगता है?” → हाँ
“‘पानी’ शब्द संज्ञा है या विशेषण?” → संज्ञा
“2+2 कितना होता है?” → 4
Advantages (लाभ):
तेज़ मूल्यांकन (Quick Assessment) संभव।
बड़े समूह के लिए उपयोगी।
शिक्षक को तुरंत फीडबैक मिलता है।
Limitations (सीमाएँ):
बच्चे की सोच या कल्पना शक्ति सीमित रह जाती है।
ऐसा उत्तर जिसमें “क्यों” या “कैसे” का विश्लेषण हो, नहीं निकल पाता।
Meaning (अर्थ):
ऐसे प्रश्न जिनके एक से अधिक संभावित उत्तर (multiple possible answers) हो सकते हैं, उन्हें Open-ended Questions कहते हैं।
Features (विशेषताएँ):
इन प्रश्नों में तर्क, विश्लेषण, रचनात्मकता (reasoning, analysis, creativity) की आवश्यकता होती है।
बच्चे को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर मिलता है।
उत्तर “सही या गलत” नहीं बल्कि विचार-आधारित होते हैं।
Purpose (उद्देश्य):
Higher-order Thinking विकसित करना।
बच्चे की भाषा, तर्क, और अभिव्यक्ति कौशल को समझना।
Constructivist Learning को बढ़ावा देना।
Classroom Examples:
“अगर तुम्हें कोई नया त्यौहार बनाना हो तो उसका नाम क्या रखोगे और क्यों?”
“कहानी का अंत तुम्हारे अनुसार कैसे होना चाहिए था?”
“अगर बारिश न हो तो हमारे जीवन पर क्या असर पड़ेगा?”
Advantages (लाभ):
बच्चे की Critical Thinking (आलोचनात्मक सोच) और Creativity (रचनात्मकता) बढ़ती है।
शिक्षक को बच्चे की गहराई से समझ पता चलती है।
Classroom discussion और सहभागिता बढ़ती है।
Limitations (सीमाएँ):
समय अधिक लगता है।
सभी उत्तरों का मूल्यांकन कठिन हो सकता है।
एक अच्छा शिक्षक केवल एक प्रकार के प्रश्नों पर निर्भर नहीं रहता।
Close-ended प्रश्न बुनियादी ज्ञान (Basic Knowledge) जाँचने के लिए,
और Open-ended प्रश्न सोचने की क्षमता (Thinking Ability) समझने के लिए प्रयोग किए जाने चाहिए।
Example:
कक्षा में कहानी पढ़ाते समय —
पहले शिक्षक पूछे: “कहानी का मुख्य पात्र कौन है?” → (Close-ended)
फिर पूछे: “तुम्हें क्यों लगता है कि उसने ऐसा निर्णय लिया?” → (Open-ended)
इससे बच्चे का ज्ञान भी जाँचा गया और उसकी सोच भी विकसित हुई।
Question Design (प्रश्न निर्माण) सोच-समझकर करें ताकि बच्चे उत्तर देने में सहज महसूस करें।
Encourage Discussion (चर्चा के लिए प्रेरित करें): Open-ended प्रश्नों के बाद बच्चों को अपनी बात साझा करने का मौका दें।
Feedback दें: बच्चे के उत्तर पर सकारात्मक प्रतिक्रिया (Positive Feedback) दें ताकि आत्मविश्वास बढ़े।
Variety रखें: हर विषय या अध्याय में दोनों प्रकार के प्रश्न शामिल करें ताकि मूल्यांकन संतुलित रहे।
Close-ended Questions:
→ निश्चित उत्तर वाले प्रश्न (हाँ/ना या एक शब्द)।
→ Facts और recall testing के लिए।
→ Example: “क्या पृथ्वी गोल है?”
Open-ended Questions:
→ बहुविकल्पीय उत्तर वाले, सोच-विचार माँगने वाले प्रश्न।
→ Higher-order Thinking विकसित करते हैं।
→ Example: “अगर पृथ्वी चपटी होती तो क्या होता?”
Main Difference:
Close-ended = Knowledge Check
Open-ended = Thinking & Expression Check
CTET Tip:
Effective teaching में दोनों प्रकार के प्रश्नों का प्रयोग आवश्यक है ताकि बच्चा स्मरण (Recall) से लेकर विश्लेषण (Analysis) और रचनात्मकता (Creativity) तक सीख सके।